Tuesday, November 18, 2014

१०८४वें की माँ - महाश्वेता देवी की पुस्तक


मन जब पूरी तरह खाली होगा तभी परमात्मा का नाम गूंजेगा, जैसे किसी खाली हॉल में अपना नाम पुकारें तो गूँज सुनायी देती है न, ठीक उसी तरह यदि एक बार भी उसे पुकारें तो खाली मन से टकराकर वह बार-बार सुनाई देगा ! आज बाबाजी कथाएं सुना रहे हैं जिसमें उसकी रुचि नहीं है. कल जून लाइब्रेरी से कुछ पुस्तकें लाये, पी. वी. नरसिंहा राव का लिखा उपन्यास ‘अंतर्गाथा’ जो insider का हिंदी अनुवाद है. अज्ञेय व निराला की कविताएँ, महाश्वेता देवी का उपन्यास ‘१०८४ की माँ’ तथा भगवानसिंह की पुस्तक ‘अपने अपने राम’ ! सभी पुस्तकें उच्च कोटि की हैं पर कल कुछ पृष्ठ अंतर्गाथा के पढ़े सो कुछ स्वप्न देखे. जून आज से तीन दिनों तक art of living पर एक सेमिनार में जाने वाले हैं आज लंच पर देर से आएंगे. कल उस मित्र परिवार ने उनके साथ ही भोजन किया. दोपहर भर पढ़ती रही सो शाम को कुछ गर्मी की वजह से और कुछ पढ़ने की वजह से सिर में दर्द था पर अचानक एक क्षण ऐसा आया कि दर्द नहीं था, बिना दवा लिए इस तरह दर्द पहली बार ठीक हुआ है, वह तो इसे शुद्ध भगवद् कृपा ही मानती है ! ईश्वर हर क्षण उसके साथ है उसकी सहायता करता है. आज सुबह मन में एक भाव आया कि इस क्षण वह जीवित है, अपने घर में है, सुरक्षित है, स्वस्थ है, यह कितनी असीम कृपा है, वे नहीं जानते कौन सा क्षण उनके जीवन का अंतिम क्षण होगा, फिर उन्हें दुखी होने का क्या अधिकार है ऐसा करके क्या वे ईश्वर का अपमान नहीं कर रहे होते ! कल अज्ञेय की पुस्तक में एक सूत्र पढ़ा कि गद्य भाषा से लिखा जाता है और कविता शब्द से, कविता की मूल इकाई शब्द है ! इस पर अमल करते हुए शब्दों को क्रम में रखकर सोने से पूर्व एक कविता रची थी जो अब भी याद है, यदि वाक्य होते तो शायद भूल जाती.

यदि किसी के कार्य राग-द्वेष से प्रेरित होकर होंगे तो उद्वेग का कारण होंगे, लेकिन कार्य तो हरेक को करने ही होंगे. पूसी का बच्चा फिर नहीं बचा, उसने उसे बचाने के लिए कुछ भी नहीं किया, सफेद बालों वाला सुंदर जीव था, पूसी फिर एकाध दिन शोक मनाकर भूल जाएगी. पिछली बार जब ऐसा हुआ था उसने निर्णय लिया था अगली बार अवश्य उसे घर में रखेगी पर अपनी ही परेशानियों में उलझा रहने वाला मन दूसरों की पीड़ा कहाँ महसूस कर पाता है. अब जो दुःख उसे हो रहा है उससे बच गयी होती. आज दीदी का मेल दुबारा आया, उन्होंने अपना अकाउंट खोल लिया है, जून ने जवाब भी भेज दिया. अभी तक उसने स्वयं मेल भेजना सीखा नहीं है, सीखना ही होगा, कब तक इस कार्य के लिए जून और नन्हे पर निर्भर रहेगी. आज भी गर्मी बेहद है, जून का दूसरा दिन है, कल उन्होंने प्राणायाम सीखे. पीवी नरसिंहाराव की पुस्तक रोचक है, राजनीति का क्षेत्र विषमताओं से भरा होता है, जनता, पत्रकार, साथी कार्यकर्ता, रिश्तेदार, परिवार के लोग सभी अपना-अपना काम निकलवाना चाहते हैं. अभी दिन की शुरुआत है पर मन कैसा बुझा-बुझा सा लग रहा है. सुबह-सुबह पुसी का करुण रुदन सुना और बाद में उसके बच्चे का मृत घायल तन देखा, ऊपर से गर्मी का मौसम. मौसम का तो बस बहाना है, खैर, यह दुःख भी सदा रहने वाला नहीं है, सब बदलता रहता है, वक्त का पहिया घूमा करता है यूँही ! कल अमलतास पर कविता लिखने का प्रयास किया, इस वक्त भी कविता ही उसे आश्रय देगी पर उससे पूर्व ध्यान !

आज ‘गुरू पूर्णिमा’ है, गुरू का महत्व जीवन में सर्वोपरि है. उसके जीवन में भी गुरू की कमी झलकती है. साधना के पथ पर आगे जाते-जाते कब वह पीछे लौट आती है पता ही नहीं चलता, फिर स्वयं को उसी स्थान पाती है, श्रद्धा डोलती है, ध्यान सधता नहीं, मन पुनः-पुनः उन्हीं बातों की ओर लौटता है जो दुःख का नहीं तो द्वेष का कारण होती हैं. शुद्ध, मुक्त, पवित्र, असीम उच्च भावनाओं से युक्त मन ठहरता नहीं. आज उसने व्रत रखने का निश्चय किया है. आहार के साथ-साथ वाणी और मानसिक व्रत भी. जून ने कल ‘सुदर्शन क्रिया’ सीखी, उन्हें एक नया अनुभव हुआ, आज भी वे बहुत उत्साहित थे. कई वर्ष पूर्व उन्होंने ‘अन्तःप्राज्ञ’ कोर्स किया था तब भी ऐसे ही उत्साहित थे. प्राणायाम भी सिखाया है और ध्यान भी. आज शाम को इसी सिलसिले में क्लब में होने वाले कार्यक्रम में वह भी जा रही है. आज मौसम भी अनुकूल है. कल की भीषण गर्मी के बाद रात को वर्षा हुई. कल उसकी एक और कविता वापस आयी, इस क्षेत्र में भी उसे गुरू की जरूरत है, पर अब हरेक को अपना गुरू स्वयं ही बनना है. पहले भी वह स्वान्तः सुखाय ही लिखा करती थी अब भी वैसा ही करेगी अगर कभी ऐसा लगा कि बहुत अच्छा कुछ बन पड़ा है तभी भेजेगी. कल शाम को मेल भेजना सीखा, अभी प्रयोग शेष है. आज समय बहुत है जून दोपहर को घर नहीं आ रहे हैं. बाबा जी ने ह्रस्व, दीर्घ व प्लुत जाप का दस मिनट का नियम रात को सोने से पूर्व करने को कहा है. आज से करेगी. सुबह बिस्तर छोड़ने से पूर्व उनका बताया अभ्यास करने से बहुत लाभ हो रहा है. जीवन को सही मायनों में जीने के लिए गुरू का मार्ग दर्शन बेहद आवश्यक है !   



4 comments:

  1. शीर्षक देखकर चौंक गया और तस्वीर देखकर चुप लगा गया.. लेकिन मन नहीं मान रहा था.. बाद में जब आपने लिखा "1084 के माँ" तो तसल्ली हुई. मैंने पढी भी है किताब और फ़िल्म भी देखी है.
    ईश्वर के स्वर की गूँज की जो व्याख्या आपने सहज और सरल ढंग से कही वो सचमुच प्रभावशाली है... "ऊँ" या "ओंकार" की ध्वनि वही स्वर है ना!!
    अज्ञेय जी की व्याख्या सुनकर दिल खुश हो गया.. अभी दो दिन पहले बिल्कुल यही बात मैंने फेसबुक पर कही थी.
    पूसी की व्यथा एक माँ की हूक है... अफ़सोस होता है!!
    /
    ज़िन्दगी बहुत सख़्त होती जा रही है. अनियमित हूँ पर आपको पढना नहीं भूलता!

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  2. हाँ, ईश्वर के नाम की गूँज वही तो है...कभी मन बिल्कुल खाली हो तो भी कुछ तो सुनाई देता है न..वाह, अज्ञेय जी की बात आपने फेसबुक पर कही है, उस दिन शब्दों को जोड़कर जो कविता लिखी थी पढ़ना चाहेंगे, जिन्दगी कितनी भी सख्त हो परमात्मा के अदृश्य हाथ का कोमल स्पर्श एक क्षण के लिए भी हमसे विलग नहीं है, आपकी टिप्पणी बहुत अर्थपूर्ण होती है, इसी तरह पढ़ते रहें और समय मिलने पर लिखते रहें. आभार !

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  3. वो कविता अवश्य शेयर करें.. अच्छा लगेगा! मैंने फेसबुक पर एक कविता बहुत पहले लिखी थी जो मेरे और परमात्मा के रिश्ते को रेखांकित करती है..
    .
    मुझे भूल जाने की अजीब आदत है
    ये बात सब जानते हैं
    जो मुझसे प्यार करते हैं
    मुझे चाहते हैं.
    आने का कहकर न आना
    लाने का कहकर न लाना
    जाने का कहकर न जाना
    लोग बुरा नहीं मानते इन बातों का
    क्योंकि सब जानते हैं
    मुझे भूल जाने की अजीब आदत है.
    रात जब सोने जाता हूँ
    तो ‘वो’ हिफाज़त करता है मेरी
    चलाता रहता है साँसें मेरी
    साँसों के साथ ऑक्सीजन का जाना
    साँसों के साथ कार्बन डाईऑक्साइड का आना
    सब उसी पर छोडकर सोता हूँ मैं
    कहीं भूल न जाऊं मैं साँस लेना
    इसलिए ‘वो’ चलाता रहता है
    मुझे याद रखने की ज़रूरत नहीं
    मुझे भूल जाने की अजीब आदत है!
    .
    और आपकी ओंकार की ध्वनि शायद सम्वाद है उसके साथ!!

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  4. बहुत सुंदर कविता है यह...उसके साथ कोई भी संवाद हो मधुरता वही भर देता है...वह कविता अवश्य लिखूंगी एक दिन

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