गुरू एक डाकिया है जो ईश्वर और मानव के
बीच एक माध्यम है जो ईश्वर की सत्यता का परिचय मानव से कराता है, ऐसा उसे लगता है,
रोज सुबह टीवी के माध्यम से गुरु आते हैं और प्रेरणादायक संदेश देते हैं. आज सुबह
दीदी का इमेल आया, छोटी बुआ की तबियत ठीक नहीं है, पिता वहाँ गये हैं. बुआ का जीवन
बचपन से बेहद संघर्षमय रहा है, माता-पिता ने बड़ी उम्र में बेटी को जन्म दिया,
शिक्षा पर कोई ध्यान नहीं दिया, वही उनकी सेवा में लगी रही. विवाह भी हुआ तो बड़े संयुक्त
परिवार में. कुछ वर्ष बाद पति के साथ अलग रहीं पर उन्हें फालिज का अटैक हुआ और पति
उन्ही पर निर्भर हो गये. अंततः वे विधवा हो गयीं. नौकरी करके बच्चों को पढ़ा रही
हैं पर बेटा दो बार फेल हो गया. इसी गम में शायद अस्वस्थ हो गयी हैं. मनोवैज्ञानिक
को दिखाना पड़ा है. उनके बेटे से अभी फोन
पर बात की काफी ठीक-ठाक संयत भाषा में जवाब दिए, बच्चों की अपनी एक दुनिया होती है
इस उम्र में, वह माँ-बाप को उसमें एक सीमा तक ही प्रवेश करने देते हैं. कल उसने आम
का आचार बनाया, जून और नन्हे ने भी पूरा योगदान दिया.
साधक को पग-पग पर अपने व्यवहार
को आचरण की कसौटी पर कसना चाहिए. अपने मन के वस्त्र को धोते-धोते कहीं यह और गंदा
न हो जाये, अभिमान की धूल न उस पर लग जाये. पानी पीते हुए भी यदि प्यास नहीं
बुझती, तो इसका अर्थ है पानी नहीं पीया होगा. इसी तरह मन में ईश्वर को धारण करते
हुए भी यदि आनंद नहीं है तो अर्थ है कि...कल सुबह उसकी संगीत अध्यापिका के पतिदेव
का फोन आया आठ दिन बाद होने वाले एक हिंदी नाटक में उसे अभिनय के लिए कहा है. जून
भी मान गये हैं. कल शाम उसे जाना था पर उसी समय एक मित्र परिवार मिलने आ गया.
आज बाबाजी ने मंत्रों की
महत्ता पर प्रकाश डाला. गायत्री मंत्र का महत्व सबसे अधिक है. ‘ओं नमो नारायण’, ‘ओं
नमो भगवते वासुदेवाय’ तथा ‘ॐ नमो शांति शन्ति शांति’ का जाप भी फलदायक है. उन्होंने
नींद लाने के लिए, पाचन शक्ति के लिए भी मंत्र बताये जो उसे याद नहीं हुए. कल शाम
को रिहर्सल ठीक-ठाक ही रही, अभी नाटक प्रारम्भिक स्टेज पर है, सिर्फ एक हफ्ते का समय
है. आज पड़ोसी और उनके बेटे को लंच पर बुलाया है, पड़ोसिन नहीं है कुछ दिनों के लिए.
कल जून को चेक मिल गया जिसे जमा करके उन्हें मकान के पेपर्स मिल जायेंगे.
आज ग्रीष्मावकाश के बाद
नन्हे का स्कूल पुनः खुला है. गर्मी पूर्ववत है, उसने सफाई के कार्य को टाल दिया
है, दोपहर को नैनी की साड़ी में पीको करना है. नाटक की रिहर्सल कल भी ठीक रही, उसे
डायलाग याद हो गये हैं लेकिन उनमें जान डालनी होगी. ‘जागरण’ में गोयनका जी का
प्रवचन सुना, विपासना समझ में तो खूब आती है और जब भी अभ्यास किया है लाभ भी हुआ
है लेकिन नियमित नहीं, बाबा जी मंत्रोच्चार पर आज भी जोर दे रहे थे. आज ध्यान से
पहले इसे भी करना है लेकिन उसे एक रास्ता पकड़ना चाहिए एक साथ दो नावों में पैर
रखने से डूबने का खतरा ही ज्यादा है. धूप धीरे-धीरे कम हो रही है, शायद वर्षा
होगी. कल शाम वे एक मित्र की बेटी को देखने गये, जो अस्वस्थ है. वहाँ अनुपम खेर के
साथ बच्चों का एक कार्यक्रम देखा, बहुत अच्छा लगा. दीदी को इमेल भेजना था पर सर्वर
काम नहीं कर रहा है.
आज बहुत लम्बे अंतराल के बाद यहाँ आना, छुट्टियों से लौटकर घर आने जैसा लग रहा है. मगर कुछ असहज भी, जैसे पहचानने की कोशिश कर रहा हूँ. नन्हा, जून और लोग आज नहीं दिख रहे हैं. गुरुजी के प्रवचन हैं.
ReplyDeleteसूफ़ी परमपरा तो पूरी तरह गुरू और शिष्य के सम्बन्धों के माध्यम से परमात्मा को उपलब्ध होने के दर्शन पर आधारित है. गुरू तो बस परिचय कराते हैं सत और असत से, मार्ग तो स्वयम बनाना पड़ता है.
बुआ जी के बारे में जानकर बड़ा दु:ख हुआ. एक अच्छे मनोचिकित्सक की मदद से तथा परिवार के लोगों के सहयोग से उनकी स्थिति में सुधार अवश्य होगा!
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पुनश्च: कुछ और भी कहना था, लेकिन इतने दिनों बाद आते ही शुरू हो जाऊँ, इसलिये चुप लगा गया हूँ!
सभी को मेरा नमस्कार कहियेगा!
सुस्वागतम...लगभग पंद्रह पोस्ट आपने नहीं पढ़ी हैं..अब समय बदलेगा तो जीवन भी बदलेगा...जीवन तो प्रतिपल आगे बढ़ता जाता है...आभार !
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