Thursday, September 22, 2016

दीवाली के कार्ड


कोई है जो हर क्षण जागता रहता है, उनके भीतर वह साक्षी ही उनका वास्तविक मित्र है. मन, इन्द्रियों से परे जो एक शांत अवस्था है उसी का नाम है साक्षी भाव ! कल रात ऐसा लगा कि सोते-सोते भी कोई भीतर जगा हुआ था ! कल सत्संग में दो भजन गाने वाली सखियाँ आयीं, गाने की बारी उसकी भी आयी. कल बहुत सी पत्रिकाएँ, किताबें तथा पेपर्स निकाले, घर में सामान जितना कम हो उतना अच्छा है, एक दिन सारे कार्ड्स भी निकाल देने हैं अथवा तो उन्हें रहने देते हैं कितनी यादें जुड़ी हैं उनसे..दीवाली पर सबको कार्ड्स भेजने का उत्साह जगा है, पिताजी, तीनों भाई, चचेरे व फुफेरे भाई सबको भेजेगी बहनों को भी..आज सुबह वेद ज्ञान सुना, कितने अद्भुत श्लोक हैं, आत्मा को बलशाली बनाने की ही सारी प्रार्थनाएं हैं. कल ओशो को सुना हरेक को अपने ईश्वर का निर्माण स्वयं करना है उसकी माँ बनना है. इसका भी अर्थ वही है कि उन्हें स्वयं को शक्ति से भरना है. आत्मा को जागृत करना है. मन, बुद्धि के पार जाकर एक ऐसी शून्यावस्था का अनुभव करना है जो प्रेम, शांति व ज्ञान से ओत-प्रोत है. उनका छोटा मन जब शांत हो जाता है तो आत्मा जो सदा से वहीँ है उजागर हो जाती है, वह आत्मा ही अपने शुद्धतम स्वरूप में परमात्मा है जब वह देह से परे होती है, वासना तथा तृष्णा से मुक्त होती है, उसे भी अपने भीतर उस आत्मशक्ति को परिपक्व करते जाना है, व्यर्थ विचारों से स्वयं को बचाना है, ऊर्जा बचानी है ताकि वह ऊर्जा ध्यान में सहायक हो. लेखन में, पठन में सहायक हो. ऊर्जा को व्यर्थ गंवाया तो भीतर नकारात्मकता छाएगी स्वयं को आत्मा रूप में अनुभव करने के बाद भी यदि कोई उदास रहे तो ...कहीं कुछ धोखा है..हँसी ही उनकी पहचान हो और शांति उनका घर..प्रेम उनका स्वभाव..कल छोटी बहन से बात हुई, वह भी खुद की तलाश में लगी है, यात्रा जारी है, एक दिन मंजिल भी मिल जाएगी. आज देखा, गीतांजलि के भावानुवाद पर कुछ कमेंट आये हैं तथा तीन महिलाएं फ़ॉलो भी कर रही हैं. अभी कितनी कविताएँ ब्लॉग पर डालनी हैं. कल लक्ष्मी पूजा का अवकाश है. जून नयी गाड़ी ले रहे हैं. अपने भोजन का खास ख्याल रखते हैं, दर्द भी कम हो गया है. अगले महीने मेहमान आ रहे हैं घर की सफाई का काम ठीक चल रहा है अब कुछ ही शेष है. बड़ी भांजी को निबन्ध के लिए कुछ जानकारी भेजनी थी, वही काम शेष रह गया है.


होश को कायम रखना तलवार की धार पर चलने जैसा है, बार-बार मन फिसल जाता है, पुराने संस्कारों का शिकार होकर वाद-विवाद में फंस जाता है. अहंकार अपना सिर उठाने लगता है, भीतर कोई देख रहा है, साक्षी है, यह भाव खो जाता है. जाग-जाग कर भी वे सो जाते हैं, लेकिन जैसा कि सद्गुरू कहते हैं पहले तो इतना भी होश नहीं था कि वे अज्ञानी हैं, कम से कम अब अपने अज्ञान का बोध तो होता है ! पांच एम्पीयर का एक स्विचबोर्ड लगाने दो लोग आये हैं, शोर हो रहा है पर बाहर का यह शोर भीतर की शांति को भंग नहीं करता, उसे तो भीतर का शोर ही भंग करता है. अभी एक सखी को फोन किया सुबह उनके यहाँ फूल भिजवाये थे, लगता है वह कुछ परेशान है या व्यस्त है. धीरे-धीरे स्पष्ट होता जा रहा है कि सारे संबंध ओढ़े हुए होते हैं, वे अपनी सुविधा के अनुसार जब चाहे उन्हें उतार देते हैं, जब चाहे पहन लेते हैं ! यहाँ हर कोई अपने आप में एक द्वीप है. उन बुजुर्ग आंटी की शिकायत कम होने में नहीं आती, बढ़ती ही जाती है यहाँ माँ की भी. अभी-अभी उस सखी का फोन आया, उनके यहाँ भी बिजली नहीं है. उनका जीवन जितना सुविधाजनक होता जाता है उतने ही वे बेहोश होते जाते हैं. 

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