Sunday, April 28, 2013

वाणी जयराम- बोले रे पपीहरा



अगस्त माह का अंतिम दिन, गर्मी कुछ ज्यादा ही है आज, सो सुबह साढ़े नौ बजे ही उसने एसी चला दिया है, दीन-दुनिया से दूर इस बंद कमरे में कितना सुकून मिलता है गर्मी से व्याकुल तन को और मन को भी. बाहर पौधे धूप में झुलस रहे हैं, कल शाम उन्हें पानी भी नहीं मिला शायद. आज सुबह उठते ही उसे ज्ञात हुआ कि इस बार फिर उसकी कल्पना, कल्पना ही रह गई और इसे रहना भी चाहिए वास्तविकता, क्यों कि कठोर होगी, इतने वर्षों बाद घर में...जून को भी सुनकर राहत हुई होगी. कल उनकी असमिया भाषा की परीक्षा है, उन्हें इतना तो आ ही गया है कि पास हो जाएँ. नन्हा आज cubs की ड्रेस पहन कर गया है, वह बहुत खुश था, अच्छा भी लग रहा था..स्मार्ट..महीने का अंतिम दिन होने के बावजूद आज उसका हाफ डे नहीं होगा, ड्रिल होगी. कल उसने अपने कक्षा के एक लड़के की चोरी की बात बताई कि उसने टीचर के हस्ताक्षर खुद कर लिए और पकड़ा गया. उसे अपने बचपन की एक बात याद आ गयी बल्कि दो, जब वह पकड़ी नहीं गयी...पर उम्र भर वे बातें उसे भूल नहीं पाएंगी...”आदमी जो करता है.. आदमी जो कहता है.. जिंदगी भर वे सदाएं पीछा करती हैं”..कितनी सही है यह बात.

सितम्बर का पहला दिन, यानि भादों का महीना...भाद्रपद..भगवान कृष्ण के जन्म का महीना. कल दोपहर बाद झमाझम बरसात हुई, शाम कितनी सुहानी हो गयी थी, लेकिन आज फिर धूप खिली है, सर्दियों में यही धूप कितनी भली लगती है, अद्भुत है यह ऋतुओं का आना-जाना, लेकिन..कितना आवश्यक भी, यदि सारा साल एक सा ही मौसम रहे तो जीवन कितना नीरस  नहीं हो जाये...अब तो सर्दियों में गर्मियों की प्रतीक्षा करते और गर्मियों में सर्दियों की, दिन कैसे बीत जाते हैं पता ही नहीं चलता, उन्हें घर से आये ढाई महीने हो गए हैं, जाने क्यों इस हफ्ते भी अभी तक कोई पत्र नहीं आया है. आज इस समय उसे पीड़ा नहीं है, कल शाम थी, जून चिढ़ा रहे थे, उन्हें अच्छा नहीं लग रहा होगा, उसका सारी शाम बिस्तर पर लेटे रहना. आज उनका असमिया का टेस्ट है, पढ़ने के लिए उकसाना पड़ा, उन्हें ज्यादा रूचि नहीं है ऐसा लगता है या फिर उन्हें सब आता है, देखें परिणाम कब आता है और कैसा? वैसे उसे पता चल गया है कि उन्हें असमिया पढ़ने के लिए कहना पसंद नहीं. “असम साहित्य” सभा की असमिया कक्षाएं तो अब पता नहीं कब शुरू होगी, उसे स्वयं ही पढ़ना होगा यदि वह  सीखना चाहती है. कल जिस वक्त वह फेमिना की एडिटर का लेख पढ़ रही थी कि एसी कमरे में बैठकर, बाहर दिन है कि रात, दोपहर है या वर्षा कुछ पता नहीं चलता, ठीक उसी वक्त बाहर आंधी आ रही थी और वर्षा भी, सारे कपड़े भीग गए, और उन्हें पता तक नहीं चला, बगीचे में गोबर भी भीग-भीग कर फ़ैलाने लायक नहीं रह गया होगा.

कल शाम जून ने बिना उससे पूछे ही एक मित्र से कह दिया कि वे लोग उनके यहाँ आएंगे आधे घंटे में, जबकि उसका मूड नहीं था, न ही मानसिक रूप से नही शारीरिक रूप से वह  तैयार थी. कितना बुरा लग रहा था उसे बाद में मना करते हुए, पर लोग कितनी आसानी से  ‘न’ कह देते हैं, वे तो शायद किसी और ही मिट्टी के बने हुए हैं शायद. आज वह ठीक महसूस कर रही है, बाल भी धो लिए हैं, एकदम हल्का महसूस कर रही है. बहुत दिनों बाद वाणी जयराम का गाया बोले रे पपीहरा....रेडियो पर बज रहा है. कितना मधुर है यह गीत, और अब  आशा भोंसले की यह गजल भी-

यूँ तो मिलने को हम मिले हैं बहुत
दरम्यां फिर भी फासले हैं बहुत

 कल घर से पत्र आ ही गया, छोटी बहन राखी पर घर गयी थी. नन्हे का आज ड्राइंग कम्पीटिशन है, सुबह उठकर एक ड्राइंग बनाई है उसने. कल सोशल स्टडी में साढ़े तेईस अंक मिले पच्चीस में से. उसकी इस डायरी के पन्ने में नीचे लिखी आज की सूक्ति भी अच्छी है, उसने सोचा, अच्छी बातें तो मोतियों सी बिखरी पड़ी हैं मगर उन्हें चुनने वाले हंस ही तो वे नहीं बन पाते.





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