Tuesday, April 2, 2013

फूलों का कोना




 १४ फरवरी यानि ‘वेलेंटाइन डे’ और जून आज उससे दूर हैं, शाम को पांच-छह बजे तक आएंगे, आज सुबह ही वह मोरानहाट गए हैं, दोपहर को उसकी एक सखी के आने की सम्भावना है, सो ज्यादा भूख न होने पर भी उसने सर्वोत्तम पढ़ते-पढ़ते भोजन कर लिया और अब डायरी खोली है. कल रात फिर देर तक सो नहीं पायी, जबकि दोपहर को एक अच्छी सी कन्नड़ फिल्म देखी थी. रात को देर तक जगना कोई अच्छी बात तो नहीं, ईश्वर को भुला दिया है, मन एकाग्र होता ही नहीं तो नींद कैसे आएगी. स्थिरता, एकाग्रता, निर्लिप्तता, भीड़ में रहकर भी उससे अलग..कीचड़ में कमल की तरह..तभी तो बाहरी प्रभाव मन पर हावी नहीं हो सकेंगे. अब मन में अपना निज का कोई भाव तो है नहीं, जो है सो बाहर से थोपा हुआ, नहीं तो छोटी-छोटी बातों का इतना असर लेना क्या ठीक है. इंसान को ऐसा होना चाहिए जैसे कछुआ होता है, बाहरी प्रभावों से अभेध्य, अपना सबसे अच्छा मित्र. अचानक उसे लगा, कितना सन्नाटा है चारों ओर..लेकिन इस सन्नाटे की भी एक आवाज है जो कानों को सुनाई देती है...ऊं....सभी इस समय अपने-अपने घरों में लंच करके आराम कर रहे होंगे.

  सवा नौ बजे हैं सुबह के, आज तो सभी कुछ उसके अनुकूल हो रहा है, सुबह सवेरे ही सफाई हो जयी, और शीशे की गोल मेज पर, जिसके नीचे टी बुश का आधार है, गेंदे और  कॉर्न फ्लावर के फूलों से बैठक का वह कोना जैसे खिल उठा है. आज दोपहर को टमाटर की चटनी बनानी है, जून कल डिब्रूगढ़ से ढेर से लाए हैं.

  किसी ने सच ही कहा है, सोना आग में तपकर ही कुंदन बनता है और इंसान गलतियों से ही सुधरता है. कल से उसका मस्तिष्क अपनी उलझन का हल ढूँढने में व्यस्त था जो धीरे-धीरे स्पष्ट होता जा रहा है..बेवजह ही लोग अपनी जिंदगी को जटिल बना लेते हैं, फिर गायब होती है रातों की नींद और सुबह देर से उठना, फिर सभी काम जल्दी-जल्दी निपटने में आयी झुंझलाहट.. नन्हे की बस आज छूट भी सकती थी. इस डायरी में हर पेज के नीचे एक सूक्ति है अंग्रेजी में, आज की नसीहत मनोनुकूल है-

If you are in right, you can afford to keep your temper and when you are in the wrong you can’t afford to lose it.

  कल शाम बहुत दिनों के बाद तेलुगु मित्र परिवार आया, अच्छा लगा और फिर रात को फोन पर हिंदी शब्दों का अर्थ बताना....जून एक क्षण के लिए परेशान हो गए थे, शायद जेलस, वह उसे बहुत चाहते जो हैं. कल उसने माँ-पिता को पत्र लिखा, उनका मकान बनने में अभी दो-तीन माह और लगेंगे. उसे लगा पौने ग्यारह हो चुके होंगे, अभी उसने स्नान भी नहीं किया है, थोड़ी खांसी थी, अदरक वाली चाय पी है अभी कुछ मिनट पहले ही. आज जून ने दो बार फोन करके पूछा, लेकिन स्वीपर जिस तरह अपनी बात का विश्वास दिला रहा है उसकी शिकायत करना ठीक नहीं लगता, हो सकता है वह उसे धोखा भी दे रहा हो, वह बहुत जल्दी लोगों की बातों पर विश्वास कर लेती है, इस बात का फायदा कई बार कई लोग उठा चुके हैं यह वह अब जानने लगी है लेकिन विश्वास करने की इस प्रवृत्ति को छोड़ना इतना आसान तो नहीं. माली की पत्नी भाग गयी है आज चम्पा ने यह बात बताई..बेचारा साधुराम...कितना दुखी होगा.

  पिछले तीन-चार दिनों से ठंड बढ़ गयी है, आज मौसम ने अपना शीत रूप दिखाया है, बदल. धुंध और कंपा देने वाली ठंड, नन्हे का टेस्ट था जाना जरूरी था, उसके सभी यूनिट टेस्ट अच्छे हुए हैं. इस वक्त उसके मन में जो विचार चल रहे हैं उनमें से एक है, उसे कुछ सार्थक लिखना चाहिए, यूँ रोजमर्रा की बातों से पन्ने भरते चले जाना क्या उचित है ? उचित और अनुचित का फैसला करना इतना आसान नहीं है. क्या यह उचित होगा कि शब्दों को इधर-उधर करके कुछ भाव पिरोकर वह लिखेगी, हाँ यह कह सकते हैं, उससे ज्यादा संतुष्टि मिलेगी. अपनी संतुष्टि तक ही सीमित है क्या मानव मन का संसार, अपने से इतर कुछ भी देख नहीं पाता, सच तो यही है चाहे कितना ही कड़वा क्यों न हो. अपने आप से जब हटता है तो परिवार वालों पर लगता है, जून की और नन्हे की देखभाल वह तब कहाँ कर पाती है जब स्वयं संतुष्ट नहीं होती. आज का नीचे लिखा विचार भी उसकी कल्पना को ही प्राथमिकता दे रहा है.
Resigned acceptance of an apparent impasse can lead to failure or defeat, while an imaginative and venturesome task can lead to success.





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