अचानक घर के सारे के सारे बॉल पेन्स की स्याही जैसे एक साथ ही खत्म
हो गयी है, उसे हरी स्याही वाले इस जैल पेन से लिखना पड़ रहा है, जो इतना अच्छा
नहीं लिख रहा. मौसम आज भी सुहावना है, शायद यही कारण तो नहीं कि आजकल वह वे सभी
कार्य सुबह कर पाती है, जो ज्यादा गर्मी
होने के कारण पहले टाल दिया करती थी, लिखना भी उनमें से एक है. सुबह जल्दी उठने से
नन्हे को भी कुछ वक्त दे पाती है, आज से उसके टेस्ट शुरू हैं. कल से नई नैनी सीमा
ने काम सम्भाला है, उसने सोचा, देखें, यह कितने दिन टिकती है, पिछले आठ महीनों में
यह पांचवीं नैनी है. जून के आने का वक्त हो रहा है, हो सकता है वह आज भी थोड़ा लेट
आयें, शनिवार को पूरा एक घंटा देर से आये, उसके पूछने पर नाराज होने लगे.. जल्दी
ही मान भी गए, वाकई वह भाग्यशाली है जो इतना अच्छा साथ मिला है उनका...माँ-पिता से
मिलने यदि किसी वर्ष न भी जा सके वे लोग तो उसे कोई दुःख नहीं होगा, उसने सोचा
अचानक ये बातें उसके मन में क्यों आने लगीं. रक्षाबंधन की स्मृति अभी ताजी है,
शायद इसीलिए..
फूलों के कितने गाँव राह में
मिले
आते रहेंगे याद सावन के वे
झूले
कल शाम एक परिचित परिवार आया था, यूँ ही उलझ
गयी उनसे बातों में, खत्री और क्षत्रिय की बहस को लेकर, उसका कहना था कि खत्री
क्षत्रिय का ही अपभ्रंश है, पर वे मानने को तैयार नहीं थे. उनके अनुसार खत्री वे
जो लड़ने से घबराते थे, क्षत्रिय वे जो वीर थे. रात भर स्वप्नों के बीच गुजरी, कल
ही जून उससे कह रहे थे कि वह व्यर्थ ही छोटी-छोटी बातों पर चिंता करती है. इस तरह
के मन को लेकर जीने से तो अच्छा है कि अपने को बहस की स्थिति में डाला ही न जाये.
मन भी शांत रहेगा और रिश्ते भी मधुर बने रहेंगे, चाहे ऊपर-ऊपर से ही क्यों न सही. सर्वेंट
रूम की बिजली ठीक करने आए इलेक्ट्रीशियन ने घंटी बजाई. लौट कर आई तो उसकी कलम रुक
गयी, खाली रहे या कोई काम भी करती रहे तो मन में ढेरों विचार आते ही चले जाते हैं
मगर जब कलम उठाओ तो सबके सब गायब. यूँ पिछले आधे घंटे में दो-तीन बार उठना पड़ा है
लिखने के दौरान, यूँ लेखन भला क्या होगा, लिखने के लिए एकाग्रता चाहिए और चाहिए
विचारों का ठहराव, जो जून की प्रतीक्षा करते समय सम्भव होगा. कल बड़ी ननद का पत्र
बिहार से आया, लिखा है वे लोग अब पटना छोड़ देंगे, और पश्चिम में रहेंगे या सुदूर
दक्षिण में. दीदी का पत्र कई दिनों से नहीं आया, कल जून ने भी याद दिलाया, कितने
साल हो गए उन्हें देखे. उसने सोचा उस सखी के लिए एक अच्छी सी गज़ल या नज्म लिख दे,
वह भी कहीं रात भर सोचती न रही हो, उसकी हम राशि है न आखिर.
आज फिर लिखना रह ही जाता, भला हो पौराणिक कथाओं के लेखक "अशोक बैंकर" का
जिनके कारण कुछ न कुछ लिखते रहने की कोशिश जारी रखने का संदेश मिला. आज सुबह समय
बिलकुल नहीं था, जून लंच के बाद गए तो कुछ देर सोयी, अखबार पढ़ा और सोसाईटी पत्रिका
के पन्ने पलटे जो जून बुक क्लब से लाए थे. सुबह उसने उस सखी को एक क्षणिक उत्साह
में फोन किया, इतवार को अपने वहाँ जाने कई बात कही, कुछ विशेष होना चाहिए, सामान्य
सामाजिक मुलाकात से हटकर, विशेष स्नैक्स पार्टी, कैरम या कोई फिल्म देखें, फिर
सोचा देखें, ईश्वर कितना साथ देता है उसकी योजना सफल होने में. आज सुबह ‘योगानंद जी’ कि पुस्तक में क्रिया योग
नाम का अध्याय पढ़ा, लेकिन पूरी तरह समझ में नहीं आया, यूँ भी पढते समय मन एकाग्र
नहीं रह पाता आजकल. पहले जितनी सहजता से ईश्वर आराधना कर पाती थी अब प्रयास करना
पड़ता है, शायद लोग जैसे-जैसे बड़े होते जाते हैं..ज्यादा जटिल होते जाते हैं.
कभी-कभी कोई पुरानी बात याद आने पर जो उसे आज भी झेंप दिला जाती है या हाल ही की कोई
बात जिसे याद करके उसे अच्छा नहीं लगता, वह मस्तिष्क को भुलावा देने के लिए वही
पुराना तरीका अपनाती है, नाम-स्मरण, जो उसकी सारी उलझनों को दूर करने का साधन बन
सकता था. शायद सभी के साथ या बहुतों के साथ ऐसा होता हो. आज नन्हे का गणित का
टेस्ट है, बस दो दिन और फिर छुट्टियाँ यानि मस्ती, मेले में घूमना, शुक्र व शनि को
वीडियो गेम खेलने अपने मित्र के यहाँ जायेगा, इतवार को तो उसके मनपसंद टीवी
कार्यक्रम हैं ही. उसने मन ही मन उसे स्नेह भेजा और उसके पिता को भी.
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