पिछले तीन-चार दिन डायरी नहीं खोली, लिखने-पढ़ने का क्रम भी छूट सा
गया. इसका कोई कारण समझ में नहीं आ रहा, ऐसा कुछ विशेष कार्य भी नहीं था, हाँ,
शनि-इतवार बस यूँ ही गुजर जाते हैं हमेशा ही. शनिवार को वे तिनसुकिया गए थे, जून
ने नया दांत लगवा लिया है पर उसके कारण उन्हें दिक्कत होती है, खासकर खाते समय.
रविवार को दो मित्र परिवार आये शाम को, उससे पहले वे पड़ोसी के यहाँ गए थे, उनकी
सोने की चेन जो खोयी थी, मिली नहीं है और न ही मिलने की उम्मीद है. इस बात के कारण
पिछले दिनों उसके मन में व्यर्थ का भ्रम था, इतने दिनों के संशय और उहापोह का अंत
सिर्फ फोन में था और वह फोन आखिर उसे ही करना था क्योकि परेशान वह ही थी अपनी
भावुकता के कारण. दीदी ने भी पत्र में लिखा है वे तीनों ही सेंटीमेंटल हैं. कल एक
अंतराल के बाद दीदी का खत आया है, बहुत बड़ा सा और बेहद अच्छा, उन्हें जल्दी ही
जवाब देना है कल नन्हे का अंग्रेजी का टेस्ट था, एक गलती कर दी, जो वह अक्सर करता
है. सुबह उठते ही उसने एक अच्छा सा स्वप्न सुनाया हवाई-जहाजों का, बेहद खुश था. कल
उसने केक बनाया, सोचा था बहुत अच्छा बनेगा पर अच्छा ही बन पड़ा है, बहुत अच्छा
नहीं.. जून ने कहा है आज उबला हुआ भोजन खायेंगे, उसने दाल और सब्जी बस उबाल कर रख
दी हैं.
पिछले हफ्ते उसने डायरी खोली तो है कुछ
पंक्तियाँ कादम्बिनी की चित्र देखकर कविता लिखने की प्रतियोगिता के लिए और कुछ
होली के लिए लिखने हेतु, पर बात बनी नहीं-
“दे रहे निमंत्रण अधर मधुर
मनुहार छिपी है आँखों में
बिंदिया चमकी कंगन खनके
यूँ अंगड़ाई ली उमंगों में
यूँ बही फागुनी पुरवाई
प्यार बसाये रंगों में....”
यूँ तो सारा आलम उनका वैसे
ही दीवाना था
ऊपर से थापें कदमों की न
जाने कितने तीर चले
दिल का मामला निकला यह कोई
छोटी बात नहीं
हाल सभी के दिल का जानें वह
तो छुपे रुस्तम निकले
झूठमूठ के शिकवे शिकायत झूठी
अपनी सारी लड़ाई
एक दूजे के लिए बने हैं वे
हर्फ यही बस सच निकले
अब के बरस तो रुत होली पर
संग संग हैं वे दोनों
दूना रंग लगाने उनको दिल के
सब अरमां निकले
जून कल से मोरान गए हैं, आज आ जायेंगे, तीन-चार
बार फोन कर चुके हैं, उनका मन जैसे नन्हे और नूना में ही लगा हुआ है, जैसे उन
दोनों का उनमें. आज मौसम ठीक है, कल शाम की भयंकर आंधी और तूफान ने तो डरा ही दिया
था, पर आज धूप निकली है. उन्हें घर जाने को आज पूरा एक महीना रह गया है. कुछ देर
पहले मन में एक विचार आया कि होली पर जो कुछ लोगों को बुलाने का विचार है उसे रहने
दें, नन्हे की परीक्षाएं भी नजदीक आ रही हैं, और वैसे भी तो शायद यह एक औपचारिकता
मात्र ही नहीं है क्या, मिलने आना तो दूर फोन तक करने में जो कंजूसी करें
उन्हें.... ?
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