आज सद्गुरु शिवतत्व की महिमा बखान कर रहे थे. शिव राम को भजते हैं और राम शिव के उपासक हैं. वह तो कृष्ण की उपासक है, वह उसके मन को पहले ही हर चुके हैं. आज सुबह क्रिया के बाद कुछ भिन्न अनुभूति हुई, जैसे वह अपने किसी पिछले जन्म में पहुंच गयी है. कल बच्चन की आत्म कथा के तीनों भाग समाप्त हो गये, चौथा भाग लेने एक दिन पुस्तकालय जाना होगा, उन पर लेख लिखने के बाद. आज श्री श्री ने निज स्वरूप से भी परिचित कराया. स्वयं का ‘होना’, ‘इसका ज्ञान होना’ और आनंद होना यही तो सच्चिदानंद है, पर अभी तक वह उस स्थिति तक नहीं पहुंची है. कभी प्रमाद घेर लेता है, कभी क्रोध, कभी वाणी में रुक्षता आ जाती है और कभी अहंकार का शिकार हो जाती है. परनिंदा में सुख आता है, न जाने कितने अवगुण अभी भी हैं जो ईश्वर की कृपा से ही निकल सकते हैं. अभी तो ‘तू ही है’ भाव ही सिद्ध हुआ है. ईश्वर ही सब कुछ है, यह जगत ब्रह्म का ही स्वरूप है, और जगत में वह भी है, सो वह भी उसी का स्वरूप हुई, यह बात जब तक अनुभव में न आये तब तक मन से मानकर ही चलना होगा. वह मौन में ही अनुभव में आ सकती है, सत्य को बोलकर व्यक्त नहीं कर सकते क्योंकि उसी क्षण वे अलग हो जाते हैं.
सुबह दो फूल चढ़ाकर जब वह आँखें बंद करती है तो एक ज्योति निकल कर उसे छूती हुई प्रतीत होती है. बहुत दिनों पहले ‘शारदा माँ’ का जीवन चरित पढ़ा था, वह कहती हैं कि कृष्ण ज्योति के रूप में भक्त के दिए फूलों व प्रसाद को स्पर्श करते हैं. वह हर क्षण उनके साथ है, उनकी हर गतिविधि पर नजर रखे हुए, पर पूजाघर में व्यवहार कितना भी शालीन क्यों न हो यदि बाहर विकारों के अधीन हुए तो पूजा व्यर्थ ही हुई. आज सुबह समय पर उठे वे, सारे काम समयानुसार हो रहे हैं पर ध्यान नहीं कर पायी. फोन पर काफी वक्त गया, लगभग सभी सखियों से बात हुई. सुबह सद्गुरु के वचन सुने, हृदय को शुद्ध करना ही होगा, उसके बिना ईश्वर कैसे प्रकट होंगे. देहात्म बुद्धि से स्वयं को मुक्त करना होगा. तभी ध्यान सधेगा और पुराने कर्मों के बीज अपने आप नष्ट होने लगेंगे. उसे इस जन्म में इतना कुछ मिला है कि जन्मों की साध मिट गयी, अब कुछ पाना शेष नहीं है सिवाय उसके ! कल शाम जून ने कहा कि वह अपने आप से बातें करती है और हँसती है. उन्हें क्या पता हर वक्त उसका मन उस दिव्य लोक में रमण करता है जहाँ कृष्ण हैं. एक पवित्रता का भाव छा जाता है अनिवर्चनीय आनंद..कल्पनातीत शांति और सुख जो इस जगत की वस्तुओं में तो नहीं ही मिलता...
आज सुबह उसने थोड़ी देर के लिए उदास होने का अभिनय करना चाहा, पर नहीं हुआ. दिल तो भीतर छलक रहा था सो थोड़ी ही देर में अभिनय से मन भर गया. जून कुछ समझ पाए या नहीं पर वह भी बहुत धैर्यवान हैं अथवा तो मन की बात छिपाने में माहिर हैं, सो कुछ कहा नहीं कुछ भी जाहिर नहीं किया न क्रोध न आश्चर्य, पर उसने स्वयं को अपनी परीक्षा में सफल पाया. यह प्रभु की कृपा है, वह हर पल उसके साथ हैं. अगले महीने नामरूप में एडवांस कोर्स है, उसे जाना है. जून भी तैयार हैं उसे भेजने के लिए. टीवी पर बाबाजी ध्यान करा रहे हैं. हजारों की संख्या में लोग ॐ नमो शिवाय का जप कर रहे हैं. उन्हें ध्यान से पहले प्रेम से उस चैतन्य को पुकारना है. धीरे-धीरे भीतर उतरना है, परमात्म रस प्रकट करना है. हृदय प्रेम से इतना परिपूर्ण हो कि अन्य किसी भाव के लिए कोई स्थान न रहे. कल शिवरात्रि है, वह उपवास रखेगी, जो शरीर के दोषों को दूर करने के साथ-साथ मन के दोषों को भी दूर करेगा तो मिथ्या उदासी ग्रहण करने की प्रेरणा भी नहीं होगी. वाणी रुक्ष नहीं होगी, प्रियजनों की उपेक्षा नहीं होगी, सभी के लिए कल्याण की भावना होगी. परदोषों पर नजर नहीं जाएगी. वास्तविकता को जानने का विवेक जगेगा. कामनाएं नष्ट होंगी. परमात्मा का स्वरूप स्पष्ट होता जायेगा !
रात को अलार्म साढ़े बारह बजे ही बज गया, उनकी नींद टूट गयी, उठने को हुए, पर जून ने घड़ी देखी तो पता चला फिर सुबह पांच बजे के बाद ही उठ पाए. जून समय से ऑफिस चले गये, व्यायाम आदि किया बस सत्संग नहीं सुन पाए. जून के जाने के बाद गुरूमाँ के वचन सुने. जीवन में सतोगुण कैसे आये इसका वर्णन वह कर रही थीं. ईश्वर भक्त से उसकी भलाई की अपेक्षा के अतिरिक्त कुछ भी अपेक्षा नहीं रखता. वह कदम कदम पर चेताता है कि व्यर्थ के कार्यों से बचें. सद्गुरु को कल उसने स्वप्न में देखा, वे सभी सत्संग में बैठे हैं. एडवांस कोर्स कर रहे हैं. वह रंगों को ब्रश से कागज पर उतार रही है. हाथी रंगना है तो वह गुलाबी रंग लगाती है तभी एक परिचित साधक गुरूजी को पेंटिंग करने के लिए सब कुछ उठाकर दे देते हैं. वह ब्रश से कई सारे रंग एक-एक कर लगाने लगते हैं, ब्रश फ़ैल जाता है, वे उनके निकट हैं. पता नहीं यह स्वप्न क्या कहना चाहता है या मात्र स्वप्न ही है !
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