Wednesday, July 15, 2020

ट्रैफिक कंट्रोल



आज तीसरे दिन भी चार पोस्ट्स प्रकाशित कीं. योग कक्षा में एक साधिका अपनी बिटिया को लायी थी जो गोहाटी यूनिवर्सिटी में इलेक्ट्रॉनिक्स में शोध कर रही है. उसने भी एओल का कोर्स किया हुआ है, सबके साथ सुदर्शन क्रिया की. आज महीनों बाद लौकी के कोफ्ते बनाये, इस मौसम की पहली लौकी जो बगीचे से मिली थी. कल पीएम के जीवन पर चेतन भगत द्वारा निर्मित एक फिल्म देखी, बचपन में चाय बेचते थे और बड़े होने पर भी अपने चचेरे भाई के साथ एक कैंटीन में काम करते थे. संघ के प्रचारक बने. पहले सन्यासी बनना चाहते थे. अद्भुत है उनके जीवन की गाथा ! उनमें दृढ संकल्प शक्ति बचपन से ही थी. 

सुबह उठने से पूर्व एक अद्भुत स्वप्न देखा. परमात्मा की ओर से आया एक और संदेश जो उसे गुलामी से छुड़ाने के लिए है. वह एक परिवार में गयी है, साथ में दो अन्य जन भी हैं. वे पड़ोस के परिवार में चले जाते हैं. वे सब बात कर रहे हैं, फिर नूना किसी पत्थर पर कोई संदेश लिखती है, जब अपना नाम लिखने की बारी आती है तो उस खुरदुरे पत्थर पर कुछ भी लिखा नहीं जाता. नाम का पहला अक्षर नहीं लिखा है, तभी पिताजी कहते हैं, यह कैसा नाम है ? वह पुनः प्रयास करती है पर उस स्थान पर कोई भी रंग या चाक काम नहीं करता. वह उसे छोड़कर एक अन्य काले पत्थर पर लिखकर देखती है. श्वेत अक्षरों में ॐ ॐ लिखती है तो झट से पूरा स्थान भर जाता है, फिर अंत में छोटे अक्षरों में अपना नाम भी लिखती है अंग्रेजी में. तभी भीतर से आवाज आती है, स्वयं के नाम को मिटाना होगा, हाथ से मिटाने का प्रयत्न किया पर मिटा नहीं, यह यशेषणा का प्रतीक है. अगले स्वप्न में एक छोटा सा बच्चा है जो सम्भवतः उसी परिवार का है जिससे मिलने गयी थी, वह रात भर उनके घर पर ही रहा है, सुबह उसे छोड़ने जाना है. दृश्य बदलता है, जून फोन  करके उसके परिवार को कहते हैं कि उसे ले जाएँ. वह चाय बनाती है, पतीले में चाय उबल रही है तभी भीतर से आवाज आती है, इसे गिरा दो, दो सफेद कप भी दिखते हैं, उन्हें भी तोड़ देने का ख्याल आता है. यह आसक्ति है. जब तक भीतर जरा सा भी राग शेष है परमात्मा दूर ही रहता है. वह खाली मन में प्रवेश करता है. मन में कोई भी कामना शेष हो तो मिलन होगा भी कैसे ? 

रात्रि के आठ बजे हैं. वर्षा आरंभ  हो गयी है. कुछ देर पूर्व वे बाहर टहल रहे थे तब बरामदे के बल्ब पर पतंगों की वर्षा हो रही थी, सैकड़ों पतंगों ने गिरकर अपनी जान दे दी. क्या रहस्य है इन पतंगों के जन्म और मृत्यु का, कोई नहीं जानता. कल शाम व आज सुबह शिवानी को सुना, कितने सुंदर व सरल शब्दों में वह जीवन के सूत्र बता देती हैं. कहा, यदि हर घंटे एक मिनट के लिए वे जो भी काम कर रहे हों, उसे रोककर  अपने मन को देखें, ध्यान करें व अपने स्वरूप में स्थित हों तो अगले पूरे घंटे मन नियंत्रण में रहेगा, वह इसे ट्रैफिक कंट्रोल कहती हैं. सुबह बच्चों के स्कूल गयी, भूतपूर्व अध्यक्षा से अंतिम मुलाकात हुई, उन्होंने उस पार्क का उद्घाटन किया जो अभी बनना आरंभ नहीं हुआ है, एक दिन तो बन ही जायेगा. शायद वही ‘नाम’ की अभिलाषा... महीनों बाद आज बंगाली सखी से बात हुई, उसकी इकलौती पुत्री और दामाद कनाडा जा रहे हैं सदा के लिए. 

उसने पढ़ा, कालेज में थी तो स्कूल के दिनों को याद करती थी.... कभी-कभी उसे इंटर के वे दिन याद आते हैं जब राजकीय  इंटर कालेज में छुट्टी होने पर वह गेट पर भीड़ होने के कारण आगे जाने की जल्दी न करते हुए सबसे पीछे खड़े रहकर कबूतरों को देखा करती थी. उस स्कूल में कितने कबूतर थे. उसकी उस मनोस्थिति को या चेहरे के भाव को देखकर कुछेक छात्राएं आश्चर्य में आपस में कुछ कहा करती थीं. वे दिन भी क्या दिन थे, जब कोई चिंता न थी. उस लगा इंसान जहाँ और जब होता है वहाँ सुखी रहना नहीं जानता इसलिए अतीत के गुण गाया करता है. 

अगले दिन वह घर आ गयी थी, अपने कमरे में अपनी मेज पर. चचेरी बहन उसके बारे में कोई बात कह रही होगी, वह कितनी नादान है कितनी भोली मगर आज्ञाकारी बिलकुल नहीं. वह उसके लिये कभी कुछ कर सकी तो कितना अच्छा होगा. कालेज जाना था फ़ीस जमा करने और लाइब्रेरी से किताबें लेने. सबसे मिलने का भी आखिरी दिन था, परीक्षाओं के दौरान किसी को फुर्सत नहीं होती और यह अंतिम वर्ष है कालेज का सो... एक छात्रा ने पढ़ाई के बारे में पूछा तो उससे मिथ्याभाषण किया, वह उसका अहम ही तो था. सच बात कहने की उसमें हिम्मत नहीं. सच बात तो यह थी कि पिछले पांच दिन वह उस तरह बिल्कुल नहीं पढ़ पायी पर कहा, टाइमटेबल के अनुसार पढ़ी थी. इससे धोखा उसे दिया या स्वयं को. एक अन्य सखी मिली कालेज में जो आगे पढ़ना चाहती है पर घर वाले उसका रिश्ता तय कर रहे हैं, वह भी झुक जाएगी अपने मम्मी डैडी और भैया के विचारों से जो शहर के बड़े व्यापारी हैं. एक अन्य सखी मिली जो उसे बहकती हुई सी लगती है, बेवजह के शब्द उगलती. एक ने कहा, ‘आषाढ़ का एक दिन’ बकवास है. एक ने उसकी किताब नहीं लौटाई न ही पैसे दिए हैं जबकि वह उस दिन कह रही थी... और पुस्तकालय से जो पुस्तकें उसने ली हैं उसे देखकर लगता है किसी काम में आने वाली नहीं ...

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