जब चित्त में संसार का कोई भी ख्याल नहीं उठता है तब मन
ठहर जाता है, भीतर परम मौन उभरता है और उसी शांति में परमात्मा की झलक दिखाई देती
है. ध्यान करते करते जब प्राणायाम की विधि, मन्त्रजप व सारी चेष्टाएँ अपने आप छूट
जाएँ तभी ऐसी स्थिति आती है ! जितना सच्चाई भरा व्यवहार होगा उतना अंतःकरण शुद्ध
होगा और उतना ही ध्यान टिकेगा, मन में कोई उहापोह न हो कोई द्वेष की भावना न हो,
अपने प्रति व दूसरों के प्रति ईमानदार रहें, ईश्वरीय आदर्शों की और जाने की
आकांक्षा हो तो जीवन में सहजता आने लगेगी. आज सुबह जो सुना था उसमें से ये बातें उसे
याद रह गयी हैं. अभी-अभी छोटी बहन से बात की, कह रही थी सभी को उसकी फ़िक्र है
जानकर अच्छा लगा. कल रात को वर्षा हुई सो धूप तो अब नहीं है पर उमस बरकरार है.
नन्हा स्कूल से आया तो वह रिहर्सल पर चली गयी वापस आयी तो नन्हा और जून दोनों
अपना-अपना कम कर रहे थे. जून का मूड कुछ देर के लिए जरूर बिगड़ा पर उन्होंने अपने
को फिर संयत कर लिया. वह चाहे कितनी देर बाहर रहें पर उसका बाहर रहना उन्हें खलता
है, इसके पीछे क्या है यह तो वही जानते हैं. दीदी को मेल लिखे चार दिन हो गये हैं
पर भेज नहीं पा रही है, जून से कहेगी ऑफिस से ही भेज दें, उन्हें प्रतीक्षा होगी. कल
बंगाली सखी का जवाब भी आ गया अभी तक पढ़ा नहीं है.
उसके गले में दर्द है,
पिछले दिनों ठंडा पेय पीया, शायद इसी कारण. शनिवार को नाटक है तब तक सभी को सेहत
ठीकठाक रखनी है. आज से ठंडा पानी पीना बंद. जब वे स्वस्थ होते हैं तो देह की तरफ
ध्यान भी जाता, अस्वस्थता जितनी विवश कर देती है पर बाबाजी के अनुयायियों को विवश
होने की क्या आवश्यकता है, वह देह नहीं है, न ही मन या बुद्धि, बल्कि मुक्त,
पवित्र, शुद्ध आत्मा है, इन छोटे-छोटे या बड़े भी दुखों का उस पर कोई असर नहीं पड़ने
वाला. कल दोपहर बाद तेज वर्षा हुई, बिजली भी चली गयी, उन्होंने अँधेरे में ही भोजन
बनाने की तैयारी की तो पता चला अँधेरे में उनके रसोईघर में किन्हीं और प्राणियों
का राज है. नन्हे ने कितनों को भगाया, आज नैनी पूरा किचन धो-पोंछकर साफ कर रही है.
उसका काम बढ़ गया है, सो उसने कपड़े धोने के लिए मशीन लगाने का निश्चय किया. वाजपेयी
जी के घुटने का सफल आपरेशन हो गया है, ईश्वर उन्हें दीर्घायु दे, देश को चलाने का
जो बीड़ा उन्होंने उठाया है उसे पूरा कर सकें, पाकिस्तान के साथ समझौता करने में
सफल हों ! आज नन्हा प्रोजेक्ट के लिए बनाया ‘सोलर कुकर’ ले गया है.
“ईश्वर का स्मरण करने से
अहम् विसर्जित होता जाता है, राग-द्वेष संसार की चर्चा करने से होता है लेकिन
ईश्वरीय चर्चा यदि मन में चलती रहे तो ये नष्ट हो जाते हैं तथा मानसिक दुःख से भी
निवृत्ति होती है, एहिक सुखों और सुविधाओं में डूबा हुआ मन विपत्ति आने पर तिलमिला
उठता है किन्तु ईश्वरीय भाव में युक्त मन चट्टान की तरह दृढ़ होता है, छोटे-मोटे
दुःख वह साक्षी भाव से सहता है ऐसे ही सुख भी उसे प्रभावित नहीं करता वह शांत भाव
से नश्वर सुख-दुःख को सहता है. ईश्वर असीम बल से परिपूर्ण करता है, क्योंकि वह
पूर्णकाम है, कुछ पाना उसे शेष नहीं है. जितना सुखद जीवन है, उतनी ही सुखद मृत्यु
भी है. मृत्यु एक पड़ाव है, नये सफर पर जाने से पहले की विश्रांति है. कर्मों का फल
हर किसी को भुगतना पड़ता है. नये कर्म करने की आकांक्षा न रहे और पुराने कर्मों के
बंधन काटते चलें तो मुक्त कहे जा सकते हैं”. आज बाबाजी ने उपरोक्त विचार कहे. यह
बिलकुल सही बात है और उसे कई बार इसका अनुभव भी हुआ है जब वह ईश्वरीय विचार से दूर
चली जाती है स्फूर्ति का अनुभव नहीं करती. सत्कर्म करने के लिए सद्प्रेरणा और
सद्गुण उसे उन आदर्शों का सदा स्मरण रखने से ही मिल सकती है. संसार नीचे गिराता है
और मन नीचे के केन्द्रों में जाकर तामसिक वृत्ति धारण कर लेता है. सात्विक भाव बने
रहें इसके लिए प्रतिपल सजग रहना होगा. ईश्वर की अखंड अचल मूर्ति सदा सर्वदा आँखों
के सम्मुख रखनी होगी जो प्रेरित करती रहे. उन का बल, शक्ति और आशर्वाद मिलता रहे,
उनका स्नेह मिलता रहे और वह तभी सम्भव होगा जब वह उन्हें दिल से चाहेगी !
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