Wednesday, November 5, 2014

मिनी मैराथन


परसों ‘विश्व पर्यावरण दिवस’ था, पर एक बार भी याद नहीं आया न ही टीवी या अख़बार में सुना या पढ़ा, इसका सीधा सादा अर्थ उसने यही लगाया कि आजकल वह आँखें, कान, दिल, दिमाग सभी बंद करके जी रही है. अपने इर्दगिर्द के हालात की, लोगों की, उनके विचारों, भावनाओं तक की कोई खबर नहीं रखती, संवेदना शून्य हो जाना इसीको कहते हैं. आज उन्हीं परिचिता से मिलने जाना है, जिनकी विदाई में वह नहीं जा सकी थी. दो दिन बाद वे लोग यहाँ से जा रहे हैं, नन्हे ने एक कार्ड बनाया उन्हें देने के लिए. बाबाजी टीवी पर आ चुके हैं, उन्होंने बताया, नींद नित्य प्रलय है, इसके अतिरिक्त नैमित्तिक प्रलय, आत्यन्तिक प्रलय तथा महाप्रलय भी होती है. फिर कर्म की महत्ता पर प्रकाश डाला, कर्म चिन्तन पूर्वक होना चाहिए, और चिन्तन शाश्वत हो...पर जिसके मूल में रस नहीं वह फूल खिलेगा कैसे ? जिसके हृदय में स्नेह नहीं, व्यवहार चलेगा कैसे ? जिस दीपक में तेल नहीं वह दीपक जलेगा कैसे ? बाबाजी तो चले गये और उसने उन महिला को फोन किया वह तो मिली नहीं, उनके पतिदेव ने फोन उठाया. आज सुबह इंटरनेट का कनेक्शन नहीं मिला. कल तीन इमेल भेजनी थीं पर सम्भवतः कुछ गड़बड़ है, जून को डर है नहीं पहुँची होंगी. नेपाल में हालात सुधर रहे हैं ऐसा कहना ही पड़ेगा. वाजपेयीजी का आज आपरेशन है, पाकिस्तान के शासक ने शुभकामनायें भजी हैं, इस बार काश्मीर समस्या का स्थायी हल निकल ही जाना चाहिए. रात भर की वर्षा के बाद आज मौसम ठंडा है. उसके अस्थिर मन की तरह लिखाई भी अस्थिर हो रही है ! ईश्वर ही उसकी रक्षा करेंगे !

आज की सुबह भी बादलों से घिरी है, रात को वे जैसे ही सोने के लिए लेटे, नींद से आँखें मुंद गयीं. तिनसुकिया में ‘नन्दन कानन’ में व बाद में बाजार में घूमने से काफी थकान हो गयी थी. खाना भी बाहर ही खाया. साल में दो-एक बार ऐसे घूमना और बाहर खाना अच्छा है पर ज्यादा नहीं. कल सुबह वह उन परिचिता से मिलने गयी, दो दिन बाद ट्रक में उनका सामान लोड होगा. बातचीत में दोनों ने कहा, भविष्य में आज से अठारह-उन्नीस वर्षों बाद वे उनसे मिल सकते हैं रिटायर्मेंट के बाद जब वे भी दिल्ली रहने जायेंगे. दोपहर में नन्हे का एक मित्र आ गया और इधर-उधर की बातें करता रहा, बाद में वे तिनसुकिया गये. नैनी के लिए एक पंखा लाकर दिया है, अगले कुछ महीनों में पैसे चुकाएगी, ऐसा उसने कहा है, ज्यादा काम भी करेगी. आज भी बाबाजी ने सुंदर वचन कहे, ईश्वर तो सदा सर्वदा है, उसे खोजना नहीं है बस पर्दा उठाकर उसे देखना भर है. वह सच्चाई है, अंतरात्मा है, जिसे मानव नकारते रहते हैं. कल उसने उस सखी के लिए एक उपहार भी लिया जिसका जन्मदिन अगले हफ्ते है. दो दिन बाद मैराथन दौड़ भी है पर शायद वह नहीं जा पाए, वे जो चाहते हैं हमेशा वही उनके लिए सही नहीं होता. घर से फोन नहीं आया है न ही मकान के पैसों का चेक, जिसे जमा करके जून नई जमीन के कागजात लेंगे, शायद उन्हें जाना भी पड़े. सिवाय प्रतीक्षा के वे फ़िलहाल कुछ नहीं कर सकते. नन्हा कुछ देर बाद पढने जायेगा, उसका सुबह का काम भी तभी शुरू होगा.

ज्ञान को अपने हृदय कलश में भरने के लिए आवश्यक है कि वे अपने मन को खुला रखें, विचारों को संकीर्ण न बनाएं. बल, बुद्धि, विद्या, धैर्य को यदि अपना मित्र बनाना है तो हृदय को विशाल बनाना होगा. आज बाबाजी बच्चों को सिखा रहे हैं. इस समय आठ बजे हैं, उसका स्नान-ध्यान हो चुका है, नन्हा अभी नाश्ता खा रहा है. सुबह उठकर एक घंटा कम्प्यूटर पर बिताया, न्यूज़ पढ़ीं, एक इमेल भी आया था. दीदी और बंगाली सखी ने उसके मेल का जवाब अभी नहीं दिया है. कल मिनी मैराथन है, सम्भवतः वह जा सकेगी, आज शाम को ही वाकिंग करते समय पता चल जायेगा. पुरस्कार न भी मिले तो भी भाग लेना अपने आप में एक अनुभव होगा and she loves walking and jogging आज धूप तेज है, white snow ball का एक पौधा ज्यादा पानी से मरने की कगार पर है कल उन्होंने उसे ट्रांसप्लांट किया था. 




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