उठ जाग मुसाफिर भोर भयी, अब रैन कहाँ जो सोवत है, जो
जागत है सो पावत है जो सोवत है सो खोवत है ! यह निद्रा अज्ञान की है जिससे जितनी
शीघ्र जागे उतना ही अच्छा. हृदय में शुद्ध प्रेम जगे तभी यह अज्ञान मिटता है और
अज्ञान मिटे तो प्रेम अपने आप उपजता है ! वस्तुओं या व्यक्तियों में यदि आसक्ति हो
तो शरीर नष्ट हो जाने के बाद भी आसक्ति का नाश नहीं होता, प्राप्ति होने पर बल का
नाश होता है, न मिलने पर दुःख होता है. ऐसा कोई सुख भोग नहीं जिसके पीछे भय-रोग
नहीं ! सुख और मान लेने की वस्तु है ही नहीं देने की वस्तु है. किन्तु यही आसक्ति
यदि सत्पुरुषों और सद्विचारों के प्रति हो तो यह कटती है और धीरे-धीरे शुद्ध प्रेम
में बदल जाती है. परमात्मा में विश्वास ही उसमें आसक्ति है और उसकी प्राप्ति ही अंतर
में जगा शुद्ध प्रेम है. शुद्ध प्रेम मुक्त रखता है, मुक्त होता है. आज बाबाजी
प्रवचन देते-देते मौन हो गये, ईश्वर की असीम करुणा का वर्णन करते हुए कहा जो भी
विपत्तियाँ ईश्वर देता है वह नश्वर से शाश्वत की तरफ मोड़ने के लिए ही देता है,
अपने भीतर की शक्ति को पहचानने के लिए ही देता है. कल दोपहर उसकी आँख लग गयी, एक भव्य
मकान में घूम रही थी, पर वे उसमें किराये पर रहते हैं. आलीशान संगमरमर का मकान है
जो कई भागों में बंटा है, पहले भी कई बार इसी तरह का स्वप्न देख चुकी है. सीढ़ियों
से नीचे उतरने के कई रास्ते हैं, वह सदा भूल जाती है, कौन सा रास्ता उनके घर की
तरफ ले जाता है. कल ‘सरसों’ वाले आलू बनाये, आज भी एक नई डिश बनानी है, ‘तोरई’ की
जिसकी रेसिपी जून इंटरनेट से लाये हैं. कल शाम एक सखी ने ढेर सारे नींबू भिजवाये,
दो सखियों से फोन पर बात की अच्छा लगा, एक के लिए आम तोड़े, अभी भिजवाने हैं.
आज बहुत दिनों के बाद
सम्भवतः एक वर्ष के बाद वह संगीत अध्यापिका के घर गयी, सचमुच गुरू की बेहद-बेहद
आवश्यकता है. सुबह-सुबह जागरण में भी बाबाजी गुरू की आवश्यकता पर बल देते हैं. आज
अमृत कलश में एक पत्रकार, जो मुस्लिम थे पर जिनकी भाषा शुद्ध हिंदी थी, को सुना.
बहुत सी नई बातों का इल्म हुआ. रेगिस्तान में पनपे धर्मों का रूप वहाँ की भौगोलोक
स्थिति की देन है और नदियों के किनारे पनपे धर्मों का रूप जुदा है. यहाँ लकड़ी की
बहुतायत थी सो लोग मृतक के शरीर को जलाने लगे और रेगिस्तान में मीलों तक फैली जमीन
थी एक तिनके का भी पता नहीं मिलता था सो दफनाने लगे. धीरे-धीरे वह धर्म का रूप
लेता गया और कट्टरवाद को जन्म मिला. भौगोलिक और ऐतिहासिक जरूरतों की वजह से पनपा
धर्म बंधन बनकर इन्सान के पैरों में लिपट गया. कल्चर और संस्कृति का भेद भी
उन्होंने स्पष्ट किया.
सत्ता एक की है, जैसे आकाश
एक है, घड़े अनेक हैं ! यह ज्ञान नहीं है इसलिए भेद दिखता है. जैसे कमरे में समान
पड़ा हो, अँधेरे में वहाँ जाने पर टकराने की सम्भावना रहती ही है, इसी तरह हृदय में
अज्ञान का अंधकार हो तो कुछ स्पष्ट नहीं दीखता, ठोकरें ही मिलती हैं. ईर्ष्या,
जलन, डाह, हीन भावना ये सभी ठोकरें ही तो हैं. ज्ञान हो तो इनमें से एक की भी
सत्ता नहीं रहेगी. इस जगत में न जाने कितने जीव वास करते हैं. इसकी गति को सिवाय ईश्वर
के और कोई नहीं जान सकता. सुबह उठी तो रात्रि में देखा कोई स्वप्न याद नहीं था पर
देखे थे इतना याद था. जैसे स्वप्न में सब सत्य प्रतीत होता है लेकिन होता वहाँ कुछ
भी नहीं है, उसी तरह यह संसार भी स्वप्नवत् है. कल जो था वह आज नहीं है, आज जो होने वाला है कल नहीं
रहेगा. जीवन का क्रम यूँही चलता चला जायेगा. दीदी व छोटे भाई का मेल आया है. सुबह
बड़ी ननद से बात की, आज एक सखी आने वाली है पता चला है उनकी ट्रेन लेट है. आज
गोयनका जी भी आये थे, बड़ी सरल भाषा में विपासना की विधि समझाते चलते हैं, देह एक
पाँचों तत्वों को किस तरह अनुभूति के स्तर पर जाना जा सकता है, आज बताया. उनकी
बातें वैज्ञानिक होती हैं और बाबाजी की भक्तिभाव से परिपूर्ण !
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