आज फोन ठीक हो गया, कल रात पिता भी वापस आ गए. बिजली आज दिन
भर रही, घिसाई का काम चलता रहा, दस-बारह दिन में पूरा हो जायेगा ऐसी उम्मीद है.
बैठक का फर्श साफ निकल आया है, सुंदर लग रहा है. पहली कटाई है यह, एक बार फिर
करेंगे. बढाई का काम हो जाये तो राहत मिले. साढ़े दस हुए हैं, उसने सोचा जून शायद
सो चुके होंगे, वह रोज लगभग इसी वक्त लिखती है. दिन भर के काम व्यवस्थित हो चुके
हैं. सुबह उठकर नौ बजे तक व्यायाम, स्नान, नाश्ता आदि, फिर नन्हे की पढ़ाई, मकान का
चक्कर, अखबार पढ़ना. उसके बाद फलाहार जिसे माँ फ्रूट टाइम कहती हैं. क्रोशिये पर
कुछ देर काम, फिर दोपहर का भोजन, एक झपकी. उठकर फिर कुछ देर कढ़ाई आदि, धूप थोड़ा कम
होने पर मकान का एक और चक्कर, शाम को घूमना. रात का खाना, कुछ पढ़ना फिर टीवी. आज
उसने एक नया डिजाइन सीखा है क्रोशिये का. काफी बन गया है, इसके बाद यू पिन से
बनाएगी. हवा में ठंडक है, कूलर चलाने की जरूरत नहीं है. वहाँ असम में तो वर्षा हो
रही होगी, उसने सोचा.
उसे जून के फोन की प्रतीक्षा थी, जो नहीं आया,
शायद वे मोरान में हों, उनका तीसरा पत्र भी अभी तक नहीं मिला है, आज उन्हें घर से आए
पूरे उन्नीस दिन हो गए हैं. आज गर्मी ज्यादा थी दिन में. सुबह छह बजे से ही बिजली
गायब थी. शाम को वह सामने वाले घर में गयी, नन्हे की उम्र का एक बच्चा रहता है
वहाँ, उसकी दीदी ने गाढ़ा दूध वाला रूह अफजा पिला दिया, उसका जी मिचलाने लगा था.
महरी आज दूसरे दिन भी नहीं आयी. शाम को माँ की परिचित एक लड़की मिलने आयी थी, उसे
भी सिलाई-कढ़ाई का बहुत शौक है, परसों वह माँ व भाभी के साथ उसके यहाँ जायेगी. आज
दोपहर बाद उसने पंजाबी दीदी को एक पत्र लिखा, सोच रही है, एक खत बुआ जी को लिखेगी,
एक ससुराल में, एक बड़ी ननद को. एक खत जून को भी लिखना होगा, ऐसा खत जिसे पढकर वह
जवाब दिए बिना न रह सके. आज हेमामालिनी के संपादन में छपी पत्रिका ‘मेरी सहेली’
पढ़ी, निहायत ही बचकाना पत्रिका है फ़िल्मी स्टाइल. समय वही है साढ़े दस, शायद स्वप्न
में जून को देखे.
आज शाम को माँ की परिचित एक प्रौढ़ महिला का यहीं
कालोनी की सड़क पर टहलते समय स्कूटर से एक्सीडेंट हो गया. उन्हें सिर में काफी चोट
आयी है. वे लोग शाम को ही उनके घर गए, माँ तो बहुत देर बाद आयीं, लेकिन तब तक वह
अस्पताल से लौटी नहीं थी. वक्त कैसे-कैसे रंग दिखाता है, यहाँ की खुली सड़कों पर
जहां कोई ट्रैफिक नहीं, कोई भीड़भाड़ नहीं, यूँ ही खड़े-खड़े स्कूटर से एक्सीडेंट हो
गया. आज सुबह पिता ने उसे एक पत्र दिखाया जिसमें खर्चे का ब्यौरा था, जितना अनुमान
था उससे कहीं ज्यादा, उसने कहा खत भेजने की जरूरत नहीं है, वे आ ही रहे हैं. शायद
उन्हें अच्छा न लगा हो, पर जाहिर नहीं होने दिया. उसे ऐसा कहना चाहिए था या नहीं, पर
इतना जरूर है, कि जून परेशान हो जाते, एकाएक इतना ज्यादा बिल देखकर, पता तो चलना
ही है, उसने सोचा, पर अभी वह वहाँ अकेले हैं. आज घर में काफी काम हुआ. भाई ने कहा
है कल वह उन्हें “जुरासिक पार्क” फिल्म दिखाने ले जायेगा.
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