नेपाल के राजा वीरेंद्र, रानी ऐश्वर्या
तथा उनके परिवार के अन्य कई सदस्यों सहित ग्यारह लोगों की हत्या का समाचार सुनकर
कल बहुत दुःख हुआ, उनके ही पुत्र ने अपने विवाह को लेकर उठे विवाद के कारण गोली
चला दी ऐसा पहले सुनने में आया, बाद में उसने स्वयं को भी गोली मार दी, पर गोली
उसकी पीठ में लगी है. टीवी समाचारों में सुना, वे एक पढ़े-लिखे उच्च पदों पर रह
चुके अपनी माँ के प्रति श्रद्धा रखने वाले राजकुमार थे, युवराज थे, भला ऐसा जघन्य
कार्य क्यों करेंगे, अस्पताल में उनकी भी बाद में मृत्यु हो गयी है. उनके चाचा
नागेंद्र को अब राजा बनाया गया है, जिनके अनुसार यह एक दुर्घटना थी पर इस पर विश्वास
करना कठिन है. नेपाल की जनता के लिए यह दुःख सह पाना कितना कठिन होगा, उसे याद है
इंदिरा गाँधी तथा राजीव गाँधी की मृत्यु पर भारत के लोग कितने दिनों तक संयत नहीं
हो पाए थे. नेपाल में जनता सडकों पर उतर आई है इतने बड़े हत्याकांड को भुला पाना तो
असम्भव है, पचा पाना कोई कम कठिन नहीं है, जब वह स्वयं को नेपाल की प्रजा की जगह
रखकर देखती है तो काँप जाती है. यह दुःख बहुत गहरा है, इसके जख्म इतने गहरे हैं कि
रह-रह कर उनमें टीस उठती रहेगी. ईश्वर के बंदे खुद ऐसी करनी करते हैं फिर सब कुछ
उसी पर डाल देते हैं कि ईश्वर को यही मंजूर होगा !
कल डायरी नहीं खोल सकी,
सुबह व्यस्त रही फोन पर बात करने में, दोपहर नन्हे को पढ़ाने में और शाम को वे एक
मित्र के यहाँ गये. बाबाजी आज भक्ति पर बोल रहे हैं. भक्ति प्रेम का उच्च रूप है.
स्नेह, प्रेम और श्रद्धा के अतिरेक का नाम ही भक्ति है. अलौकिक अनुराग का नाम ही
है भक्ति ! सुबह से शाम तक जन्म से मृत्यु तक मनुष्य की दौड़ सुख के लिए होती है. मन
का विकार रहित उल्लास या सुख ही भक्ति है ! उन्होंने बताया, भूताकाश, हृदयाकाश तथा
चिदाकाश...तीन आकाश हैं, जो बाहर दिखाई देता है वह भूताकाश है, जो हर्षित अथवा
उदास होता है वह हृदयाकाश है, जो इसे हर्षित अथवा उदास हुए देखता है वह चिदाकाश
है, वहीं खुदा का बसेरा है जो हर वक्त प्रकट होने के लिए तत्पर है पर मानव ने इतने
मोटे-मोटे पर्दे डाल रखे हैं उसके और ह्रदयाकाश के मध्य कि वह उसकी नजरों से दूर
ही रहता है ! पिछले दिनों वह सात्विक भाव से दूर ही रही, राजसिक वृत्ति और कभी-कभी
तामसिक वृत्ति भी प्रकट हो रही थी, आज पुनः ईश्वरीय कृपा से सत्संग सुनने को मिला
और इसका ही प्रभाव है कि वह पुनः सद्भावना से युक्त है. पिछले दिनों कोई नई कविता
भी नहीं लिखी, लिखने के लिए बैठी तक नहीं. आज भी वर्षा हो रही है, परसों रात को
आरम्भ हुई तो थमने का नाम नहीं ले रही है. जून और उसका दोनों का वजन दो-दो किलो बढ़
गया है, उन्हें इस पर नियन्त्रण रखना होगा, अमूल दूध का ही असर जान पड़ता है.
कुछ पाने के लिए कुछ खोना
नहीं पड़ता, कुछ मिलने पर कुछ खो जाता है. सत्य मात्र ईश्वर है शेष सभी परिवर्तनशील
है, कोई लाख इसे अपने अनुकूल बनाने का प्रयत्न करता रहे पर उस चादर की तरह जो छोटी
है, कहीं कहीं से प्रतिकूलता आ ही जाएगी, इसलिए समझदारी इसी में है कि अनुकूलता की
चाह ही छोड़ दी जाये. आज गुरु माँ का प्रवचन प्रेरणादायक था उन्होंने कहा, संकीर्णता
छोड़कर यदि कोई अपनी दृष्टि को विश्वव्यापी बना ले तब ईश्वर की आराधना करने के लिये
कुछ छोड़ना नहीं पड़ेगा, जिसे छूटना होगा वह अपने आप ही छूटता चला जायेगा. यह सारा
जहाँ ही तो अपना है जब तक वह इस दुनिया में है, दुनिया के किसी कोने में कुछ भी
अच्छा या बुरा घटित हो किसी न किसी रूप में उसका असर तो पड़ता ही है.
हमेशा की तरह मनोरंजक .....
ReplyDeleteधन्यवाद.....
बहुत समय बाद ब्लॉग पर आना हुआ ....आपकी डायरी हमेशा की तरह मनोरंजक है
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