आज उसने सुना, जिसका जन्म होता है वह विनाश
को प्राप्त होगा ही. आज पुनः उसे कृष्ण मिले, भक्ति भी प्यार की तरह है जो कभी-कभी
अपने मुखर रूप में होता है. तन-मन दोनों फूल की तरह हल्के हैं. हृदय में ज्ञान की
ज्योति जल रही है, अभी कुछ कितना स्पष्ट है. यह सृष्टि, ईश्वर, प्राणी और इनका आपस
में संबंध ! सत्य ही जानने योग्य है, सभी उसी की खोज में हैं. कोई पहली सीढ़ी पर
है, कोई पांचवीं तो कोई सौवीं पर पहुंच गया है. जब कोई भीतर-बाहर एक हो तभी उसे
अनुभव कर सकता है. उसको जानने के लिए उसके जैसा होना पड़ता है. आज सद्गुरु की आँखों
में नमी थी, वह अपने गुरू के प्रति कृतज्ञता का अनुभव कर रहे थे. गुरू का ऋण
चुकाना असम्भव है. वह इतना अनमोल खजाना साधक को सौंप देते हैं. सुबह साढ़े चार पर
उठे वे, कोहरा भी था और बदली भी. नन्हे को स्कूल भेजा. छोटी बहन को फोन किया वह ‘हवन’
करके अपनी शादी की वर्षगाँठ मना रही है. भांजियों से भी बात की. कल छब्बीस जनवरी
के विशेष भोज के लिए सभी सखियों को आमंत्रित किया.
कल का भोज
अच्छा रहा. सभी मित्र परिवार आये थे. बाहर लॉन में सब बैठे थे. सुबह कुछ देर परेड
देखी. नन्हा नेहरू मैदान में परेड देखने गया था. उसने वापस आने में बहुत देर की.
वे परेशान हो गये थे, मन कहीं लग नहीं रहा था. जून को गुस्सा था और उसे चिंता, पर
दोनों ही व्यर्थ थे, क्योंकि नन्हा आराम से वहाँ परेड देख रहा था. आज उसने छोटी
भाभी से बात की. कल सुबह मंझले भाई ने भी ‘हवन’ करवाया, माँ की बरसी इस तरह उन्होंने
मनायी. वे लोग उनके बारे में, उनकी बीमारी व उनके इलाज के बारे में बातें करते
हैं, उनके वस्त्र वक्त-वक्त पर दान करते हैं. आज वह भी मन्दिर जाएगी और कुछ दान
देगी. माँ कहाँ होंगी कोई नहीं जानता. उनकी आत्मा तो शाश्वत है, वह किसी देह को
धारण कर चुकी होंगी और सम्भवतः इस जन्म की बातें भूल भी गयी हों. वे जन्म से पूर्व
भी अव्यक्त होते हैं और मृत्यु के बाद भी, बीच में कुछ ही समय तक व्यक्त रहते हैं.
इस क्षणिक जीवन में जितने शुद्ध होते जाते हैं, उतना ही मृत्यु का भय कम होता जाता
है. अपने उस स्वरूप का अनुभव इसी रूप में होने लगता है जो मृत्यु के बाद अनुभव में
आने वाला है. यह रूप तो उन्हें अपनी पूर्वजन्म की इच्छाओं और वासनाओं के कारण मिला
है. उनके कर्म यदि इस जन्म में निष्काम हों तो अपने शुद्धतम रूप में प्रकट हो सकते
हैं, वैसे भी इस जगत में ऐसा है ही क्या जो उन्हें तुष्ट कर सके !
आज बहुत दिनों
बाद सुबह टीवी पर जागरण नहीं सुन पा रही है. केबल नहीं आ रहा है. सुबह वे समय पर
उठे, नन्हे को पढ़ने जाना था, गया, पर टीचर नहीं मिले. आज बसंत पंचमी का अवकाश है.
आज ही सरस्वती पूजा भी है. उसके लिए तो एकमात्र आराध्य कृष्ण हैं, उन्हीं से सभी
देवी-देवताओं का प्रागट्य हुआ है. कल उसने जून से गुस्सा किया जब उन्होंने कहा
केबल एक साल के लिए कटवा देते हैं, उसे सुबह के सत्संग का आकर्षण था, पर देखो, आज
कृष्ण ने वह भी मिटवा दिया. उन्हें किसी भी वस्तु से बंधना नहीं है. मुक्ति के पथ
पर चलना शुरू किया है तो जंजीर यदि सोने की भी हो तो उसे काट देना चाहिए. सतोगुण
तक पहुंच कर उससे भी पार जाना होता है सच्चे साधक को, पर वह तो अभी भी तमोगुण का
शिकार हो जाती है. कल जून ने उसे ‘हरिवंशराय बच्चन’ की आत्मकथा के तीन भाग उनकी सर्वश्रेष्ठ कविताओं का संकलन तथा दो अन्य
कविता की पुस्तकें लाकर दीं. उनका प्रेम ही तो है यह, वह उसकी हर छोटी-बड़ी इच्छा को
पूर्ण करना चाहते हैं, यही प्रेम है, पर वह इसका प्रतिदन नहीं दे पाती है. ईश्वर
साक्षी है कि उसके मन में शुद्ध प्रेम जगा है, जो सामान्य प्रेम से थोड़ा अलग है.
इस संसार के हर जीव के प्रति, जड़-चेतन सभी के प्रति, उस परम सत्ता के प्रति, पंचभूतों,
धरा, आकाश, नक्षत्र, सूर्य तथा चन्द्रमा सभी उसके प्रेम के पात्र हैं. इस प्रेम का
कोई रूप नहीं, यह अव्यक्त है, अनंत है और सर्वव्यापी है. इस प्रेम ने उसके स्व को अनंत
विस्तार दे दिया है. कृष्ण को प्रेम करो तो वही प्रेम कृष्ण की सृष्टि की ओर भी
प्रवाहित होने लगता है !
कोई भी आत्म कथा अपनें आप में बहुत रोचक होती है, और ऐसे महान लोगों की आत्म कथाएं तो हमेशा मार्ग-दर्शक का काम करती हैं।
ReplyDeleteऐसे थे बच्चन, वाकई अजूबे थे बच्चन...
जड चेतन की बातें करते,
सुर्य चन्द्रमा घूमते रहते...
वाकई अजूबे थे बच्चन
कितने सच्चे थे बच्चन :-)
आज की ब्लॉग बुलेटिन बी पॉज़िटिव, यार - ब्लॉग बुलेटिन मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ...
सादर आभार !
वाह :)
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति।
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