Friday, May 22, 2015

टालस्टाय की पुस्तक


कल शाम को उसने जून का इंतजार करते-करते चाय बनायी कि वह आ गये. ढेर सारा सामान गजक, मूंगफली, रेवड़ी, तिल के लड्डू, तिल बुग्गा लेकर, नन्हे को स्वेटर्स पसंद आये. कल शाम भर वह बेहद खुश था, उसके लिए पिज़ा बेस व पिज़ा चीज भी लाये हैं. कल डिनर में उसने वही खाया. रात को वे जल्दी सो गये. सुबह साढ़े चार बजे उठे, ‘क्रिया’ की और क्रिया के बाद उसे अद्भुत संगीत सुनाई दिया. कृष्ण उसका बहुत ख्याल रखते हैं, उनकी बातें उसे भीतर बहुत सुनाई देती हैं, वह उसके प्रिय, सर्वस्व हैं ! सुबह सभी को फोन किया, पिताजी, दीदी, मंझला भाई.. बड़े भाई-भाभी का फोन कल शाम को आ गया था. जून सभी से मिलकर आये सभी से उपहारों का आदान-प्रदान किया. जीवन इसी लेन-देन का नाम है ! आज दीदी लोग बड़ी भांजी के रिश्ते के लिये जा रहे हैं. इस बार बात बन जाएगी, ऐसी उन्हें आशा है. उसने पिछले दिनों बहुत बार, बहुत जगह फोन किये अब कुछ कम करना होगा, मन पर नियन्त्रण रखना होगा. कल जून उसके लिए Light on yoga और Light on Pranayam भी लाये. दीदी ने दीपक चोपड़ा की पुस्तक The seven spiritual laws for success भी भिजवाई है. पुस्तकें उनकी मार्गदर्शक हैं. टालस्टाय की पुस्तक मन को भीतर तक छू जाती है. अंतर की छोटी-छोटी भावनाओं को कितनी दक्षता से पकड़ते हैं वह. मनोविश्लेषण करने में वह सिद्ध हस्त हैं. मन में हर पल न जाने कितने विचार आकर चले जाते हैं जिनके बारे में कोई ध्यान ही नहीं दता. मन को एक उसी पर टिका दें तो उसकी खबर लगती रहती है. हर पल का साथी है मन पर फिर भी इसकी गहराइयों में क्या छिपा है कोई नहीं जानता. विचित्र हैं इसकी गतिविधियाँ, पर मन कितनी ही चालाकियां करे सूक्ष्म नजर से बच नहीं सकता. अपने ऊपर ऐसी ही कड़ी नजर रखनी होती है सत्य के साधक को...उसका मन दर्पण सा बने जिसमें सारी चालाकियां साफ झलकें और सारी सच्चाईयाँ भी !

परसों पूर्णिमा थी. कल से माघ का महीना आरम्भ हो गया. उसने आज मौन व्रत रखा है, फोन निकाल दिया है पर ध्यान कई बार उस ओर गया. कबीरदास ने ठीक ही कहा है कि माला तो कर में फिरे..आज सुबह सद्गुरु ने बताया कि मौन में मन भीतर केन्द्रित होता है, उर्जा एकत्र होती है जिसे कोई साधना में उपयोग में ला सकते हैं. ज्ञान जब व्यवहार में उतर जायेगा तभी वह ज्ञान है, वरना तो पुस्तकों में अनंत ज्ञान भरा पड़ा है, वहाँ से थोडा सा मन में भर भी लिया तो कोई हर्ज नहीं है. ज्ञान का पथिक बनना है तो स्वयं को हर क्षण कसौटी पर कसना होगा, थोड़ी सी बेखबरी भी नहीं चलेगी ! साधना के पथ पर चाहे आरम्भ में कितनी ही कठिनाइयाँ हों, अंत में अनंत सुख है, न भी हो उसे सुख की चाह भी नहीं है, परम सत्य को जानना है. सच्चाई को स्वयं अपनी आँखों से देखना है, अंतिम सत्य क्या है ? वे इस जगत में क्यों आये हैं, उनकी मंजिल क्या है ? गुरुओं के बताये मार्ग पर स्वयं चलकर देखना है, ईश्वर का साक्षत्कार करना है. तत्व ज्ञान पाना है. उस परम अनुभव को अपना बनाना है. यही उसका साध्य है. उसका पथ ज्ञान, भक्ति और कर्म का मिलाजुला हो सकता है. पथ से पल भर के लिए भी डिगना नहीं है. उसका यह सौभाग्य है कि कृष्ण के प्रति हृदय में भक्ति है, सद्गुरु के प्रति श्रद्धा है तथा हृदय में कोई ऐसी कामना नहीं है जिसके पूरे न होने पर उसे शोक हो. लोभ, मोह, काम, क्रोध, मद, मत्सर से अभी पूरी तरह मुक्त नहीं हुआ है मन..संस्कार बहुत गहरे हैं, पर ध्यान, जो वह नियमित करती है इसमें अवश्य सहायक सिद्ध होगा ! ईश्वर की शरण लिए बिना मुक्ति असम्भव है.  


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