दोपहर बाद के चार बजे हैं. जून पिताजी से बात कर रहे हैं. उनके यहाँ भी ग्यारह अप्रैल को चुनाव होने हैं. कल रात को गर्जन-तर्जन के साथ वर्षा हुई. पिछले एक-दो दिन से बाएं कान में भारीपन लग रहा है, व सांय-सांय की आवाज आ रही है. नाक-कान के विशेषज्ञ को फोन किया पर वह शहर से बाहर गए हैं. सम्भव है उनके लौटने तक कान ठीक-ठाक ही हो जाये. पिछले दिनों होली पर गहमा-गहमी रही. उस दिन तीन परिवार आये , सभी को गुझिया खिलाईं. असम में यह उनकी अंतिम होली थी. आज दोपहर को कम्पनी के भूतपूर्व उच्च अधिकारी के परिवार को लंच पर बुलाया था, उन्हें एक स्टोल दिया जो बड़ी भांजी विदेश से लायी थी, उन्हें अच्छा लगा. वे भी उनके नए घर के लिये कांच का एक कछुआ लाये हैं. कहते हैं, शुभ होता है. जीवन इसी आदान-प्रदान का नाम है. नैनी ने उनसे कहा है, उसके पति को गेस्टहाउस में नौकरी दिला दें, पर अब जब वह यहाँ से जा रहे हैं, शायद ही कुछ कर पाएं. कल सुबह स्कूल गयी थी. नई अध्यक्षा ने स्कुल के अकाउंट में काफी रूचि दिखाई. वह स्वयं एक कम्पनी में सीएसआर प्रोजेक्ट देखती हैं. पिछले दिनों कई अनोखे स्वप्न देखे, जिन्हें लिखा नहीं सो अब याद नहीं हैं , पर उनसे पिछले जन्मों के कई राज पता चले जिनका असर वर्तमान तक चला आया है. वे जिन विकारों का अनुभव अपने भीतर करते हैं उनकी गाठें उन्होंने पिछले जन्मों में बाँधी होती हैं या कहना चाहिए कि उनके जीवन में जो भी घटता है वह पूर्व का फल होता है, उसके प्रति उनकी प्रतिक्रिया वर्तमान में किया उनका कर्म होता है. उन्हें अपने भीतर की गाँठों को पहले देखना है, फिर उन्हें खोलना है. बंधी हुई चेतना से विकार ही जन्म लेते हैं. मुक्त चेतना के साथ जीना सीखना है, जिसमें पूर्व के संस्कार के कारण कोई यन्त्रवत प्रतिक्रिया नहीं होती, बल्कि सजग होकर नए कर्म बढ़ने से रोकने भी हैं.
तेनालीराम में आज कौओं का प्रकोप दिखाया गया, कम्प्यूटर ग्राफी का कमाल था. आज योग कक्षा में एक साधिका ने कहा, उसे आज क्रोध आया. जो भीतर भरा है वह बाहर तो आएगा ही, पर इसके लिए प्रतिक्रमण करना होगा. आगे उसने कहा, पिछले दो वर्षों से जब से वह योग साधना करने आ रही है, उसने अपने को अतीत के बंधनों से मुक्त किया है. इंसान कितनी जंजीरों में जकड़ा रहता है. गुरूजी के वाक्य उसे शीतलता से भर देते हैं. कल उसकी बहने आ रही हैं, उन्हें भी साथ लेकर आएगी एक दिन. आज दोपहर कई दिन बाद ‘डायरी के पन्नों पर’ ब्लॉग में लिखा, मन में उत्साह जगा और सद प्रेरणा मिली एक पुरानी डायरी से, और उस समय भी परमात्मा के प्रति श्रद्धा थी, पर अनुभव नहीं था. एक लंबी यात्रा रही है उसके जीवन में अध्यात्म की, जो अभी तक चल रही है. सुबह देर से उठे वे आज, कल शाम एक विदाई समारोह में गए थे, सोने में देर हुई. कल दोपहर तिनसुकिया में डॉ को कान दिखाया, पहली बार सिरिंज से साफ़ भी करवाया. अभी भी टिंगलिंग की आवाज आ रही है. उसकी देखा-देखी अचानक जून भी अपने कान में कुछ आवाज सुनने का प्रयत्न करने लगे हैं.
आज भारत सेटेलाइट को मार गिराने वाली क्षमता को हासिल करने वाला चौथा देश बन गया है, प्रधानमंत्री ने इस बात को देश के सम्मुख रखा तो विपक्षी दल इसका विरोध कर रहे हैं. चुनाव आने वाले हैं, मात्र तरह दिन रह गए हैं, सो सभी पार्टियां वोटरों को रिझाना चाहती हैं. बीजेपी ही चुनाव जीतेगी इसमें दो राय नहीं हैं. प्रधानमंत्री का चुनावी दौरा आरंभ हो गया है. सुबह आजकल सुहानी होती है अब स्वेटर की आवश्यकता नहीं है.
और अब उन पुराने दिनों की बात.. दादाजी के यहाँ रहते दो दिन हो गए, परसों उसे घर वापस जाना है. घर जाना भी कितना सुखद अवसर है, उसका कमरा, मेज.. उसका बेड, किताबें, माँ-पिताजी, बहन, भाई, भाभी, दीदी, भांजे, भांजी.. सबसे मिलना. कमलकुंड, मधुवन या फिर वह मैदान, उसका प्रिय वृक्ष.. सब ही तो उसकी कमी महसूस करते होंगे, सूरज निकलता होगा वहाँ पर उसे उसकी तरह देखने वाला कौन होगा ! उसके पत्थर मेज पर रखे होंगे. फिर परीक्षा की तैयारी. यहाँ रहकर कुछ लाभ हुआ है तो यही कि दादी-दादा जी का आशीर्वाद मिला. लग रहा है कितने दिन बाद जा रही है !
क्या लिखे ? उसके बचपन की सखी के पिताजी नहीं रहे. कल शाम वह उससे मिली थी, वह खुश थी, क्या मालूम था कि तीसरा दिल का दौरा कल रात को ही पड़ना है. वह उससे मिलने नहीं गयी, क्या कहेगी मिकलर, समझ नहीं आता... उसका मन आज ही जाने को हो रहा है, अच्छा नहीं लग रहा कुछ भी. आज शिवरात्रि है, पिछली शिवरात्रि कैसे मनायी उसे याद नहीं, [अर उससे पिछली अच्छी तरह याद है, तब वे दूसरे शहर में थे. तब भी उसने व्रत रखा था. कल जाने से पहले कहना बनकर जाएगी, दिन का भी और शाम का भी.
उस सखी को देखा आज, उसके घर गयी थी, बेहद उदास, सूजी आँखें, रूखे बाल, उसकी दीदी उससे भी ज्यादा उदास थीं.
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