Thursday, July 9, 2020

भोर का आकाश


कल शाम बच्चों के स्कूल में अध्यापिकाओं का साक्षात्कार था। उसे भी बुलाया गया था, इंटरव्यू लेने का पहला और एक बिलकुल नया अनुभव था और स्वयं को परखने का एक स्थल भी. मेज के इस तरफ बैठी है, यह भाव आया तो भीतर के सूक्ष्म अहंकार का बोध हुआ. प्रश्न पूछते समय खुद को ही लगा, वाणी में अभी भी मधुरता नहीं आयी है. एक क्षण के लिए भीतर हलचल भी हुई, जो बाद में व्यर्थ ही प्रतीत हुई. परमात्मा उन्हें उनसे बेहतर जानते हैं. वह उन-उन परिस्थितियों में भेजते हैं जहाँ से वे चाहें तो सीखकर आगे बढ़ सकते हैं. यह सृष्टि उसी परमात्मा का विस्तार है, वह सर्वज्ञ है और यदि कोई आत्मा उसकी ओर कदम बढ़ाती है तो वह उसे स्वीकार करता है. जैसे धूल से सन हुआ शिशु माँ की तरफ हाथ बढ़ाता है तो माँ उसे झट गोद में उठा लेती है, वह अपने वस्त्रों की परवाह नहीं करती. शिशु को साफ-सुथरा करती है, वैसे ही परमात्मा उन्हें निखारता है. वह प्रेरणाएं भेजता है  जिन्हें वे सुनी-अनसुनी कर देते हैं, पर वह असीम धैर्यशील है. वह बार-बार अपनी ओर खींचता है, क्योंकि उनकी अभीप्सा उसने भांप ली है. संस्कारों के कारण या पूर्व कर्मफल के कारण वे उस पथ से विमुख हो जाते हैं ,पर उसका हाथ उन्हें कभी नहीं छोड़ता. कल एक स्वप्न में स्वयं को कहते सुना कि  जून के जीवन में सच्चाई बढ़ रही है. वह भोजन के प्रति भी पहले के जैसे आग्रही नहीं रहे. परमात्मा उनके हृदय पर भी अपना अधिकार कर रहा है. आज दोपहर मृणाल ज्योति जाना है, सेवाभाव से बच्चों को पढ़ाना है. संध्या को श्लोक उच्चारण का अभ्यास करना है. शेष समय में लिखना-पढ़ना. व्यर्थ अपने आप छूट जाता है जब वे सार्थक  को पकड़ लेते हैं. 

घर के बायीं तरफ वाले मैदान में बीहू नृत्य की शूटिंग चल रही है. कभी संगीत की आवाज आती है कभी ‘कट’ की और सब थम जाता है. छोटी लड़कियाँ भी हैं और बड़ी भी. अप्रैल में तो यहाँ चारों ओर ढोल की थापें सुनाई देती हैं, इस बार मार्च से ही बीहू आरंभ हो गया है. जून दो दिन के लिए आज टूर पर गए हैं. दोपहर को क्लब गयी थी,  शाम के आयोजन की तैयारी चल रही थी, एक अन्य सदस्या भी आयी थी, जो पहले बहुत बीमार रहा करती थी, एक वर्ष पूर्व योग करना आरंभ किया और अब पूर्ण स्वस्थ है. उसने ज्ञान के पथ पर कदम रख दिया है और तेजी से आगे बढ़ रही है.  नैनी भी ढेर सारे फूल लेकर वहाँ आयी और चार गुलदान सजा दिए, वह इस कार्य में दक्ष हो गयी है. घर पर भी शाम के लिए उसने कुछ व्यंजन बनाये हैं.अगले हफ्ते महिला क्लब की तरफ से कम्पनी की एक महिला उच्च अधिकारी का विदाई समारोह है. वह उनसे वर्षों पहले एक बार विदेश में मिली थी. उसके बाद दो-तीन बार क्लब की मीटिंग में. नई प्रेसीडेंट ने कहा, उनके लिए कुछ लिखना है. 

और अब उस पुरानी डायरी का एक पन्ना - रात्रि के ग्यारह बजने वाले हैं. सुचना और प्रसारण मंत्रालय के ‘नाटक व गीत विभाग’ के ‘दुर्गे कला केंद्र’ के कलाकारों का नृत्य-गीत देखकर बहुत अच्छा लगा. सचमुच नृत्य और संगीत में जादू है, लोक नृत्य का तो कहना ही क्या, उसके पाँव थिरकने लगते हैं धुन सुनते ही, अफ़सोस कि उसने कक्षा सात के बाद कभी नृत्य नहीं किया. कल उसे दादाजी के घर जाना है. किताबें और एक ड्रेस लेकर जाएगी. फिर उसके कमरे में छोटी बहन रहेगी. परीक्षाएं इतनी नजदीक हैं और उसकी पढ़ाई अभी तक गति नहीं पकड़ पायी है. खैर ! अब वह क्या कर सकती है, ऐन वक्त पर उसका पागल मन धोखा दे जाता है. उसे तो केवल नीला आसमान, फूल, नदी, छोटे बच्चों की मुस्कान... देखकर ही ख़ुशी मिलती है. 

बिलकुल वही अनुभूति, बल्कि उससे भी अच्छी ! इस समय वह दादी जी के घर पर है. आस पड़ोस की छोटी-छोटी बच्चियाँ मिलने आयीं, ये सब बहुत अच्छी हैं, भोली.. मगर दुनिया इन्हें ऐसा रहने कहाँ देगी. वह सबसे छोटी रेणु उसने कैसा चुटकुला सुनाया.. एक ने कहा, आप क्यों आजकल हर वक्त सपने बुनती हैं ! ...और दादाजी ने भी एक चुटुकुला सुनाया, कहा, वे वैष्णव हैं सो एक अंडा खाएंगे और फूफा जी यदि आएं तो उन्हें दो खिला देना. कल सम्भवतः बुआ जी आएं. शाम को उसकी घड़ी खो गयी, सारा कमरा ढूंढ लिया तो मिली बड़े सन्दूक के पीछे. चचेरे भाई ने कहा, एक दिन पता चल जाये कि सुबह पांच बजे आकाश में तारों की स्थिति या प्रकाश कितना है तो रोज समय पर उठने में आसानी होगी. उसने सोचा, वह भी कल जल्दी उठेगी और आकाश दर्शन करेगी. 

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