सतगुरू मेरा सूरमा, करे शब्द की चोट !
टीवी के माध्यम से उसे गुरू प्रतिदिन मिलते हैं, शब्द की चोट करते हैं, सदुपदेश
देते हैं, अंतः करण में उस परम शक्ति का आवाहन करने की प्रेरणा देते हैं, कभी-कभी
लगता है वह सही मार्ग पर जा रही है पर फिर असावधानी वश पीछे लौटना हो जाता है और
स्वयं को उसी स्थान पर पाती है जहाँ से चली थी. परसों सुबह संगीत कक्षा में गयी,
लौटी तो ध्यान आदि किया, भोजन बनाया, जून को फ़ील्ड जाना था. पूरा दिन उउपन्यास
पढ़ते या टीवी देखते गुजरा. कल सुबह-सुबह ही जून से गुस्सा हुई, लेकिन इतना तो
मानना पड़ेगा कि पता था गुस्सा हो रही है सो ५-१० मिनट से अधिक नहीं टिका, पर दिन
उसी तरह गुजरा जैसे शनिवार गुजरा था. कल रात भर डरावने सपने देखती रही, harry
potter मन मस्तिष्क पर जो छाया हुआ था. स्टार टीवी पर ‘आत्मा’ आ रहा है. गुरू माँ
ने भक्ति का महत्व तथा भक्त के लक्षण बताए.
“मन में भाव न हो तो
पूजा-अर्चना व्यर्थ है, ईश्वर के प्रति श्रद्धा का माप पूजा व आरती नहीं बल्कि
अंतर्मन में ज्ञान का दीपक जलाने से होता है. गुरुनानक ने कहा है उस परमेश्वर की
आरती का थाल यह गगन है, सूर्य, चाँद, तारे मानो उसमें दीपक जल रहे हैं, हवा, फूलों
और वनस्पतियों रूपी धूप की सुगंध फैला रही है और चंवर डुला रही है. ऐसे विराट
स्वरूप को क्या कोई मन्दिर में कैद कर सकता है ? मन्दिर की पवित्रता भी यदि किसी
के भीतर पवित्र भाव न जगा सकी तो वहाँ जाना या न जाना बराबर है. हर क्षण जो उसकी याद
में बीते, पूजा का क्षण है और हर स्थान पवित्र है, जितनी साँसें उसके स्मरण में
लीं वही सार्थक हैं और जितनी उसे भुलाकर समझें गंवा दीं”. आज गुरू माँ ने उपरोक्त
प्रेरणास्पद बातें कहीं. उसे लगा जैसे वह यह भी कह रही हों, सुबह-सुबह जब आकाश में
सूर्य उदय हो रहा हो तो अपने अंतर में भी ज्ञान का सूर्य उदय हो ! पंछियों की
चहचहाहट से जब बाहरी वातावरण गुंजित हो तो अंतर के प्रांगण में उसके नाम की गूँज
हो. वे मन्मुख न हों तथा अपने वास्तविक स्वरूप को पहचानें. अपने भीतर ही उच्च जीवन
की सम्भावनाएं छिपी हैं, सृजन की क्षमता है, सुख और आनंद का स्रोत है. कल जून पहले
की तरह के अपने मूल स्वभाव में आ गये थे, आज सुबह उसने संयम की बात कही तो
उन्होंने ‘जिद’ कहा. कभी न कभी यह संयम उन्हें भी सधेगा, तब मिठाई देखते ही उसे
खाने की इच्छा को नियंत्रित कर सकेंगे. आज नन्हे की गणित की परीक्षा है, कल अंग्रेजी
की हो गयी, उसका आत्मविश्वास बढ़ रहा है. बड़े भाई ने अभी तक फोन नहीं किया, ईश्वर
ही मदद करेगा.
“जब दिल में राग-द्वेष न
हो, स्वर्ग भीतर होता है, जब स्वयं को श्रेष्ठ दिखाने के लिए अन्यों को नीचा दिखाते
हैं तो हृदय में नर्क उत्पन्न होता है. जो व्यक्ति सामने न हो, उसकी बात करना उचित
नहीं है. अन्यों के कल्याण की बातें ही मन सोचे, चारों दिशाओं में शुभकामनायें
भेजे, जो हृदय की गहराइयों से निकली हों. सभी के प्रति, चाहे वे मित्र हों या
अपरिचित स्नेह भाव बना रहे. भूलकर भी कोई अप्रिय बात या कटु वचन अथवा भावना भी दिल
में न उपजे, तभी कोई ईश्वर का भक्त होने का दावा कर सकता है. हृदय पवित्र होगा,
स्फटिक की तरह चमकदार, झील के शांत पानी की तरह स्वच्छ और स्थिर तो उसकी झलक मिलती
है”. संतों के वचन उसे एक अनोखी दुनिया में ले जाते हैं, जहाँ प्रेम है, करुणा है,
हित की भावना है, उच्च विचार हैं, जहाँ भौतिक वस्तुओं के प्रति उतना ही आदर है
जिसके वे योग्य हैं पर मानसिक शांति व सुख की बड़ी पूछ है. आज नन्हे का गणित का
इम्तहान है.
साक्षी भाव का बड़ा सुन्दर उदाहरण दिया. पता था कि जून से गुस्सा हो रही हूँ! स्वयम को गुस्सा होते देखना एक अलग ही लेवेल से... यही तो है साक्षी भाव!
ReplyDeleteपरमेश्वर का होना ही बस उसकी उपस्थिति दर्शाता है. सारी कायनात में वो समाया है. हम मनुष्यों ने अपने अहंकार वश परमात्मा को अपने जैसा समझ लिया है और उसे मन्दिर में क़ैद कर दिया है! आपने तो परमात्मा को ऐसा चित्र खींचा है जिसने इस परिभाषा को पूरी तरह खरा बना दिया है!
गुरू माँ ने तो ईश्वर की सटीक व्याख्या कर दी साथ ही आराधना की भी.
अंतिम अंश भी बहुत ही प्रेरक है. कितनी सहज और व्यवहारिक व्याख्या है!! मन आनन्द से भर गया!!
सचमुच वह परमेश्वर न किसी परिभाषा में समा सकता है न मानव के बनाये मन्दिर में..वह तो एक अनुभूति है...जो बखानी नहीं जा सकती..स्वागत व आभार !
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