दोपहर के तीन बजे हैं. टीवी पर नारी शक्ति पर कार्यक्रम आ रहा है. कैप्टन क्षमता वाजपेयी तीस वर्ष से जहाज उड़ा रही हैं. एक अन्य महिला विश्व की सात ऊंची चोटियों में से छह चोटियाँ फतह कर चुकी हैं. कल महिला दिवस था. ब्लॉग्स पर नारी शक्ति पर लिखा, कुछ पढ़ा भी. वाकई नारी हर क्षेत्र में बढ़ रही है. एक महिला उत्तर-पूर्व से आयी हैं जिन्होंने वहां की महिलाओं के लिए सहायता केंद्र बनाया है. एक जन-प्रतिनिधि हैं, एक अन्य दिव्यांग हैं. वह अन्य दिव्यांग लोगों की मदद भी करती हैं. कल सुबह एक रिजॉर्ट जाना है, जहां भूत पूर्व अध्यक्षा के लिए पिकनिक कम लंच है. ज्यादा दूर नहीं है, बीस-बाइस महिलाएं आने वाली हैं. प्रकृति के सान्निध्य में भोजन और गीत-संगीत का कार्यक्रम होगा.
आज दिन भर व्यस्तता बनी रही. सुबह चार बजे वे उठे थे और सीधे रात को नौ बजे ही विश्राम का समय मिला. सुबह नौ बजे ही रिजॉर्ट पहुँचना था. दोपहर बाद लौटे. कार्यक्रम अच्छा रहा. सन्डे योग कक्षा के बच्चे प्रतीक्षारत थे. शाम को एक महिला मृणाल ज्योति के लिए कुछ सामान लेकर आ गयी. उनका तबादला हो गया है. लोग जब घर बदलते हैं तो काफी सामान छोड़ना ही पड़ता है. उसने भी अभी से हर हफ्ते कुछ न कुछ देने का क्रम आरंभ कर दिया है. पुराणी वाशिंग मशीन और छोटा टीवी लेकर जाने वाली है. वर्षों पहले जब विवाह के बाद नया घर बसाया था तो हर माह वे कुछ न कुछ सामान खरीदते थे, अब फिर एक बार नया घर बसाना होगा, नन्हे का कहना है कि उस घर में सब कुछ नया ही हो, इतने वर्षों तक जो सामान इस्तेमाल करते आये हैं पुराना हो ही गया है, काफी कुछ छोड़ा जा सकता है.
कल रात सोने से पूर्व उसने पतंजलि का ‘समाधि पाद’ सुना. मन समाहित हो गया था. सुबह उठने से पूर्व अनुभव हुआ जैसे परमात्मा कुछ संदेश दे रहा है. स्वप्न में वह छिपा हुआ नहीं रहता, वर्षों पूर्व उसने ही नूना की कलम से लिखवाया था. वह हजार हाथों वाला है और हजार नेत्रों वाला भी. उससे कुछ भी छिपा नहीं है. एक जगह देखा उसके भोजन में एक बाल है जो लाख निकालने पर भी नहीं निकल रहा है. यह उस व्यसन की ओर इशारा है जो उसके आहार को दूषित कर रहा है. एक स्वप्न में दाँत में दर्द होते हुए देखा, सम्भवतः यह भविष्य के लिए चेतावनी थी. एक जगह माइक लगाकर (एओएल में) लोगों को भाषण देते हुए सुना पर लोग अपनी ही बातों में लगे थे. एक परिचिता को भी देखा एक स्वप्न में, वह दूर से मिलने आती है और गले लगकर रोने लगती है. एक साधक को सुख का प्रलोभन आत्मा के पद से नीचे उतार देता है. जो स्वयं से जुड़ना चाहता है उसे संसार से सुख की कामना का त्याग करना होगा, इसके परिणाम में दुःख ही मिलता है. हर सुख एक आभास मात्र ही है, जो अपने पीछे दुःख की एक लम्बी श्रृंखला छिपाये है. परमात्मा ने उन्हें अकेला नहीं छोड़ा है. वह हर जीव को, हर आत्मा को अनेक उपायों से संदेश भेजता है. तितलियों, कीट-पतंगों के माध्यम से, पालतू पशुओं के माध्यम से बादल व फूलों और स्वप्नों के माध्यम से वह न जाने कितने संदेश उसे भेज चुका है. वह उसे स्वाधीन और सुखी देखना चाहता है. वह उनसे प्रेम करता है. उसके सिवाय इस जग में आत्मा का सुहृद कौन हो सकता है ? उसकी वाणी को अनसुना नहीं किया जा सकता, वह स्पष्ट वाणी बोलता है.
उस डायरी में पढ़ा, एक निकट संबन्धी के बारे में लिखा था- वह स्वस्थ नहीं है. इसके कुछ कारण जो ऊपर से दिखाई पड़ते हैं, उसे भी ज्ञात होंगे पर उन्हें दूर करने का उसने सही रूप में कोई प्रयत्न नहीं किया. इसमें उसकी भूल है. वह प्रसन्नचित्त रहकर अपने आपको चुस्तदुरुस्त व स्वच्छ रखकर अपने को यकीन दिलाये कि वह स्वस्थ है, उसे कुछ नहीं हुआ तो बात बन सकती है, पर इसके बजाय वह सुबह सात बजे बिस्तर छोड़ता है, घूमने नहीं जाता. जल्दी से नहाकर चाय-नाश्ता करता है फिर कमरे में बैठ जाता है, किताबें पढ़ता है, बातें करता है, रेडियो सुनता है. वह हर समय तैयार नहीं रहता, कोई काम कहे तो उसे कुछ देर लगती है उठने में. उसे अपना व्यवहार, अपनी रुचियाँ कुछ बदलनी होंगी. जासूसी नॉवल पढ़ने छोड़ने होंगे. साथ ही उपदेशात्मक पुस्तकें भी छोड़ देनी चाहिए. उसे सिर्फ पत्रिकाएँ पढ़नी चाहियें हल्की-फुलकी मगर स्तरीय. उसे बड़ों का विश्वास जीतना होगा, जिसे वह खो चुका है. वे जो कहें उसे करना होगा तभी वह उनका प्रिय बन सकता है. उसे अपने को खुश रखना सीखना होगा.
ये सारी बातें उससे कभी नहीं कहीं, पर विचार सिर्फ बोलकर ही तो प्रेषित नहीं किये जाते !
जानकारीपरक आलेख।
ReplyDeleteस्वागत व आभार !
ReplyDeleteसटीक और सामयिक
ReplyDeleteThanks For Sharing
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