कई वर्ष पहले उसने पढ़ा था, हर व्यक्ति अंततः अकेला होता
है, एक ही घर में बरसों तक साथ रहने वाले लोग भी एक दूसरे को पूरी तरह नहीं जान
पाते, इन्सान खुद को तो जानता नहीं तो भी अन्यों को जानने का दम भरता है. लेकिन वह
यह मानती थी कि उनके साथ ऐसा नहीं होगा, वे एक दूसरे को भली-भांति जानते हैं. लेकिन इस क्षण उसे लग
रहा है, ऊपर की बात ही सही है. उसे लगा उनका रिश्ता भय पर टिका है न कि प्रेम पर, या तुलसी दास की बात ठीक है,
‘भय बिन होत न प्रीति गुसाईं’.....या मीरा की भी, ‘जो मैं ऐसा जानती प्रीत करे
दुःख होए’...हो सकता है वह ओवर रिएक्ट कर रही हो, शायद उसका मन अभी ठीक नहीं है, पर
कल शाम को जो हुआ उसकी उसने कल्पना नहीं की थी, कल शाम एक मित्र परिवार मिलने आया,
वह कमरे में लेटी थी, उठने का जरा भी मन नहीं था सो बाहर नहीं गयी, वे कुछ देर
रुके फिर चले गये, उसे लगा कि जून कारण पूछेंगे और उसकी बात समझेंगे, पर उसे झेलना
पड़ा उनका क्रोध. उसने सोचा, समझदार होने का, शांत रहने का, मन की बात मन में ही
रखने का अधिकार तो स्त्रियों को जन्म से ही मिला हुआ है, यह तथाकथित समानता
की बातें बस यूँ ही हैं.
कल वह उदास थी, आज नहीं
है. जून और वह एक दूसरे के उतने ही करीब आ गये हैं, जितने तब थे जब उन्होंने
एक-दूसरे को पहले-पहल जाना था.
आज हफ्तों बाद डायरी लिखने
बैठी है, छोटी बहन आने वाली थी उसके पहले ही सफाई आदि में फिर अपनी उसी स्वास्थ्य समस्या
के कारण और उनके आने के बाद तो समय मिला ही नहीं. मिला भी तो एक दिन उसके शेफ पति
से कुछ रेसिपीज नोट कीं. पनीर टिक्का, अरहर दाल, भरवां शिमला मिर्च और बिरयानी की
रेसिपीज. उनका आना उन्हें उत्साह से भर गया. अभी सोचती है तो लगता है कितने खुश थे
वे, सुबह से शाम तक बिना थके कभी यह काम कभी वह. और उसकी बिटिया की भोली शरारतें....
समय कितनी जल्दी बीत गया. आज शाम को जून भी जाने वाले हैं, परसों शाम को अपने माँ-पिता
को लेकर आ जायेंगे. फिर कुछ दिन हँसी-ख़ुशी बीत जायेंगे. आज सुबह कितने दिनों
बाद उसने व्यायाम भी किया और पाठ भी. उसने मन ही मन नोट किया, उसकी पुरानी पड़ोसिन
की दोनों ‘सेल्फ हेल्प’ की किताबें नियमित पढ़कर उसे वापस भी करनी हैं. कल शाम उसने
कहा वह उदास लग रही है, शायद वह वाकई उदास थी पर उसे खुद इस बात का पता तक नहीं
था. वह अंदर की बातें कैसे जान लेती है. कल दोपहर को प्राज्ञ की कक्षा लेने गयी
थी, कोई नहीं आया, लगता है सभी के सभी भूल गये या उन्हें सूचना ही नहीं दी गयी थी.
जून इस समय गोहाटी में
अपने मित्र के यहाँ होंगे, नॉर्थ-ईस्ट ट्रेन अभी आई नहीं होगी. वह उसके फोन का
इंतजार करेगी, यह और बात है कि उसे तो केवल संदेश ही मिलेगा, सीधी बात नहीं हो
सकेगी. आज धूप बहुत तेज है, सुबह से सोच रही है, शाम को बगीचे में काम करना है,
देखें क्या होता है. शाम को उसकी पुरानी पड़ोसिन ने भी आने को कहा है. अभी नन्हे का
प्रोजेक्ट वर्क भी बाकी है. उसका घाव अभी तक सूखा नहीं है, जून को बताना ही होगा
कहीं ऐसा न हो कि फिर से... और क्या लिखे, मन है की इतनी सारी बातें एक साथ सोचने
लगता है उन्हें सिलसिलेवार बैठाने का वक्त भी नहीं देता. मसलन कल जून ‘बनाना’ लाये
थे कहा था, भूल नहीं जाना और वाकई वह अब तक भूली हुई थी, फिर यह कि प्याज और टमाटर
खत्म हो गये हैं, मंगवाए या ऐसे ही काम चला ले. और अब नन्हे ने स्नान कर लिया है,
उसका काम शुरू करवाना है. कल शाम वह उसकी बहुत फ़िक्र कर रहा था. उसे पापड़ सेंक कर ला
दिया और.... अब वक्त नहीं है आगे कुछ लिखने का.
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