Friday, November 21, 2014

विनोबा की गीता


आज नन्हे का जन्मदिन है, सुबह उठी फोन की घंटी की आवाज सुनकर, उसके दादाजी का फोन था, उसके बाद नानाजी का, छोटे मामा-मामी तथा बड़ी बुआ व फूफा ने फोन द्वारा मुबारकबाद दी, नन्हा तो स्कूल चला गया था उन्होंने ही सबसे बात की. कल जून ने उसे मित्रों के लिए ढेर सारी चाकलेट्स लाकर दीं जो वह स्कूल में बाँटने वाला है. आज उसे उन्होंने कार्ड व उसने कुछ रूपये दिए पर उसके लिए पैसों का कोई महत्व नहीं है, उसे वापस आलमारी में रखने को कह गया है. एक तरह से अच्छा ही है, पैसों को उतना ही महत्व देना चाहिए जितने के वे हकदार हैं. ईश्वर की उन पर कृपा है कि उनकी जरूरत की सभी वस्तुएं प्रदान कर रहा है. बाबाजी ठीक कहते हैं ईश्वर प्रतिक्षण कृपा बरसा रहा है, उसकी प्रतीक्षा नहीं करनी है बस समीक्षा करनी है. आज शाम को एक मित्र उनके साथ भोजन खायेंगे, नन्हे के लिए विशेष डिनर बना रही है, कल दोपहर केक बनाया था. मौसम आज अच्छा है. कल शाम जून ने उसे प्राणायाम सिखाया पर सुदर्शन क्रिया बिना सीखे करना उचित नहीं है. सतत् अभ्यास से सम्भवतः वह कभी कर पाए. पिता से आज बहुत दिनों बाद बात की, उन्हें बताया कि उनके लेख नन्हे के काम आ रहे हैं. उनकी डायरी से वह आजकल विनोबा का गीता पाठ करती है, यह नहीं बताया. उनका सबसे बड़ा उपहार यही है. 

आज उसे RCT के लिए जाना है. उस सखी के लिए डिब्रूगढ़ भोजन भिजवाना है और  वे सारे कार्य करने हैं जो रोज की दिनचर्या में शामिल हैं. कल दोपहर बाद बड़े भाई का फोन आया नन्हे के लिये बधाई दी और यह भी कहा कि उसकी किताब के लिए उन्होंने अपने सहयोगी ( नाम वह भूल गयी है ) को कहा है. आज सुबह गुरू माँ ने सक्रिय ध्यान की विधि सिखाई, सुदर्शन क्रिया से मिलती-जुलती ही है. कहा कि जिन्हें शरीर से ज्यादा मोह होता है उन्हें ही डर लगता है, सो डरने की कोई बात नहीं है. बाबाजी का प्रवचन भी अति उत्साह देने वाला था. लोग चिंता इसलिए करते हैं क्योकि चिंता करना उनका स्वभाव ही बन गया है कमियां ढूँढने में दक्ष हो जाते हैं. नकारात्मक दृष्टिकोण अपनाये रहते हैं तभी सारी परेशानियाँ चारे वे शारीरिक हों, मानसिक हो, अथवा आध्यात्मिक हों उत्पन्न होती हैं ! ईश्वर के प्रति कृतज्ञता का भाव प्रकट करना या आभार प्रकट करना तो दूर, वे सदा उससे शिकायत ही करते हैं. यह सुंदर जगत जिसे देखने, समझने और महसूस करने का सुअवसर उसने दिया है, जिसे वे खुद के लिए जंजाल बना लेते हैं. यदि वे अपने सम्मुख आने वाले अवसरों को ईश्वर का वरदान मानें और उनका सदुपयोग करते चलें, मन को सात्विक भावों से परिपूर्ण रखें और एक क्षण के लिए भी उस शक्ति को न भूलें जो सदा उनके साथ है तो कोई भय नहीं !

It’s a lovely morning, typical Assam weather, it is raining since night, breeze is cool just now she finished her “Pranayam and Meditation”,  yesterday dentist did the white filling in her tooth cavity, RCT was not required, she was unnecessary worried since last one month. After so many weeks or month she has switched over to English and finding it difficult, her handwriting as well as sentence making and vocabulary also spelling… all need attention. Last few months she read more hindi books than English. But English is as well as important. Jun is going to Dibrugadh on official trip, he will go to hospital also. Tomorrow she will also go to visit them. She has to send Rakhis this week and also e-mails to all. Yesterday evening they went to a anniversary party. Day after tomorrow Pakistan’s President General Musharraf is coming to India, 750 journalists are going to Agra to cover this historical summit of two leaders, hope something useful and good for both countries comes out of this effort. All is in their hands in fact in their mind.

Today she got up hearing jun’s practice. Nanha got up late and then got his left hand hurt. Jun was upset but when he forgot his water bottle he took it and followed his school bus. He loves him very much and it is natural. And when he sees misbehaving it is natural for him to get upset but with her it is different. Last night he was silent for some reason but did not tell her but in the morning after practice he was happy and then this Nanha;s episode. Any way she should concentrate on positive things, on the discourse by Guru Ma. Today she is telling about Bhakti of Gopies.



2 comments:

  1. सबसे पहले नन्हा को जन्मदिन की बधाई!! हमारे यहाँ बच्चों के जन्मदिन पर दोपहर में फ़ोन करने का रिवाज़ है. तब तक बच्चे स्कूल से लौट आते हैं. अच्छा लगता है बधाइयाँ बटोरना. पैसों को ज़रूरत से ज़्यादा महत्व नहीं देना एक बड़ा हे अच्छा गुण है. मेरे ऑफिस का एक कैशियर था वो नोटों के बण्डल पैरों के नीचे रखता था. मैंने एक दिन उसको टोका तो उसने जो जवाब दिया वो अपने आप में दर्शन था. वो बोला - सर! ये सारे पैसे मेरे नहीं हैं, इसलिये मेरे लिये तो बस पैरों की धूल जैसे ही हैं. पैसों को जितना सर पे चढ़ाओ, उतना सर चढकर बोलने लगते हैं!!
    गाँठ बाँध ली मैंने भी ये बात!!
    और हाँ "भोजन खाएँगे" नहीं, "भोजन करेंगे" और "खाना खाएँगे" :)
    बहुत पसन्द आई यह बात कि जिनको जीवन का मोह होता है वही डरते हैं! वास्तव में मृत्यु का सतत स्मरण ही अमरत्व की कुंजी है. सारे भय निकाल देता है मन से.

    Language, whether Hindi or English, unless it does not flow naturally, it is not "owned". I have seen many people expressing themselves using such words which speaks loudly that its borrowed. Even in my blog I always try to SPEAK than to WRITE. Your own words, if given proper respects will definitely earn respect for you.

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  2. सही है कि धन को उतना ही महत्व दिया जाना चाहिए जितना जरूरी है, पर पैरों के नीचे नोटों के बंडल रखना मेरे विचार से उसका अनादर है, खैर..हर व्यक्ति भिन्न है.
    भाषा के विषय में आपकी बात बिलकुल सही है. आभार !

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