पिछले चार दिन व्यस्तता में बीते. पहला
दिन रविवार था, सोमवार को एक सखी के यहाँ गयी थी, शाम को नन्हे को पढ़ाने में
व्यस्त थी, मंगल, बुध को शाम को खेलने भी नहीं जा पाई. आज नन्हे का पहला इम्तहान
है, गणित का तैयारी ठीक हुई है, अब उसके अपने ऊपर है. जितनी चिंता उसे है उससे
ज्यादा नहीं तो उतनी उन्हें भी है, जून से थोड़ी ज्यादा उसे है, अभी सोशल साइंस का
पेपर बनाना है. इस तरह छोटे-छोटे इम्तहान देते वह एक दिन जिन्दगी के बड़े इम्तहान देने
के योग्य भी बन जायेगा. सुबह के दस बजे हैं, अभी-अभी ‘सोना चाँदी’ पीटीवी का एक
हास्य धारावाहिक देखा. आज बगीचा बहुत साफ-सुथरा लग रहा है, कल ही घास काटी गयी है.
गुलाबी फूल इसकी शोभा बढ़ा रहे हैं. कल जून ने क्लब की पत्रिका के लिए लिखी उसकी
दूसरी रचना भी टाइप कर दी है कम्प्यूटर पर. उन्होंने यह भी कहा, वह लिख सकती है और
उसे कुछ कविताएँ हिंदी पत्रिकाओं को भी भेजनी चाहिएं. उसने सोचा कि उन्हें कहेगी
वह सिर्फ लिख सकती है उन्हें टाइप करने, भेजने का काम उसके बस के बाहर है. वह जानती है उसके कहने पर वे ये काम भी कर देंगे.
उन्हें अगले महीने शायद मद्रास जाना पड़े, उनकी विवाह की सालगिरह पर उसे अकेले रहना
होगा.
कल नन्हे ने परीक्षा में
एक प्रश्न का उत्तर नहीं लिखा, आते हुए भी भूल से छूट गया, बहुत देर तक परेशान था,
लेकिन बाद में भूल गया, अपनी गलतियों पर देर तक दुःख मनाते रहना भी कहाँ की बुद्धिमानी
है? हाँ, इतना जरुर है कि वही गलती भविष्य
में न करे. आज ठंड ज्यादा नहीं है, धूप निकली है चाहे धुंधली सी ही है. नन्हे और
उसके मित्र को बस में बैठकर जब वह और पड़ोसिन लौट रहे थे तो उसने अपनी परेशानी के
बारे में बताया, वह अपनी लम्बी बीमारी से घबरा गयी है. नूना को लगता है, किसी भी
तरह से उसकी सहायता करे, उसने सोचा जब भी समय मिलेगा वह कुछ देर के लिए उसके पास
जाएगी. उसे मेडिकल गाइड में दिल के बारे में पढ़ना भी चाहिए.
पिछले कई दिनों से कुछ
नहीं लिखा. इस पल अचानक महसूस होने लगा, कहीं कुछ छूट रहा है, जो पकड़ में नहीं आ
रहा. दिल में एक हौल सा उठ रहा हो जैसे, अकेलेपन का एक अहसास कचोटने लगा है. यह
साल विदा लेने को है, सिर्फ तीन दिनों के बाद एक नया साल आ जायेगा कुछ नई उम्मीदें
और नये सपने लिए. इस बार आने वाले साल के लिए कोई कविता नहीं लिखी, कोशिश ही नहीं
की. नये वर्ष के कार्ड आने शुरू हो गये हैं जैसे उन्होंने भी सभी को भेजे हैं, उन
सभी को जिन्हें इस विशाल संसार में अपना कहते हैं, जिनसे उनका परिचय है अगर वे लोग भी न होते तो वे कितने
अकेले होते....
वर्ष का अंतिम दिन, समय,
शाम के सात बजे हैं. वे लोग डिश एंटीना पर ‘जी टीवी’ पर नये वर्ष के उपलक्ष में
कार्यक्रम देख रहे हैं. वे बहुत खुश हैं. कल एक मित्र परिवार के साथ तिनसुकिया गये
थे, खाना भी बाहर खाया, जून ने उसे एक पुलोवर उपहार में दिया, विवाह की वर्षगाँठ
के लिए. आज साल के अंतिम दिन बीते साल की की बातें याद आ रही हैं, कुल मिलाकर यह
वर्ष अच्छा बीता लेकिन कुछ घटनाएँ ऐसी भी हुईं जो दुखद थीं जैसे हरियाणा में हुआ
अग्निकांड.
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