Thursday, April 4, 2013

बड़ी और मुंगौड़ी




कल शाम वे एक विवाह की रिसेप्शन पार्टी में गए, जून के एक सहकर्मी का विवाह, जो बड़ी बाधाओं के बाद हुआ था, आने में देर हो गयी पर सुबह वे समय से उठे, वहाँ कई और लोगों से भी मिलना हुआ. उससे पहले नन्हे का एक मित्र आया था अपने माता-पिता के साथ, नन्हा बहुत खुश था.

  महीने का अंतिम दिन है, नन्हे का हाफ डे है, जून आज लंच पर नहीं आने वाले थे सो सुबह उसने अपनी सुध ली, मालिश करके देर तक स्नान किया, कैसा हल्का-हल्का लगता है, इसीलिए स्पा इतने प्रचलित हैं विदेशों में. आज लेडीज क्लब में सलाद सजाने की प्रतियोगिता है. वह नन्हे को लेकर पैदल ही जायेगी, वह कुछ देर वहाँ खेलेगा या पढ़ेगा.

  मार्च महीने का पहला दिन, शुरुआत अच्छी है इंशाअल्लाह अंजाम भी अच्छा होगा. मौसम का रूप बदला नहीं है, बादल गरज कर अभी शांत हैं. कुछ मिनट पहले ही कुछ मुसलमान औरतें ‘फितरा’ मांगने आयीं थीं, चम्पा ने उन्हें यह कहकर कि यहाँ मुस्लिम परिवार नहीं रहता, जाने के लिए कह दिया. कल रात को स्वप्न में फिर पाकिस्तान की सैर की, इससे उसका जुड़ाव किसी पिछले जन्म की याद का परिणाम है, एक कशिश है जो उसे खींचे लिए जाती है, उर्दू सीखनी फिर शुरू करनी होगी, लेकिन असमिया जो पहले सीखनी शुरू की है उसके बाद ही. कल एक पंजाबी सखी से ‘गुरुमुखी’ की वर्णमाला लिखकर लायी है, “गुलदस्ता” पंजाबी पत्रिका अब पढ़ सकती है. कल उसने एक बच्चे का स्वेटर बनाना भी शुरू किया है दस दिन में बन जाना चाहिए. जून कल शाम मोरान से आए तो थके हुए थे पर नन्हे को टीटी के लिए छोड़ने गए, ही इज ए ग्रेट फादर एंड लविंग हसबैंड टू..उसने सोचा आज दोपहर वे ढेर सारी बातें करेंगे, उनके आने से पहले ही वह खाना बना कर रखेगी. आज का नीचे लिखा सूत्र भी कुछ कम नहीं-
Most of the shadows of this life are caused by our standing in our own sunshine.

हम वही बन जाते हैं जैसा सोचते हैं, अँधेरे से हटना है तो मन में सूरज को रास्ता देना ही होगा न..

   दो बजने वाले होंगे, घड़ी लॉन में तो लगाई नहीं जा सकती न, सफेद और पीली तितलियाँ जहाँ उड़कर, पौधों व पेड़ों के पत्ते हिलकर, चिडियाँ बोलकर और धूप सहलाकर उसका मन बहलाव कर रहे हैं. कल शाम को जून जब नन्हे को लेने गए थे इसी जगह लेटकर नीले आकाश को तकते हुए उसने वादा किया था, कल फिर आयेगी. सुबह व्यस्तता भरी थी, जून के कहने पर बड़ियां बनायीं, फिर बेक्ड सब्जी, लोभिया भी, समय तो लगना ही था. नन्हे को चाकलेट देना आज फिर भूल गयी लेकिन उसे आलू परांठा जरूर पसंद आया होगा. आज सुबह असमिया अक्षरों से पहचान बढ़ाने का वक्त ही नहीं मिल पाया, अभी पढ़ेगी. जून के डिपार्टमेंट में उनका कम्पयूटर अभी तक ठीक नहीं हो पाया है. आज बैंक के काम की वजह से वे जल्दी चले गए, उसे उनके बैंक सम्बन्धी कार्यों की समझ नहीं है, सिर्फ पे स्लिप देखने भर से मतलब है, ऐसा होना तो नहीं चाहिए, यह मालूम होना ही चाहिए कि कितना टैक्स वह देते हैं, कितना बचाते हैं. एक दिन सब कुछ पूछेगी, नोट भी कर लेगी क्योंकि उसे याद तो रहेगा नहीं.




3 comments:

  1. :) गुरुमुखी और उर्दू मैंने भी पढ़नी लिखनी सीखी थीं. लेकिन बात असमी तक नहीं पहुँच सकी.

    ReplyDelete
  2. आपकी डायरी पढ़ना हमेशा अच्छा लगता है मुझे अनिता जी ...
    साभार......

    ReplyDelete
  3. वाह ! यह तो बड़ी अच्छी बात आपने बताई..बधाई ! दुनिया कितनी छोटी है न !

    ReplyDelete