Monday, May 11, 2015

गुलदाउदी के फूल


कल जून का प्रजेंटेशन था, सभी डायरेक्टर आये थे और सीएमडी भी. वह काफी दिनों से इस पर कार्य कर रहे थे. अच्छा रहा, पूरा दिन वहीं लग गया पर शाम को जब वह घर आये तो चेहरा सफलता की चमक से दमक रहा था. पिछले कई महीनों से वह अपनी टीम के साथ इस कार्य में व्यस्त थे. आज वह फील्ड गये हैं. उन्हें अपने कार्य में इस तरह लगे देखकर बहुत अच्छा लगता है. जबसे उन्होंने कोर्स किया है, जीवन नियमित हो गया है. तन-मन स्फूर्ति से भरा रहता है और अब वह सुबह-सुबह सत्संग भी सुनते हैं. कहीं गहरे छिपी भक्ति की भावना भी उभर रही है. वह पहले से शांत हो गये हैं. योग करने से मन को एकाग्र कर पाते हैं. सद्गुरु की उन सभी पर असीम कृपा है. उसे ध्यान में अब अधिक रूचि हो गयी है, ध्यान उसके लिए स्नान जैसा आवश्यक कार्य हो गया है. जिसमें आत्मा को स्नान कराते हैं ताकि जो भी धूल-धब्बे उस पर लग गये हैं वह धुलें और कबीर की तरह वह भी कह सके “ ...जतन से ओढ़ी, ज्यों की त्यों धर दीन्हीं चदरिया” जीवन में जो कुछ भी मिलता जाये या छूटता जाये सहज भाव से उसे स्वीकार करते हुए अपने एकमात्र लक्ष्य की ओर बढना है. कृष्ण का हाथ थामा है, अब वही रास्ता दिखायेगा, वह अपना वचन भूल नहीं सकता ! आज इस समय ग्यारह बजे हैं, उसे अकेले ही भोजन करना है. जून के आने में अभी देर है. आज शाम को उन्होंने एक मित्र परिवार को भोजन के लिए बुलाया है.  

ठंड अब शुरू हुई है, दिसम्बर का मध्य आने वाला है. सुबह सवेरे एक परिचिता ने फोन करके कुछ फूल मांगे, थोड़ी देर के लिए मन संशय में पड़ गया, उसे फूल तोड़ना अच्छा नहीं लगता पर बाद में लगा यह भी तो मोह है, तत्क्षण कहा, वह ले सकती है, सम्भवतः वह आएगी अथवा उसके रवैये से यह समझेगी कि वह उसे देना नहीं चाहती, खैर अब जो होगा उसे देखना है, भूत को तो बदल नहीं सकते. शायद वह सजग नहीं थी, तभी मन मोहित हो गया, और चित्त में कुछ देर को विक्षोभ हुआ. फूल भी तो परमात्मा के हैं, सहज ही देने की प्रेरणा मन में जगे इसके लिए उसे स्वयं को भरपूर मानना होगा. ताकि भविष्य में दोनों हाथों से देने की कला विकसित हो. मनुष्य अपनी इच्छा से ही धनी या निर्धन बनता है.


आज क्रिया के उपरांत अद्भुत अनुभव हुआ, जैसे वह अनंत है, निस्सीम, भीतर के खजाने जैसे खुल रहे हैं. क्रिया करने से पूर्व सद्गुरु और कृष्ण से प्रार्थना की थी. सच्चे दिल से की प्रार्थना कभी व्यर्थ जा ही नहीं सकती, उसे तो पल-पल अपनी प्रार्थना का जवाब मिलता है. वह कृष्ण उसकी बात सुनता है बल्कि वह स्वयं को उसे जनाता है. घर में पिछले दो दिनों से सफाई, रंग-रोगन का कार्य चल रहा है. जून ने छुट्टी ली है दो दिनों की. नन्हा स्कूल गया है, कल उसकी पिकनिक अच्छी रही. पानी में सभी बच्चे बहुत देर तक रहे. कल रात काफी वर्षा हुई, गुलदाउदी के पौधे जो फूलों से भरे थे, पानी की बौछार से झुक गये थे, सुबह उन्हें ठीक किया तो ऐसा लग रहा था जैसे वे उसके स्पर्श को महसूस कर रहे हों. जीवन कितना अद्भुत है न, हर वस्तु में चेतना है, एक ही चेतना, सभी में स्पंदन है, वे वस्तुओं को उनके वास्तविक स्वरूप में देखें तो सभी कुछ कितना सुंदर है. एक नंग-धडंग काला-कलूटा बच्चा भी अपने भीतर वही चेतना छिपाए है, असीम सम्भावनाओं का भंडार.. उनके शरीर, मन, बुद्धि भले ही सीमा में बंधे हों, पर उनकी आत्मा यानि वे जो वास्तव में हैं, वह असीमित है, उसके सान्निध्य में वे भी असीम हैं, जीवन मुक्त, चिन्मय और शाश्वत !  

2 comments:

  1. पेड़-पौधे भी स्नेह ,व्यथा आदि का अनुभव करते है .कोमल व सूक्ष्म भाव हैं आपके . वहां तक हर कोई नहीं पहूँच सकता . नमन आपको .

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  2. स्वागत व आभार.. गिरिजाजी आप भी इस बात को अनुभव कर चकी हैं तभी तो जानती हैं...जौहरी की गति जौहरी जाने..

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