Thursday, April 18, 2013

मक्खन वाला केक



...और आज जून का फोन आ ही गया, सुबह-सुबह ही...उसने फोन पर इतनी सारी बातें कीं...इतनी अच्छी बातें और अंत में सकुचाते हुए..कहना, उससे भी कहा, और कुछ नहीं कहना है, वह चाहते हुए भी नहीं कह पायी...जबकि उसके मन का हर अणु उस वक्त वही कहना चाह रहा था जो वह सुनना चाहते थे. उसे कल रात लिखा पत्र भी पोस्ट कर दिया. आज पहली बार शाम को वह बनता हुआ मकान देखने नहीं गयी, सुबह दस बजे गयी थी, बढ़ई आया था, उसका काफी काम हो गया है, दरवाजे लगाने ही बाकी हैं, और खिड़कियों के पल्ले फिर से खोल कर लगाने हैं. ‘जुरासिक पार्क’ फिल्म देखी, अच्छी लगी, आश्चर्यजनकरूप से रोमांचक फिल्म है, अपने आप में अनूठी. उसके सूट सिल कर आ गए हैं, दुपट्टे का रंग मैच नहीं कर  रहा, भाई को ही कहना पड़ेगा.

  इतवार खरबूजे और तरबूज के साथ बीता. तरबूज बेहद मीठा था. दोपहर को इडली बनाई थी माँ ने. शाम को भाभी के साथ उन आंटी को देखने गयी, सिर पर पट्टियाँ बंधी थीं, न ही कुछ बोल पा रही थीं, न ही अपने आप उठ पा रही थीं. उनक बहू-बेटा व बहन भी आ गये हैं. शाम को चाचा आए थे, चचेरी बुआ के बड़े लडके की एक्सीडेंट में मृत्यु हो गयी है, यहाँ आने के बाद यह चौथी खबर सुनी है ऐसी, उसने सोचा, मई का महीना क्या सिर्फ दुखद समाचार ही लाएगा..

  आज का दिन भी अच्छा रहा, शांत जल प्रवाह की तरह, यहाँ रहना अच्छा लग रहा है, बंधी-बंधाई दिनचर्या है, लेकिन वे अभ्यस्त हो गए हैं, मच्छर भी अब उतने नहीं हैं. घर में काम चल रहा है, कल रात गर्मी अपेक्षाकृत अधिक थी, आज कूलर चलाया है. शाम को भाई की बिटिया आई थी, नन्हा और वह खेलते रहे, भाभी ने केक बनाने की एक विधि बतायी, बहुत अच्छा बना था,- ५० ग्राम मैदा, १२५ ग्राम चीनी, एक कटोरी मक्खन, ५० ग्राम ब्रेड क्रम्ब, १ चम्मच बेकिंग पाउडर व खाने का सोडा और थोड़ा सा दूध. उसने कहा है, नूना के जन्मदिन पर बनाकर लाएगी. मंझला भाई भी परिवार सहित अगले माह आयेगा. दस जून को वे अपने नए घर में गृह प्रवेश की पूजा करेंगे. चार-पांच परिवार यहाँ आस-पास के, और आठ परिवार उनके अपने संबंधीजनों के, पहले चाय-नाश्ता फिर दोपहर का भोजन. उसने सोचा एक सप्ताह पूर्व से ही इसके लिए तैयारी करनी होगी.  






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