कितनी ही बार भगवद्गीता में पढ़ चुकी है
सुख-दुःख, मान-अपमान में सम भाव रहना चाहिए, उस वक्त यह सम्भव भी लगता है, पर आज
सुबह जब जून ने पूरी गम्भीरता के साथ कहा कि दस वर्ष बीत जाने के बाद भी उसे आग जलाना नहीं आया (कि दलिया न गिरे) तो उससे
सहन नहीं हुआ और आधे घंटे तक मन पर असर रहा. जून भी बाद में पछता रहे होंगे कि
उन्होंने वे शब्द क्यों कहे. उसे इतना कमजोर नहीं होना चाहिए और इस बात को हल्के
ढंग से ही लेना चाहिए था लेकिन वह रोई इस छोटी सी बात पर. इस समय दोपहर के ढाई बजे
हैं, कुछ देर पूर्व पड़ोसिन से मिल कर आई है, एक हफ्ते बाद उसका अपेंडिक्स का
ऑपरेशन होना है, बेटे के लिए वह परेशान थी. उसने कहा तो है कि वह निस्संकोच बेटे को उनके
यह भेज सकती है, लेकिन जानती है, वह नहीं आएगा. वे लोग उनमें से हैं जो पड़ोसियों
से कोई मदद लेना पसंद नहीं करते. कल छोटे भाई से बात हुई, उसके यहाँ दूसरी बेटी का
जन्म हुआ है. आज सुबह उसने ध्यान करने का प्रयास किया पर मन एकाग्र नहीं हो पाया.
समाचारों में सुना, काश्मीर में विदेशी कैदी पिछले इक्यावन दिनों से कैद हैं.
फिर तीन दिनों का अन्तराल,
शुक्र व शनि दोनों दिन सुबहें पंजाबी दीदी के साथ गुजरीं, वह कुछ दिनों से अपने
पति के साथ कोलकाता से आयी हुई हैं, कम्पनी से उनकी विदाई पार्टी है. इतवार को यूँ
ही समय नहीं मिलता. पिछले दिनों कई जगह कई बार पढ़ा व सुना कि अंतर्मुख होकर, अपने
अंदर झांक कर देखने पर, खुद अपने-आप के करीब आने पर उस ‘स्व’ से साक्षात्कार किया
जा सकता है जिसे हम आत्मा कहते हैं. एक दो बार कोशिश भी की ध्यान लगाने की लेकिन
मन की गति को सम्भालना कठिन लगा, पर उसका असर अच्छा रहा, वह शीघ्र शांत हो सक, जब
भी कोई ऐसी परिस्थिति आई. आज सुबह नन्हे को गणित पढ़ाते समय आवाज ऊंची हो गयी थी जो
उन दोनों के लिए ही ठीक नहीं था, उसे पढ़ाने के लिए मन का शांत व स्थिर होना अत्यंत
आवश्यक है. वह परेशान हो जाता है उसका हल्का सा क्रोध देखकर भी. जून आज तिनसुकिया
जा रहे हैं, उनके एक मित्र की गाड़ी का विंड स्क्रीन किसी ने पत्थर मारकर तोड़ दिया
था सो नया लगवाने जा रहे हैं. कल सुबह वह जागरण सुन रही थी एक मित्र परिवार प्रातः
भ्रमण करते हुए आया, उसका मन मौन की अवस्था को छोडकर बाहर आने को तैयार नहीं था.
कई दिन हो गए उसने कोई कविता नहीं लिखी, खट्टे-मीठे कई अनुभव तो हुए, लेकिन मन को
छू जाये ऐसा नहीं. उनका पिछला माली जिसे उन्होंने क्वार्टर खाली करने के लिये कह
दिया था, अभी भी बाहर से काम करने आता है, शायद उसे अभी इस घर से या बगीचे से लगाव हो,
धीरे-धीरे, वक्त गुजरने के साथ लगाव भी कम होता जाता है. जैसे उसकी बंगाली सखी ने
उसके पत्र का जवाब नहीं दिया है, लेकिन उसे कोई शिकायत नहीं है, क्योंकि यह
स्वाभाविक है.
अभी-अभी उसने स्वामी विवेकानन्द के कुछ
प्रेरणास्पद विचार पढ़े, उसका मन उदात्त भावनाओं से भर गया है. वे एक सच्चे सन्त
थे. उसने घड़ी की ओर देखा, नन्हा आने वाला होगा, वह उसके लिए चपाती बनने किचन में
चली गयी.
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