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Monday, July 23, 2018

सादिया देहलवी की किताब



कल रात्रि व परसों भी अद्भुत अनुभव हुए. जैसे ही किसी वस्तु का विचार आया, वह वस्तु साकार हो उठी, दिखने लगी, रंग भी स्पष्ट थे. आज संगीत का सुंदर अनुभव हुआ. उनके भीतर कितने राज छिपे हैं. आज भी मूसलाधार वर्षा हो रही है. मौसम ठंडा हो गया है. शाम को एक जून के एक सहकर्मी आ रहे हैं, गोल-गप्पे खाने, अपनी नन्ही बिटिया के साथ. कल राम नवमी थी, शाम को ‘राम ध्यान’ करवाया. ध्यान ही सिखाता है कि उनका असली घर उनके होने में है. एक खास तरह से होने में, वे अपने वास्तविक स्वरूप को व्याप्त रहें उस तरह होने में ! उन्हें खुद पर भरोसा करना सीखना है और खुद से प्रेम करना भी. इसी तरह सभी के भीतर उस असीम सत्ता का अनुभव करना है, तब सभी आपस में जुड़े हैं.

अवकाश समाप्त हो गया है, किन्तु आज असम बंद के कारण स्कूल नहीं खुला. एक अध्यापिका पति की सेवा निवृत्ति के बाद यहाँ से जा रही है, उससे मिलने चली गयी. विद्यालय के पुस्तकालय के लिए उसने कुछ पुस्तकें दी हैं. वापसी में गेस्ट हॉउस के बगीचे में उगे सुंदर फूलों के चित्र उतारे, बंगाली सखी के घर भी गयी, वह हाल ही में विदेश घूम कर आई है. जून के एक सहकर्मी को खेलते समय कंधे में चोट लग गयी, एक महीने से प्लास्टर लगा था, अब पता चला आपरेशन करवाना पड़ेगा. छोटी सी भूल कभी-कभी कितने विकराल दुख का कारण बन जाती है.

आज भी दिन भर वर्षा होती रही. सुबह वे टहल कर आये ही थे कि बूँदें पड़नी शुरू हो गयीं, इसी तरह स्कूल में भी योगकक्षा के समय वर्षा रुकी रही, मैदान में बच्चे एकत्र हो सके. नैनी ने पूरे दस दिनों के बाद आज से काम पर आना शुरू कर दिया है. शाम को मालिन को उसका मेहनताना देने के लिए बुलवाने बाहर गयी तो देखा वह स्वयं ही आ गयी थी, विचार भी संदेशा पहुँचा देते हैं. पिछले कुछ दिनों से सूफिज्म पर ‘सादिया देहलवी’ की किताब पढ़नी शुरू की है, अच्छी लग रही है. आज एक महिला दर्जिन ने आकर एक प्रार्थना पत्र दिया, क्लब के एक प्रोजेक्ट में उसे सिलाई सिखाने का काम चाहिए, प्रेसिडेंट के आने पर उनके घर भिजवा देगी. नन्हे से उसने कहा, तो वह मान गया, कालेज के अनुभवों पर कुछ लिखेगा, पर उसे इसके लिए समय निकालना होगा.

आज भी वर्षा सुबह से थमी नहीं है, वे प्रातः भ्रमण के लिए भी नहीं जा पाए. प्राणायाम के बारे में सुना, नाश्ते के बाद छाता लेकर ट्रैक पर टहलने गयी. दोपहर को ओशो से ‘ताओ’ के बारे में सुना. क्लब की एक सदस्या से प्रतियोगिता के लिए हिंदी कविता लिखने के लिए कहा, तथा काव्य पाठ प्रतियोगिता में भाग लेने के लिए भी. इस समय संध्या के पांच बजे हैं, वर्षा तेज हो गयी है, जून अभी तक नहीं आये हैं. उसका मन एक अजीब सी मस्ती में डूबा हुआ है, वर्षा पर दो कवितायें भी लिखीं, कल पोस्ट करेगी. बूंदों के रूप में परमात्मा की कृपा ही मानो बरस रही है ! प्रकृति रहस्यमयी है, न धरती कुछ करती हुई प्रतीत होती है न ही अम्बर और दोनों के मध्य जल की धाराएँ प्रवाहित होने लगती हैं. जल जो सागरों से उठा होगा चुपचाप जाने किन हवाओं ने उसे यहाँ तक पहुँचाया होगा और किन नदी-नालों से होता हुआ एक दिन पहुँच जायेगा सागरों तक पर मध्य में कितनों की तृषा शांत करेगा, कितनों की क्षुधा भी, धरती को उर्वरा बनाकर और पोखरों को जल से भरकर, जाने कैसा अनुबंध है धरती और अम्बर में, परमात्मा भी जनता है या...वही कर रहा है यह सब !