Friday, April 28, 2017

चीजलिंग का नाश्ता


आज सुबह एक स्वप्न देखा, पिछले दिनों भी कई अद्भुत स्वप्न देखे पर सुबह उठकर याद नहीं रहे, लिखा नहीं कुछ. कल देखा, एक विशाल नदी है, सागर जैसी. किनारे पर एक संकरी गली है, उसमें वह जाती है, एक गेंद जैसा हाथ में कुछ है, जो गिरकर दूर तक निकल जाता है. एक बच्चा उसे वहाँ से फेंक देता है जो नदी के किनारे के दलदल में गिर जाती है, वह उसे पकड़ने नदी में उतरती है गेंद को पकड़ते समय लहरों में आगे खींच ली जाती है. किनारे के लोग कहते हैं, डूब रही है, पर वह बड़े आराम से लहरों को पार करते-करते दूसरे किनारे पर पहुंच जाती है. आज पिताजी को डिब्रूगढ़ जाना था, वह लम्बी यात्रा से थक जाते हैं. आज दो सदस्याओं  के लिए लिखी विदाई कविताएँ टाइप कर लीं थीं. जून ने उनके लिए बहुत सुंदर कार्ड बनाये हैं.

पिछले दो दिन नहीं खोली डायरी. परसों से पिताजी का स्वास्थ्य ठीक नहीं है. दो दिन देशव्यापी बंद भी रहा. जून घर पर ही थे. सुबह वे टहलने नहीं गये, शाम को जाना है. फूलों का दर्शन भी करना है. गेस्ट हॉउस व क्लब में फूलों का मेला लगा है. सुबह उठे तो पिताजी बिस्तर पर नहीं थे, वे दोनों पानी पी रहे थे कि जोर की आवाज आई. जून दौडकर गए, बाथरूम का दरवाजा बंद था अंदर से उनकी आवाज आयी, गिर गये हैं, पर ठीक हैं, अभी दरवाजा खोलते हैं, पर दो-तीन मिनट बीत गये, फिर दुबारा पूछा तो बोले, खोलते हैं, रुको. दो-तीन मिनट और बीते तब दरवाजा खोला. उनके सिर पर बाएं ओर चोट लगी थी, हल्का गुलाबी रंग हो गया था, पर खून नहीं निकला था. उन्हें बिस्तर पर लिटाया. वे सो गये. कुछ देर बाद उन्हें उठने के लिए कहा तो मना करने लगे. फिर दर्द के कारण जब सिर को दबाया तो खून निकल आया. उन्हें अस्पताल ले गये, पट्टी बांध दी है और दवा भी दी है. अब नाश्ता करके बाहर बैठे हैं, धूप उन्हें अच्छी लग रही है. आजकल वह अपने को बहुत दुर्बल मानने लगे हैं, बात-बात पर उनकी आँखें नम हो जाती हैं. वृद्धावस्था व्यक्ति को विवश कर देती है. अभी फरवरी चल रहा है पर धूप में तेजी आ गयी है.

फिर तीन दिनों का अन्तराल. आज पिताजी का सी टी स्कैन हुआ. सोमवार को रिपोर्ट मिलेगी. जून कल दिल्ली जा रहे हैं, बुध को डाक्टर को मिलते हुए लौटेंगे. उनकी किडनी में शायद कुछ समस्या हुई है. उम्र ज्यादा होने पर शरीर के अंग अपनी कार्य क्षमता खो बैठते हैं. कल शाम बंगाली सखी की दीदी आयी थीं, उनके लिए एक कविता लिख भेजी है, उन्हें अच्छी लगी. जून सुबह से पिताजी के साथ ही थे अस्पताल में, अब दफ्तर गये हैं. बड़ी ननद की बड़ी बेटी ने पुत्र को जन्म दिया है. दुनिया इसी तरह चलती जा रही है. उसका अंतर परमात्मा के प्रेम से लबालब भरा हुआ है ! उसका साथ कितना मधुर है. जगत भी सुंदर है तो उसी के कारण, क्योंकि जो चेतना उसमें है वही सबमें है, सब उसी के कारण जीवंत हैं.


शाम के पौने पांच बजे हैं, अभी आकाश में सूरज का उजाला है, विदा लेते हुए सूरज का अंतिम उजाला. पिताजी अब पहले से ठीक हैं, उन्हें मूड़ी व चीजलिंग गर्म करके दिए उसमें काला नमक व काली मिर्च डालकर, पसंद आये, पिछले दो दिनों से ब्लॉग पर कुछ भी पोस्ट नहीं किया. लिखने की कोई वजह नजर नहीं आती, मन ध्यान में डूबा रहना चाहता है.

Thursday, April 27, 2017

पीला गुड़हल


आज शाम को क्लब में मीटिंग है. खुद से परिचय जितना गाढ़ा होता जाता है, पता चलता है वे मालिक हैं पर नौकरों की भूमिका निभाते रहते हैं. मन व बुद्धि उनकी सुविधा के लिए ही तो हैं पर वे वही बन जाते हैं. जल जैसे स्वच्छता करने के लिए है, पर जल यदि गंदा हो तो सफाई नहीं कर पाता है, वैसे ही मन तो जगत में प्रेम, शांति व आनन्द बिखेरने के लिए हैं पर जो मन क्रोध बिखेरता है वह तो वतावरण को दूषित कर देता है. परमात्मा की निकटता का यही तो अर्थ है कि उनका मन परमात्मा के गुणों को ही प्रोजेक्ट करे न कि अहंकार के साथियों को जो दुःख, क्रोध, ईर्ष्या आदि हैं. इस समय दोपहर के दो बजे हैं. पिताजी सो रहे हैं, उनकी पीठ में दर्द है. आज सुबह अस्पताल गये थे सेंक लिया व ट्रेक्शन भी. आज बिजली नहीं है. हल्की हवा चल रही है. अब धूप तीखी हो गयी है. उसमें बैठा नहीं जाता. जरबेरा व गुलाब अपनी मस्ती में खिले हैं. कंचन में भी तीन-चार फूल आ गये हैं.

आज जून पिताजी को लेकर तिनसुकिया गये हैं, एकाध घंटे में वापस आएंगे. सुबह एक परिचिता का फोन आया, वह विदेश में रहने वाली अपनी विवाहिता पुत्री को लेकर दोपहर बाद आयेंगी. सुबह वह एक सखी के होनहार पुत्र से मिलने गयी, उसने दो परीक्षाओं में प्रथम स्थान प्राप्त किया है, उसे NASA की तरफ से बुलावा आया है. कल टीवी के कार्यक्रम वाह ! क्या बात है ! में एक कर्नल ने शानदार प्रस्तुति सुनी. लोगों के नामों को लेकर उसने एक लम्बी कविता बनाई और हिन्दू-मुस्लिम एकता को बढ़ावा दिया. जीवन कितने विभिन्न रंगों से मिलकर बना है.
आज वह पीले गुड़हल का एक पौधा लायी है. शाम को एक शादी में जाना है, नन्हे के बचपन का मित्र. जून के दफ्तर में एक कर्मचारी की माँ का देहांत हो गया था, उनके यहाँ भी जाना है. विरोधी तत्व कैसे जीवन में साथ-साथ चलते हैं. द्वन्द्वों के पार हुए बिना मुक्ति नहीं है. आज हिंदी में शमशेर बहादुर सिंह का लिखा पाठ पढ़ाया, थोडा क्लिष्ट है.

आज वेलेंटाईन डे है. जून कल उसके लिए एक ड्रेस तथा एक जूता लाये हैं, ढेर सारे फल भी, रसभरी, बेर, अनार, अमरूद और सेब...इस समय ग्यारह बजे हैं, पिताजी बाहर माली को कुछ काम बता रहे हैं. अब उनका स्वस्थ्य कुछ ठीक है. उनमें दृढ़ इच्छा शक्ति है, दया है, दूसरों का दुःख समझते हैं, कुछ भावुक हैं, हृदय प्रेम से भरा है, बात-बात पर आंसू निकल आते हैं और वह स्वयं कैसी होना चाहती  है, शुद्ध, बुद्ध, मुक्त चेतना, जो सदा परमात्मा का सान्निध्य चाहती है. निज स्वभाव से जो खुशबू फैलती है, वह शाश्वत है, जो पद, यश या धन के कारण प्रसिद्ध होता है तो कारण हट जाने पर वह स्वयं को दुर्बल मान सकता है, लेकिन स्वभाव में टिका व्यक्ति सदा ही प्रसन्न रहता है और उसके जीवन से ही ऐसी सुगंध निकलती है कि आस-पास का वातावरण सुवासित हो जाता है. कल उसे सरस्वती पूजा के लिए स्कूल जाना है. जून कर भेज देंगे, अब उन्हें  भी कार मिल गयी है. नन्हे ने ‘अनुगूँज’ शब्द का अर्थ दो-तीन पंक्तियों में अंग्रेजी भाषा में लिखकर भेजा है, बहुत अच्छा लिखा है, लेडिज क्लब की पत्रिका का यह नाम नूना ने चुना था. संपादिका को भेज दिया है. आजकल शाम को वह ‘योग वशिष्ठ’ पढ़ती है, शायद इसी का असर हो, पिताजी आस्था देखने लगे हैं.


उसे लगा मृणाल ज्योति में की सरस्वती पूजा उसके जीवन की पहली सच्ची पूजा थी, आज सुबह चढ़ाया प्रसाद भी शायद पहला प्रसाद था जो वास्तव में ईश्वर को अर्पित करके मिला था. दोपहर को बंगाली सखी के यहाँ गयी वहाँ भी पूजा का आयोजन किया गया था. उसका फूलों का बगीचा बहुत सुंदर है. उन्हें भी इस वर्ष बड़ा घर मिल जायेगा फिर वे भी ढेर सारे फूल उगायेंगे. दोपहर बाद रोज गार्डन गयी, अपने आप में डूबने का सबसे अच्छा तरीका है टहलना ! 

Wednesday, April 26, 2017

तीन गुलाब


आज दोनों बहनों से बात हुई, छोटी बहन दुबई जा रही थी, उसके पतिदेव को ओमान जाना था. इसी महीने उसके विवाह की वर्षगांठ है. बाईस वर्ष हो गये उनके विवाह को, कार्ड भेजा है. बड़ी के यहाँ खूब वर्षा हो रही है. उन्होंने कहा, उसके जीवन की कहानी पढ़कर उनकी उसके बारे में जो धारणा थी वह टूट रही है. वे अपनी कल्पना से ही किसी के बार में धारणाएं बना लेते हैं, सत्य का उससे कोई संबंध नहीं होता, उसने सोचा उन्हें एक पत्र लिखेगी. जून आज लंच पर नहीं आये, सुबह सात बजे गये थे शाम सात बजे ही आएंगे. सुबह कहा, वह जीत गये, कल उन्होंने ऑफिशियल पार्टी में जूस पीया. अब सत्संग का असर हो रहा है, गुरू का रंग चढ़ रहा है. सुबह साधना भी करते हैं. आसक्ति ही दुःख का कारण है. आसक्ति से प्रमाद होता है, प्रमाद से मद, मद से अहंकार और अहंकार दुःख का भोजन है. आसक्ति मिटने के लिए भीतर का आनन्द मिलना ही एकमात्र शर्त है. आसक्ति के कारण ही कामना उपजती है, कामना यदि पूरी हुई तो लोभ पैदा होगा और न हुई तो क्रोध. परमात्मा से मिलने में रुकावट कामना ही तो है. प्रेम के जिस धागे में यह जगत पिरोया हुआ है, उसे ही परमात्मा को प्रकट करने में सहायक बनाना है. आज क्लब की एक सदस्या से मिलने गयी, उनके लिए विदाई कविता लिखनी है.

अभी–अभी पड़ोस में रहने वाले ‘आर्ट ऑफ़ लिविंग’ के टीचर से मिलने गयी, आने वाले मंगलवार को गुरुपूजा करवानी है. कुछ लोगों को निमन्त्रण भी देना है. आज ठंड फिर बढ़ गयी है, उत्तर भारत में भी कड़ाके की ठंड पड़ रही है. उसे लगता है वे कुछ नहीं होकर अर्थात खाली होकर ही पूर्णता का अनुभव कर सकते हैं. जीवन की यात्रा में उस परम का अनुभव ही एकमात्र सार्थक अनुभव है, पर उसके लिए मन को छोटे-छोटे स्वार्थों से ऊपर उठाना होगा. अप्रमत्त, अप्रमादी बने बिना साधना में प्रगति नहीं हो सकती. कर्मठ, कर्मशील ही भीतर का राज्य पा सकते हैं. जून आज दिल्ली गये हैं, शाम का वक्त है, उसके पास दो घंटे हैं, कुछ पढ़-लिख कर ध्यान करने वाली है.

कल शाम मन ठहर ही नहीं रहा था, देर तक पढ़ती रही फिर टीवी देखा. वे जो भी चाहते हैं उसका विपरीत साथ चला ही आता है, बिन बुलाये मेहमान की तरह. वे प्रेम तो चाहते हैं पर घृणा को जो साथ ही चली आती है, दबा लेते हैं, वही विकार बनकर प्रकट होती है. इसलिए बुद्ध कहते हैं, इच्छा ही दुःख का कारण है. सम्मान की आशा रखने वाले को अपमान के लिए तैयार रहना ही चाहिए. जीवन दो पर टिका है. महाजीवन दो के पार है. पिताजी ने स्वीपर को सफाई के सिलसिले में कोई बात कहनी चाही तो उसने उन्हें टोक दिया, बाद में लगा ऐसा नहीं करना चाहिए थे. उन्हें बात करने के लिए कोई तो चाहिए. उसका काम तो दिनभर मौन रहकर भी चल जाता है. शब्दों को लिखकर ही जो काम हो जाता है, फिर बोलने से सब गलत हो जाता है. कल गणतन्त्र दिवस है, एक छोटी सी कविता लिखी. सकारात्मक भावनाओं की ज्यादा जरूरत है आज वैसे ही वातावरण इतना बोझिल है..गुलाब के तीन बड़े से फूल खिले हैं, अपनी शान में झूम रहे हैं, वैसे हवा तो नहीं चल रही है, पर अदृश्य गति है उनकी जो दिख रही है. पिताजी ने पूरे बगीचे में पानी डाला है, साफ-सुथरा बगीचा अच्छा लग रहा है. काल चक्र निरंतर बढ़ रहा है, उन्हें उसके साथ चलना है. धर्म की धुरी को पकड़ अर्थात अपने भीतर उस एक शांत सत्ता को पकड़ कर उन्हें इस परिवर्तनशील संसार में विहार करना है. जीवन हर जगह है, परमात्मा कण-कण में है, उसका अनुभव करते हुए निर्भार होकर निष्काम कर्म करना है.  

आज पंचायत के चुनावों के कारण अवकाश है. पिताजी का स्वास्थ्य अब उतना ठीक नहीं है. बड़ी ननद की बेटी की शादी मई में होनी तय हुई है पर वे जा नहीं पाएंगे, ऐसा कह रहे हैं. कल शाम माँ के बारे में बहुत सारी बातें उन्होंने बतायीं, जिन्हें वे रिकार्ड करेंगे.

Tuesday, April 25, 2017

कुम्भ का मेला


कल नहीं लिखा, सुबह स्कूल गयी, दोपहर को नेट और ट्यूशन, शाम को भ्रमण और सत्संग, फिर बालिका वधू और समाचार, दिन निकल गया. बीच-बीच में पिताजी से सम्मुख, जून और नन्हे से फोन से बातचीत. आज इस समय शाम के साढ़े सात बजे हैं, जून दोपहर बाद लौट आये हैं. सदा की तरह उसके लिए एक उपहार लाये हैं, सिल्क का सूट ..बहुत सुंदर है और बहुत महंगा भी ! नन्हे ने कहा, उन्हें किसी से कोई अपेक्षा नहीं रखनी चाहिए, वह परिपक्व है, जल्दी हो गया है, हर आगे वाली पीढ़ी पहले से ज्यादा समझदार होती है. वह अपने जीवन पर नजर डालती है तो साफ लगता है, उसकी दृष्टि ही साफ नहीं थी, बुद्धि परिपक्व नहीं थी, परमात्मा ने उसे धीरे-धीरे अपनी ओर आकर्षित किया.
बाहर लॉन में झूले पर बैठकर गर्म जैकेट और कॉट्स वुल के वस्त्रों के बावजूद सुरमई शाम की ठन्डक को महसूस करते हुए लिखना एक अनोखा अनुभव है. सामने साईकस का विशाल पेड़ है, गमले में है पर पत्ते कितने बड़े हो गये हैं, जिनमें मकड़ी ने अपना घर बना लिया है. सुबह ओस के कारण श्वेत रुई से बना प्रतीत होता है. आकाश का रंग सलेटी है, बादल हैं या कोहरा, कुछ समझ में नहीं आता. लोहे के झूले का स्पर्श ठंडा लग रहा है पर गालों को छूती शीतलता भली लग रही है. अभी कुछ देर में वे सांध्य भ्रमण के लिए जायेंगे. सुबह ‘महादेव’ देखा, गणेश का चरित्र कितना अच्छा दिखाया है तभी वे प्रथम पूज्य हैं.
वर्षों पूर्व जो सफर आरम्भ हुआ था अनजाने ही, अब वह पूर्णता की और जाता प्रतीत होता है. हर सवाल का जवाब भीतर ही है, बाहर नहीं है, बाहर आते ही सब कुछ असत्य हो जाता है. पौने आठ बजे हैं, जून और पिताजी टीवी पर अपनी-अपनी पसंद के कार्यक्रम देख रहे हैं. उसे इस क्षण कुछ देखने की चाहत नहीं है. आज सुबह परमात्मा शब्दों के रूप में बरसा. महाकुम्भ पर लेख पूर्ण हो गया, भेज दिया है. परमात्मा परम प्रसाद है, रसपूर्ण है. सुबह के घने कोहरे के बाद अब धूप निकल आई है.
आज मकर संक्रांति है, सुबह से उत्सव का माहौल ! उन्होंने प्रातःराश में चिवड़ा, गुड़ व दही ग्रहण किया साथ में आलूगोभी की सब्जी. टीवी पर कुम्भ के मेले में लोगों द्वारा स्नान करने के चित्र देखे. भीतर से प्रेरणा उठी उन्हें भी एक बार कुम्भ जाना चाहिए. जून ने कहा यदि वे दिल्ली गये तो उसे ले जा सकते हैं. नाश्ते के बाद वह मृणाल ज्योति के बच्चों द्वारा बनाये नये वर्ष के कार्ड्स बांटने गयी. पहले एक उड़िया सखी के यहाँ, वह स्नान कर रही थी, पतिदेव आये, धोती पहने हुए पूजा के वस्त्रों में, फिर एक बिहारी सखी के यहाँ गयी, वह पूजा कर रही थी. उसके पतिदेव सिल्क का कुरता पहने हुए थे, तिल का लड्डू खिलाया. असमिया परिचिता के यहाँ तिल व मूंगफली का एक लड्डू मिला, उनके यहाँ भी बीहू का नाश्ता लॉन में सजा था. एक अन्य उड़िया परिचिता घंटी वाले मन्दिर के बाहर बैठे लोगों के लिए भोजन  ले जाने की तैयारी में लगी थी, उसका लॉन बहुत सुंदर था, कमल की कलियां भी थीं. उसके एक छात्र की माँ ने चावल की खीर परोसी, जो गुड़ डालकर बनाई थी. वह चने की दाल, पूरी व खीर का नाश्ता कई लोगों को करा चुकी थीं. उनके यहाँ तीन सर्वेंट परिवार हैं. सभी लोग इस दिन दान-पुन्य करते हैं. एक अन्य सखी के यहाँ भी कई बच्चे थे. वह अपने भाई के पुत्र को नहलाकर तैयार कर रही थी, वे लोग यात्रा पर जाने वाले थे. एक अन्य परिचिता ने अदरक व तेज पत्ता डालकर लाल चाय पिलाई. लोग कितने प्यार से मिलते हैं, स्वागत करते हैं, एक महिला घर पर नहीं मिलीं, उनके पतिदेव ने कहा, आइये आंटी जी, क्या वह इतनी बुजुर्ग लगने लगी है. एक अन्य परिचिता पूजा करके उठी थीं, उन्हें शाम को सत्संग में आने के लिए कहा. दो अन्य को संदेश भेजे हैं, दोनों क्लब गयी होंगी, आज के दिन क्लब में भी विशेष भोज होता है. जून दफ्तर गये हैं. कल शाम वे जून के बॉस के परिवार को पहली बार बुला रहे हैं, पहले बाहर आग जलाएंगे, फिर भीतर रात्रि भोज.

बीहू का अवकाश समाप्त हो गया. कल दोपहर वे नदी किनारे गये, पानी में लहरों के हिलने पर डूबते सूर्य का पतिबिम्ब अनोखी छटा प्रस्तुत कर रहा था. कल शाम का आयोजन अच्छा रहा. सुबह वह नर्सरी गयी थी. गेंदे, कैंडीटफ्ट व पिटुनिया के पौधे लाने. मार्च तक फूल आ जायेंगे उनमें.  

Monday, April 24, 2017

सूरज का लाल गोला

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नये वर्ष का चौथा दिन ! कल रात मूसलाधार वर्षा हुई, इस वक्त भी बादल बने हैं. जून आज मुम्बई गये हैं, कल कोचीन जायेंगे. वे यात्रा के नाम से बहुत प्रसन्न होते हैं, उन्हें नये-नये स्थान देखना भी भाता है और यात्रा की परेशानियाँ जरा भी परेशान नहीं करतीं. महर्षि अरविन्द पर लिखी एक पुस्तक बंगलूरू की उस दुकान से खरीदी थी, जहाँ किताबें ही किताबें पड़ी थीं, सीढियों पर भी किताबें. महान योगी थे वे. संस्कार में आजकल सद्गुरु का पतंजलि योगसूत्र पर बोला भाष्य प्रसारित हो रहा है. बहुत सी बातें स्पष्ट हो रही हैं. कितना कुछ जानने को है अभी, अनंत है वह परमात्मा..वे तो कुछ भी नहीं जानते..कई बार ऐसा लगता है जैसे पहले वह जो जानती थी अब उतना भी नहीं जानती. जीवन एक रहस्य है जो जाना नहीं जा सकता, जीया जा सकता है. शाम गहराती जा रही है, पांच भी नहीं बजे हैं अभी दस मिनट शेष हैं.

ठंड आज कुछ ज्यादा है, स्वेटर के भीतर त्वचा और त्वचा के भीतर हाड़ों को छूती हुई. सुबह आसमान पर बादल थे या कोहरा, सब श्वेत था मध्य में लालपन लिए नारंगी सूरज का गोला आकाश में ऊपर तो चढ़ आया था पर अभी तक बालसूर्य सा लग रहा था. उसे देखकर मन कैसा उल्लसित हो उठा, जैसे परमात्मा के माथे पर लगा टीका हो या..एक और उपमा उस वक्त ध्यान में आई थी पर अब मन से पुंछ गयी है. कई बार ऐसी सुंदर पंक्तियाँ मन में कौंध जाती हैं पर तब लिखने का साधन नहीं होता. एक सखी का फोन आया था, भावुक है, कलाकार है, पर बोलती कुछ ज्यादा है. कल क्लब के वार्षिक उत्सव की कला प्रदर्शनी में उसकी कृति भी लगायी जाएगी, उसे आमंत्रित किया है. कल शाम पिताजी से फोन पर बात की, बार-बार फोन कट जाता था, पर वह कोशिश करते रहे जब तक बात पूरी नहीं हो गयी, जबकि वह एक बार कट जाने के बाद दुबारा प्रयास नहीं करती, उनसे सीख लेनी चाहिए. कल एक परिचिता आयीं थीं, सेंट जेवियर्स स्कूल के बच्चों द्वारा लिखी कुछ असमिया कविताओं का हिंदी अनुवाद उसे देखने के लिए देकर गयी हैं. भविष्य में हिन्दी में यह किताब छपेगी, जिसमें भूपेन हजारिका, मामोनी और अब्दुल कलाम के लिए लिखी कविताएँ हैं.


आज धूप चमचमाती हुई निकली है. कल बड़ी ननद का फोन आया, मंझली भांजी की मंगनी तय हो गयी है, लड़का बंगाली है. उसने सोचा उसकी बंगाली सखी को सुनकर अच्छा लगेगा. आज सुबह टहलने गयी तो आई पौड पर मृत्यु पर प्रवचन सुना, कितनी अद्भुत व्याख्या करते हैं सद्गुरु ! टीवी पर मुरारी बापू की कथा आ रही है. परमात्मा का बखान करते-करते थकते ही नहीं, गाए ही चले जाते हैं. इलाहबाद में कुम्भ का मेला लगने वाला है, करोड़ों लोग आएंगे उस परमात्मा का गुणगान करने ही तो. परमात्मा घट-घट वासी है पर वह नित नूतन है, बासी नहीं है. कल रात छोटे भाई को सुंदर प्रवचन देते सुना, अद्भुत स्वप्न था वह. रात को ध्यान करते-करते सोयी थी. अभी उससे बात हुई, कल रात उसे भी स्वप्न आया कि वह किसी को समझा रहा है बहुत विस्तार से, आश्चर्य है और नहीं भी, परमात्मा सब कुछ कर सकते हैं ! भाई ने कहा वह इस बारे में ज्यादा बात करेगा तो उसकी आँखों से अश्रुपात होने लगेगा, उसने कहा, उसका यह तबादला भी कृपा से हुआ है, वह अपने सद्गुरु से जुड़ा है और वह उसे दिशा दिखाते हैं. सचमुच उसका समर्पण कहीं ज्यादा है.

Saturday, April 22, 2017

जीवन और मृत्यु

दिसम्बर का तीसरा सप्ताह और वर्षा होने के आसार...ठंड बढ़ाने का पूरा सरंजाम प्रकृति ने कर दिया है. आज सविता देव नहीं दिख रहे हैं, सूर्य विकास की प्रेरणा देता है, अपनी ओर बुलाता है. परमात्मा भी उन्हें अपनी ओर खींचता है, प्रेरणा देता है. वह उन्हें खुद सा बनाना चाहता है पर प्रयास उन्हें करना होगा. हाथ उठाना होगा, वह तो हाथ थामने को तैयार ही है. बादलों के कारण टीवी पर प्रसारण भी अटक रहा है. क्रिसमस और देव दीवाली पर उसे कविता व आलेख लिखने हैं. सभी को आभार के छोटे छोटे संदेश लिखने हैं जिनसे यात्रा वे मिले हैं. नये वर्ष के लिए नई कविता भी..जालोनी क्लब की पत्रिका के लिए भी, पर जाते-जाते यह वर्ष कैसी दुखद घटना से सारे देश को हिला गया है. सुबह उठकर समाचारों में जब उस वीभत्स घटना के बारे में सुना तो मन कैसा भारी हो गया था. कुछ शब्द अपने आप ही निकल पड़े.

नारी की पूजा करने वाला
यह देश..
आज शर्मसार है !
जैसे चढ़ाया गया हो
किसी को
क्रूस पर
व्यर्थ न जाये
उसका भी बलिदान
मांग रही है इंसाफ
जिसके लहू की एक-एक बूंद

कल रात एक अनोखा स्वप्न देखा. नन्हा नृत्य कर रहा है. दोनों पैरों को बहुत तेजी से तरंगित कर रहा है और अंत में नटराज की सुंदर मुद्रा में खड़ा हो जाता है, मंत्रमुग्ध करने वाला अद्भुत रूप था उसका..और भी कई स्वप्न देखे पर यही याद है. दीदी ने एक शुभ समाचार दिया, छोटी भांजी की पुनः मंगनी हो गयी और अब वह आस्ट्रेलिया में रहेगी अपने मंगेतर के साथ, जो स्वयं भी तलाकशुदा है. दोनों के जीवन में पुनः प्रेम का फूल खिलेगा.

दामिनी की अंततः मृत्यु हो गयी. सोलह दिसम्बर की रात से वह मौत से लड़ रही थी, जिन्दगी हार गयी, मौत जीत गयी, शायद उसका बलिदान आने वाली पीढ़ियों के लिए एक रास्ता बना जाये. सरकार को जागना ही होगा आये दिन होने वाली ये घटनाएँ अब अनदेखी नहीं की जा सकतीं. महिलाओं को आतंक के वातावरण में जीने के लिए अब विवश नहीं किया जा सकता, उन्हें वस्तु की तरह इस्तेमाल नहीं किया जा सकता. नारी के व्यक्तित्त्व को पनपने का मौका मिलेगा तो वह भी सबल बनेगी. अख़बार में महिलाओं के उत्पीड़न के समाचार पढ़कर मन कितना बेचैन हो जाता है.

कैसे कहें नये वर्ष की शुभकामनायें
जबकि सामने बिछी है जाते हुए वर्ष की
खून से लथपथ देह
पिछले वर्ष भी तो यही कहा था
पर नहीं रुका आतंक नहीं थमा मौत का तूफान
लील गया निर्दोष स्कूली बच्चों को
कभी राजधानी की सड़कों पर
अस्मत मासूमों की
इतना बेरहम हो गया है इन्सान
लाठियों, जुलूसों और विद्रोह की भाषा
बोलनी पड़ती है अपनों के खिलाफ..

नहीं तो कैसे मांगे इंसाफ और किससे ..?

Friday, April 21, 2017

विशालाक्षी मंडप


आज हफ्तों बाद लिख रही है. कितना कुछ है मन में जो अनकहा रह गया है. जून के मित्र की पुत्री के विवाह में सम्मिलित होने गये थे वे बनारस. विवाह सारनाथ में था, रात देर से लौटे, पर बिना ब्याह देखे, बारात देर से आयी. जून इस बार अपने एक पुराने मित्र से लगभग तीस वर्षों बाद मिले. ‘गंगा महोत्सव’ देखा और ‘देव दीपावली’ में हजारों दीपकों का प्रकाश, गंगा का तट जैसे दिव्य आलोक से भर गया था. कितना पैदल चलना पड़ा था, हजारों की भीड़ घाट की ओर जा रही थी. मुख्य आयोजन स्थल गंगा के पानी में ऊंचे मचान पर बना था, आरती का मंच अलग था. पिताजी बनारस में रह गये और व बैंगलोर चले गये.

बैंगलोर में नन्हे का घर, वह बहुत परिपक्व लग रहा था इस बार, खुश व शांत भी. उनका बहुत ध्यान रखा. नया बेड लाया, और भी कई सामान, अलमारी का एक खाना भी उसने खाली करके रखा था, जैसे वह करती है और बचपन से वह देखता आ रहा है. अपने मित्रों का भी बहुत ध्यान रखता है. उसे इतनी अच्छी तरह से भोजन परोसते देखना भी अच्छा लगा, चाय बनाना भी सीख गया है पर चाय पत्ती कुछ ज्यादा डालता है. उसने बताया एक बार घर में चोर आ गया था तो दौड़ कर उसने उसका पीछा किया, वहीं एक फिल्म भी देखी, ‘लाइफ ऑफ़ पाई’ बहुत पहले किताब पढ़ी थी. प्रकृति के मोहक व भयानक रूप के बहुत सुंदर दृश्य थे. नन्हे को याद था कि उसने उसे यह कहानी सुनाई थी.

उसके बाद आश्रम में बिताये दिन. बुहारी लगाने की सेवा और वह चमत्कार. गुरूजी के न होने पर भी उनकी उपस्थति का अहसास. आश्रम के कुत्तों का स्नेह प्रदर्शन, कोर्स के दौरान आश्रुओं की बाढ़ व नृत्य की छटा..सब कुछ कितना अद्भुत था तब. उस दिन सुबह उठे तो मन में उत्साह था, आज आश्रम जाना है. दोपहर को टैक्सी बुलाई थी. रास्ते में अपना निर्माणाधीन घर देखा. आम के एक पेड़ पर अम्बियाँ लगी थीं, सर्दियों में आम देखकर मन अचरज से भर गया. आश्रम पहुंचे और रजिस्ट्रेशन कराया. उन्हें बुद्धा में रहना था. कमरे में दो अन्य जन थे. एक महिला भूटान से आई थीं केवल आश्रम देखने, वैसे वे लोग लायंस क्लब के वार्षिकोत्सव में भाग लेने आये थे. भूटान में आर्ट ऑफ़ लिविंग के प्रति जानकारी ज्यादा नहीं हैं इसके लिए भी चिंतित लगीं. दूसरी गुजरात की एक नौकरीपेशा युवती थी, जो अकेलेपन के अपने भय से मुक्त होने के लिए यह कोर्स कर रही थी. जून भी उसी बिल्डिंग में दूसरे कमरे में थे. अगले दिन सुबह तैयार होकर वे महावीर हॉल पहुँच गये. छह बजे से व्यायाम की कक्षा शुरू हुई.  योग शिक्षक संजयजी थे, हंसमुख व प्राणवान व्यक्ति..पता ही नहीं चला, कैसे समय बीत गया. सेवा काल में विशालाक्षी मंडप में उसने झाडू लगाया, जैसे अपने घर की सफाई कर रही है ऐसा ही भाव मन में उठ रहा था. कुछ वर्षों बाद वे जब बैंगलोर में रहेंगे, तब भी वह इसी तरह आश्रम में आकर सेवा का कार्य करेगी, ऐसे विचार भी मन को आनंदित कर रहे थे. दिन में कोर्स चलता रहा. ध्यान, संगीत, वीडियो और मध्य में विश्राम. प्रकृति के सान्निध्य में कुछ पल, वे दूर तक घूमने गये, आश्रम के बाहर राधा कुञ्ज है उसे देखा फिर सुमेरु मंडप भी. पंचकर्म के स्थल के पास एक झील है, उसके भी दर्शन किये. शाम को अँधेरा होते ही विशालाक्षी मंडप रौशनी में जगमगा उठा था. वे सामने लॉन में बैठकर उसकी शोभा निहारते रहे, हर दिन ऐसा ही हुआ, दो दिन दो कुत्ते पास आकर बैठ गये, स्नेह जताते हुए, बिलकुल निकट, उनकी आँखों में जैसे कोई कुछ कह रहा था, आत्मा की भाषा क्या होती है तभी जाना. फिर वापसी में गोहाटी में एक सखी के साथ बिताये वे पल. पिताजी ट्रेन से वहीं आ गये थे, फिर वे सभी मिलकर घर लौट आये, यह सभी कुछ स्मृति पटल पर अंकित हो गया है.


Tuesday, April 18, 2017

सुबह की सैर


आज सुबह टहलने गयी तो पैरों में अचानक ताकत भर गयी थी. कुछ देर दौड़ कर बाकी वक्त तेज चाल से भ्रमण पूर्ण किया. घर आकर विश्राम किया, मन खाली था. जहाँ कुछ भी नहीं रहता, सारे अनुभव चुक जाते हैं, वहीं कैवल्य है, वहीं निर्वाण है. सारे अनुभव मन को ही होते हैं. मन एक मदारी है, वह ढेर से खेल दिखाए चले जाता है, लुभाए चले जाता है. लेकिन जहाँ कुछ भी नहीं रहता, दूसरा कोई रहता ही नहीं, मुक्ति है. गुरूजी कहते हैं, अच्छे से अच्छा अनुभव भी बाहर ही है. वहाँ द्वैत है, अब कुछ देखना नहीं, कुछ पाना नहीं, कुछ जानना नहीं, बस होना है..सहज अपने आप में पूर्ण..मौन ! इस मौन के बाद जो शब्द उठेंगे वह जीवन को उत्सव बना देगें..अर्थात जीवन को उत्सव बना देखने की कामना तो भीतर है ही..कैसा चतुर है मन..एक ही कामना में सब कुछ मांग लेता है और फिर अलग हो जाता है..

आज का भ्रमणकाल कल से अलग था. हरियाली, फूलों की लाली, मनहर मनभावन सुख वाली. नवम्बर की सुबह कितनी सुहानी होती है. आकाश पर रंगों की अनोखी चित्रकारी, वातावरण में हल्की सी ठंडक..पंछियों का कलरव और हवा इतनी हल्की सी..भीतर कोई प्रेरणादायक वचन बोलने लगा. बहुत सारे संशय दूर हो गये. उन्हें साक्षी भाव रहना है, पूर्व संस्कार वश यदि कोई विकार जगता है तो साक्षी भाव में रहने के कारण उसका कोई असर नहीं होता. कैसी अनोखी शांति है इस ज्ञान में. शाम को मीटिंग है, कल एक सखी का जन्मदिन है. सभी कुछ कितना सरल है. वे अपनी पूर्व धारणाओं और पूर्वाग्रहों के कारण जटिल बना लेते हैं. जीवन एक गुलाब की तरह जीना चाहिए या एक संत की तरह..निर्लिप्त..सदा मुक्त !

आज बदली है, ठंडी हवा भी बह रही है. कल आखिर कसाब को फांसी हो गयी. उसकी कहानी इस जन्म की तो खत्म हो गयी, लेकिन अगले जन्म में उसे जाना ही होगा. सुबह साढ़े तीन बजे ही नींद खुल गयी, उठी नहीं, एक स्वप्न चलने लगा. नन्हे को देखा, कल रात माँ, पुत्र के मिलन के जो डायलाग सुने थे, वे भी कहे, सुने, तभी भीतर विचार आया God loves fun वह परमात्मा उन्हें नाटक करते देखकर कितना हँसता न होगा ! सुबह वे साथ ही घूमने गये, बातचीत हुई ज्यादा, घूमना हुआ कम, वापस आये तो माली आ गया था.





Monday, April 17, 2017

पितरों का लोक


कल शाम उलझन भरी थी, परमात्मा ही उस रूप में आया था. “जब जैसा तब वैसा रे”. अंदर की ताकत पैदा करनी है, बाहर कर्म करना है. उन्हें अपने पात्र को बड़ा बनाना है. कृपा की वर्षा प्रतिपल हो रही है, वे धन्यभागी हैं, कृपा हासिल करने का कोई अंत नहीं है. आज सुबह पौने चार बजे नींद खुल गयी, ‘यजुर्वेद’ का स्वाध्याय चल रहा है आजकल ‘ज्ञान प्रवाह’ में. परमात्मा की स्तुति सुनते-सुनते प्रातःकालीन कर्म करते हुए टहलने गयी तो मन में वही चिन्तन चल रहा था. लौटकर सूर्य देवता के सम्मुख ध्यान किया. अद्भुत दृश्य था, देखते-देखते बादलों के पीछे से नारंगी सूरज ऊपर उठने लगा और अचानक हवा चलने लगी. पेड़ झूमने लगे, सारा दृश्य स्वर्गिक प्रतीत हो रहा था. प्रकृति इतनी  सुंदर है, आज से पूर्व कहाँ ज्ञात था. परमात्मा चुपचाप अपना काम किये जाता है. मिट्टी से खुशबुएँ उगाता है, रंग बिखेरता है आकाश से. परमात्मा की महिमा सोचने लगो तो बुद्धि चकराने लगती है, उसमें तो बस डूबा जा सकता है, उसे तो बस महसूस किया जा सकता है. वह तो अपने भीतर जगाया जा सकता है, बल्कि यह भी वही करवाता है. आज सुबह टीवी पर ‘महादेव’ धारावाहिक देखा, फिर टिकट सेल करने निकली, दो बिके, शाम को फिर जाना है, इस तरह एक बुक खत्म करनी है, बल्कि हो ही गयी है. सभी महिलाओं ने कितने प्यार से बात की, सभी के दिल एक ही तो हैं, एक के यहाँ सुंदर पक्षी देखे, एक के यहाँ दरवाजे पर लगाने के लिए करटेन रोप का तरीका देखा. लोगों से उसे मिलना-जुलना है इसलिए ही परमात्मा ने उसे मुक्त किया है, अब समय है उसके पास !

उसने आज सुना सद्गुरु कह रहे थे, ‘श्रद्धा से किया जाने वाला कृत्य ही श्राद्ध है. शरीर जो सगुण है जब अनंत चेतना में समा जाता है तो सूक्ष्म शरीर या कारण शरीर में वासना रह जाती है. ब्रह्मांड में रहते हैं तो पिंड की आशा रहती है पिंड में रहते हैं तो ब्रहमांड की. शरीर की वासना को पूर्ण करने के लिए ही पिंडदान किया जाता है. इसका अर्थ है उन्हें पुनः देह मिल जाये. मृतक को यदि लगे कि वह जल रहा है तो उसे दस दिन तक जल व तिल अर्पित करते हैं. उनकी पसंद की वस्तुएं भी देते हैं, बिना नमक के देते हैं, आत्मा को सुगंध मिलती है तो वह तृप्त हो जाती है. तृप्त करना ही तर्पण है. भाव यदि शुद्ध हो तभी लाभ होता है. पितरों से प्रार्थना करके सूक्ष्म जगत से उनसे संपदा व स्वास्थ्य भी मांगते हैं. उस लोक में पितरों का मार्ग सुगम हो इसकी प्रार्थना भी करते हैं और उनके द्वारा तृप्ति मिले इसकी कामना भी. जिन्हें देह नहीं मिली ऐसे पितृ भी होंगे, जिन्हें देह नहीं चाहिए ऐसे भी, दोनों के लिए प्रार्थना करनी है. कुछ ऐसे होंगे जिन्हें देह मिल गयी होगी उनके नये जीवन के लिए प्रार्थना करनी है.’ कितनी अनोखी है भारतीय संस्कृति ! उसने मन ही मन सद्गुरू को इस सुंदर ज्ञान के लिए प्रणाम किया और पितरों से प्रार्थना भी की.


आज दीपावली है, सुबह जल्दी उठे वे, रोज के सभी कार्य निपटा कर नर्सरी से फूलों के पौधे लाये, अब हरसिंगार के नीचे बैठे हैं, हवा बह रही है. कौन है जो इस शीतल पवन को डुला रहा है, कौन सी शक्ति है ? वृक्ष के नीचे कितना सुकून मिलता है इसका आभास आजकल होने लगा है. कल बाल दिवस है, वे मृणाल ज्योति स्कूल जायेंगे. बच्चों के लिए ढेर सारे उपहार लेकर.

Friday, April 7, 2017

केसरिया बदलियाँ


परमात्मा हर पल उनके मन का द्वार खटखटाता है, वे कभी खोलते ही नहीं, वह तो स्वयं प्रकट होने को आतुर है. वह प्रतिपल बरस रहा है, उसे देखने की नजर भीतर पैदा करनी है. चेतना का आरोहण करना है, भीतर जो अनंत ऊर्जा है उसे एक आकार देना है. जो स्वयं के प्रतिकूल हो वह कभी किसी दूसरे के साथ भूलकर भी न करें, क्योंकि दूसरों को दिया दुःख अंततः अपने को ही दिया जाता है, चेतना एक ही है.  उन्हें अपने ‘होने’ की सत्ता को सार्थक करना है, अपने होने के प्रयोजन को सिद्ध करना है. वे अपनी पूर्ण क्षमता को विकसित कर सकें, जो बीज में सुप्त है, वह फूल बन कर खिले. जीवन का अर्थ क्या है, इसे जानें. वे किस निमित्त हैं, वे किसका माध्यम हैं, किसके यंत्र हैं, किसके खिलौने हैं, इस विशाल आयोजन में उनका भी योगदान हो, उनके पास जो भी है, देह, मन, बुद्धि सभी उसके काम आ जाये, वे उसके सहचर बन जाएँ. सन्नाटे में भी जो उनके साथ रहता है, अँधेरी स्याह रात्रि में, निस्तब्धता में भी जो उनके निकटतम है, उसके हाथ में स्वयं को सौंप कर निश्चिन्त हो जाना है. आज सुबह चार बजे उठी, अकेले ही टहलने गयी, बाहर बगीचे में ध्यान किया, सूर्य की रौशनी में आकश और पेड़ किस अद्भुत तरीके से चमचमा रहे थे !

परमात्मा स्वयं को कितने रूपों में प्रकट कर रहा है, मानव देख नहीं पाता, आश्चर्य है, सुंदर वृक्ष, हरी घास, चहकते पंछी, उगता हुआ सूर्य, प्रातःकालीन शीतल सुगन्धित पवन सभी कुछ उसी की याद दिलाते हैं. उनके भीतर का आकाश अनंत शांति व निस्तब्धता भी उसी की याद दिलाते हैं. सारा जगत एक अलौकिक शांति से भर गया लगता है. इस जगत की हर शै उसी की लीला में सहभागी है. वे मानव ही स्वयं को पृथक मानकर उससे अलग हो जाते हैं !

आज से नया माली काम पर आ रहा है, अमर सिंह, जो सारे पंजाबी लोगों को एक ही मानता है, जैसे उन्हें सारे जापानी एक जैसे लगते हैं. सुबह सूर्य का लाल गोला दिखा पर बीस मिनट बाद ही दृश्य बदल गया, कोहरा आ गया, सूरज श्वेत हो गया था. अभी तक धूप नहीं निकली है, परमात्मा उसे रात को जगाने आता है, पर नींद और स्वप्न की दुनिया में मन कैसे खो जाता है. आज शाम को क्लब की मीटिंग है. बाएं तरफ की पड़ोसिन को-ओर्डीनेटर है, उसे फोन करके न आ पाने के लिए कहेगी.

जिसे ऐसी प्रसन्नता चाहिए जो अपह्रत न हो सके, खंडित न हो सके, बाधित न हो सके, उसे अपना अंतःकरण अस्तित्त्व के प्रति खोल ही देना होगा. ऐसी समाधि जिसे चाहिए जो सहज हो. समता, स्थिरता, संतुलित रहना ये सभी तो सहजता से मिलते हैं. समाधान साथ-साथ चलता रहे तो अंतःकरण मोद से भरा रहता है. जो संकल्प को छोड़ना जानता है, वही उसे सिद्ध भी करता है, जो त्यागना सीख गया, वह सब पाना सीख गया. कितने सुंदर शब्द उसने सुने आज सुबह..आज तीसरा दिन था, सूर्य देवता को अपना रूप बदलते हुए देखा. परसों चमचमाता हुआ बाल सूर्य देखा, कल कोहरे के पीछे श्वेत सूर्य और आज बादलों के पीछे छुपा सूर्य. अभी तक धूप में तेजी नहीं आई है !

एक नन्हे से बीज में जीवित रहने की प्रबल इच्छा होती है, कितनी बाधाएं पार करके वह अंकुरित होता है, पनपता है, वह मिटने को तैयार है तभी वह ‘होता’ है. आज सुबह चार बजे से पहले उठी. सूर्य देवता ने आज नया रूप धरा था. सलेटी बादलों में सुनहरी व केसरिया किरणों का जाल झांक रहा था. प्रकृति का रूप कितना मोहक है, उसके पीछे छिपे उस अव्यक्त चेतन के ही तो कारण, इस सुन्दरता को निहारने वाला भी तो वही चेतन है, वही इस अपार सौन्दर्य को जन्म देने वाला है और वही इसका चितेरा भी ! कल शाम मृणाल ज्योति से फोन आया, आज एक मीटिंग में जाना है. ॐ की ध्वनि आ रही है, पता नहीं कहाँ से अक्सर यह ध्वनि उसे सुनाई देती है, गम्भीर स्वरों में कोई ॐ कहता है !   



Thursday, April 6, 2017

नवम्बर की धूप


पिछली तीन रात्रियों को ठीक एक बजकर सैंतालीस मिनट पर कोई उसे उठा देता है. उसके बाद भीतर से कोई कहता है जीवन अब बदल जायेगा. पूर्ववत् नहीं रहेगा. एक ख़ुशबू की परत, चारों ओर लिपटी रहती है. उनके भीतर कितने खजाने हैं, रंगों, खुशबुओं और संगीत के खज़ाने ! उसका मन एक अनोखी शांति से भर गया है, मन उसका नहीं रहा इसलिए कोई अदृश्य सत्ता ही अब सूत्रधार है. परसों लेडीज क्लब की मीटिंग है, वह मृणाल ज्योति की डोनेशन बुक लेकर जाएगी.

कल रात एक स्वप्न देखा, एक कार में वह बैठी है और उसे कुछ ही दूर जाना है पर उस कार में न स्टीरियंग है न ब्रेक. वह निर्धारित स्थान से आगे चली जाती है, सड़क आ गयी है जिस पर सामने से तेज गति से आते वाहन हैं. उसे डर लगता है पर गाड़ी बिना टकराए मुड़ कर किनारे से निकल जाती है.

कल रात कोई स्वप्न नहीं देखा, देखा भी हो तो स्मरण नहीं है. सुबह ठीक चार बजे किसी ने उठा दिया. वह कोई जो उसके भीतर रहता है, वह उसे एक पल को भी नहीं भूलता, वही वह है अब, तो स्वयं को कोई कैसे भूल सकता है. हरसिंगार के वृक्ष के नीचे की छाया में उसकी ही अनुभूति है, उसकी ही ख़ुशबू है जो चारों ओर से घेरे हुए है. सूखे पत्तों की आवाज में भी वही है, हवा की सरसराहट में भी वही, सामने हरी घास पर बिखरी धूप में उसकी ही चमक है, फूलों के रंगों में, शीतल हवा के स्पर्श में वही तो है, अब शरद काल आ गया है, आकाश नीला है और वृक्ष कितने हरे, एक सन्नाटा बिखरा है चारों ओर जो उसकी ही खबर दे रहा है. आज स्वास्थ्य पहले से बेहतर है. वह आने वाला है इसलिए ही देह को तपाकर स्वच्छ किया प्रकृति ने, फिर भीतर के सारे विकारों को निकाल बाहर किया. तन व मन दोनों हल्के हो गये हैं. अब कुछ करना शेष नहीं है, घर का मालिक आ गया है, अब जो भी वह कराएगा, वही होगा !

हरसिंगार के पत्तों से छनकर धूप के नन्हे-नन्हे गोले उसकी डायरी पर बन रहे हैं. यानि परमात्मा के हाथों से बनी कला ! उसके फूल अभी तक गिर रहे हैं, जो एकाध डाली पर अटके रह गये थे. हवा आज भी शीतल है और सड़क पर स्थित खम्भे का बल्ब आज भी कर्मचारी लगा रहे हैं, एक बल्ब के लिए पूरी की पूरी टीम आई है. पिताजी का मनोरंजन हो रहा है. उसने बोगेनविलिया के गमले धूप में रखवा दिए हैं. इस वर्ष उनमें अवश्य अच्छे फूल आएंगे. कल सिर्फ एक टिकट शेष रही, वह भी बिक जायेगी. आज की दो पोस्ट उसने सुबह ही लिख दी हैं, जून ने कहा, नौ बजे से दो बजे तक बिजली नहीं रहेगी.


नवम्बर की गुनगुनी धूप तन को सहलाती है. बाल सूर्य की किरणों की आभा में जब तृण की नोकें चमचमाती हैं, वृक्षों की डालियाँ एक अनोखी आभा से भर जाती हैं. फूलों की सुगंध रह-रह कर नासापुटों में भर जाती है. बोगेनविलिया की डालों से टपकती टप-टप ओस की बूंदें अंतर भिगाती हैं, झरते हुए फूलों की कतार सी जमीन पर बिछ जाती हैं. जीवन को उसकी सुन्दरता का अहसास जो कराती है, अम्बर की वह नीलिमा स्वप्नलोक लिए जाती है. खगों की कूजन ज्यों लोरी सुनाती है ! पत्तों की सरसराहट.. ज्यों पवन पायल छनकाती है. गुलाबी रंगत कलिका की.. भीतर मिलन का अहसास जगाती है. हर शै कुदरत की उसकी याद दिलाती है. इतनी सुंदर थी यह दुनिया क्या पहले भी..उससे इश्क के बाद नजर जो आती है. दूब घास की हरी नोक भी यहाँ सुख सरिता बहाती है, सड़क पर जाते हुए हरकारे की आवाज भी भीतर कैसी हूक जगाती है. बगीचे में करते माली की खुरपी की ध्वनि जैसे सृष्टि का संदेश सुनाती है. रचा जा रहा है हर पल इस जहाँ में चुपचाप ओ मालिक, यह बात आज समझ में आती है. 

Wednesday, April 5, 2017

नन्ही चिड़िया


परसों नवरात्र का अंतिम दिन था. वह अस्पताल में थी. टीवी पर माँ दुर्गा की सुंदर मूर्तियों के दर्शन किये थे. कमरे के बाहर लगातार पानी गिर रहा था, उसी का शोर नींद आने में बाधा डाल रहा था. लेकिन भीतर रंगों व ध्वनियों का एक अनोखा संसार है, वहाँ जड़-चेतन का कोई भेद नहीं है, परमात्मा वहीँ है, वहाँ सौन्दर्य है. रात को देखा, वह गहन गुफाओं से गुजरती है, टेढ़े-मेढ़े रास्तों पर सहजता से बढ़ती जाती है. सुंदर दृश्य भी थे और अँधेरे भी, दिव्य लोक भी थे और सामान्य जन भी. कभी सामान्य जीवन के कितने ही दृश्य दिखे, बड़ी फैक्ट्रियां और लोग, अब ठीक से याद नहीं आता. जब तक यह हुआ, शरीर का सुख-दुःख कुछ भी याद नहीं रहा. याद रहा तो पानी का स्पर्श, पानी में सहज तैरकर या उड़कर एक स्थान से दूसरे स्थान पहुंचना.

कल रात्रि अस्पताल के कमरा नम्बर पांच व बेड नम्बर एक सौ अट्ठारह पर पड़े हुए भीतर कविताएँ फूटतीं देखीं. रंगों का सुंदर मुजस्मा था. शब्द नहीं हैं जिसे कहने को, हीरों, मोतियों, माणिकों के अद्भुत सुंदर रंगीन नजारे, फूलों की नदियाँ, खिलते हुए सहस्रदल कमल और चमकता प्रकाश, तारे, सुंदर ध्वनियाँ, रुनझुन सी आवाजें..ऐसा अद्भुत फूलों का उपवन, खिलते हुए बैंगनी, गुलाबी, लाल, नारंगी, पीले रंगों वाले फूल, जाने कौन खिला रहा था. परमात्मा उनके भीतर है, वह इतना सुंदर है सुना था, पढ़ा था, संतों की वाणी सुनी थी, वह जैसे सच बन कर प्रकट हो रही थी. एक तरफ इतना अपार आत्मिक आनंद, दूसरी तरफ दैहिक कष्ट. इस जीवन का एक-एक पल रहस्यों से भरा हुआ है. चार दिन अस्पताल में रहने की बाद आज घर लौटी है. अभी तबियत पूरी तरह ठीक नहीं है. इतनी सारी दवाएं भीतर गयी हैं, देह को सामान्य होने में वक्त तो लगेगा. जब तक देह साथ दे तभी तक जीवन है. पिताजी की आवाज दूसरे कमरे से आ रही है, वह उठ गये हैं. जून दफ्तर गये हैं. उसके कारण सभी परेशान हैं. इन्सान की जीवन यात्रा सुख-दुःख के दो तटों के मध्य बहती है, द्वन्द्वों से युक्त है यह जीवन. जहाँ से सुख मिला है, दुःख मिलेगा ही. कई दिनों बाद लिख रही है, अपने ही हाथों को अजीब लग रहा है. पेन से लिखना वैसे भी कम हो गया है. टाइप ही करती है. शाम तक या कल तक वह भी शुरू कर देगी.

कल रात एक अद्भुत स्वप्न देखा. वह कहीं जा रही है, लेकिन चलना उसका नहीं हो रहा. मार्ग स्वयं ही चल रहा है, एक व्यक्ति उसे परेशान करना चाहता है तो एक नजर से ही वह दूर चला जाता है. सामने विशाल आकाश पर सुंदर बेल-बूटे बने हैं, बचपन में एक स्वप्न में आकाश में बड़े राजमहल व हाथी देखे थे, वैसा ही स्वप्न था लगभग. आगे जाते ही एक वाहन में सवार चार व्यक्ति उसे सुनसान सड़क पर अकेले देखकर चिढ़ाने के मूड में आ जाते हैं, वह उन पर चिल्लाती है फिर गर्दन हिलाती है, एक लड़की वैसा ही करने लगती है तो वे सभी वैसा ही करते हैं और सम्मोहित होकर वहीं गिर जाते हैं. आगे जाती है तो दूर से कोई पुकार लगाता हुआ आता है. उसके हाथ जुड़े हैं, मानो वह उसका इंतजार ही कर रहा था. देखती है वह एक चिड़िया थी, नन्ही सी, जिसके तन पर घाव थे, वह एक हाथ में लेकर उस पर दूसरा हाथ फेरती है और कहती है वह ठीक हो जाएगी, चिड़िया मानवी भाषा में उससे बात करती है. यह स्वप्न बताता है अहंकार पहला व्यक्ति था, चार विकार चारों व्यक्ति थे और घायल चिड़िया उसका मन, जिसे उसे स्वस्थ करना था. लगता है अब उसके जीवन में बड़ा परिवर्तन होने वाला है. कुछ बदलाव पहले ही शुरू हो गये हैं. जून उसका बहुत ध्यान रख रहे हैं, शारीरिक दुर्बलता का अहसास कभी-कभी होता है पर मानसिक शक्ति अनंत गुणा बढ़ गयी है. परमात्मा उसके पोर-पोर में समा गया है, वही तो है, उसके सिवा कुछ है भी कहाँ ? वह परमात्मा ही ‘वह’ बनकर बैठा है, अब जब वही है तो वही रहे..अब उसके सिवा यहाँ कोई नहीं है. जो उससे मिलने आएगा वह खाली ही जायेगा, क्योंकि यहाँ ‘अहम्’ नहीं है अब ‘त्वम्’ ही है.  



Monday, April 3, 2017

विश्वकर्मा पूजा


दोपहर के तीन बजे हैं, कितना सन्नाटा है चारों ओर. सुबह तेज वर्षा होती रही घंटों तक पर अब मौसम खुल गया है. नैनी शायद कहीं गयी है, घर पर ताला लगा है, वरना बर्तनों की आवाजें या उसके बच्चों की आवाजें गूंज रही होतीं. जून को कल रात राग-द्वेष के बारे में बताया, पता नहीं कितना समझ में आया. जब तक कोई बात अपने ही भीतर से न उपजे समझ में नहीं आती, उसके साथ तो ऐसा ही होता है, शास्त्रों में लिखी बातें कितने दिनों बाद जब वैसी की वैसी भीतर से आती हैं तो लगता है, अच्छा ! तो यह अर्थ था. बहुत दिनों से कोई कविता नहीं लिखी है. मन होता है कुछ लिखे दिल की गहराई से ..कल पिताजी व छोटे भाई से बात हुई, उसका ब्लॉग पढ़ा उन्होंने. तीन सखियों से भी फोन पर हाल-चाल लिया. एक का जन्मदिन आने वाला है, जिसकी माँ आजकल यहाँ आयी हुई हैं. उसके साथ हुए वार्तालाप के आधार पर कुछ लिखेगी.

आज जून के दफ्तर जाना है, विश्वकर्मा पूजा के उपलक्ष में वहीं दोपहर को भोज भी है. यहीं आकर उन्हें इस पूजा के बार में संज्ञान हुआ. परसों गणेश पूजा है, दो तीन जगह पंडाल लगेंगे, वे लोग बीहू ताली में अवश्य पूजा देखने जाते हैं, जो दक्षिण भारतीय आयोजित करते हैं. उसकी उड़िया सखी के यहाँ भी बड़ा आयोजन होता है. जून के दफ्तर में कुछ समस्याएं चल रही हैं. एक तो ड्राइवर की समस्या है, जो अब तक आया ही नहीं, वैसे आज के दिन यहाँ ड्राइवरों को पीने का एक बहाना भी मिल जाता है. पूजा का अर्थ यहाँ मस्तीभरा आलम और प्रीतिभोज है. आज भी पानी बरस रहा है.

 कुछ देर पूर्व एक कविता पोस्ट की. जून ने अपनी डायरी का एक पन्ना दिखाया जिसमें नूना का जिक्र  था. उसकी डायरी में जून का जिक्र कितना हुआ था उन वर्षों में शायद इसी कारण...या वैसे ही..अच्छा लगा. अगले हफ्ते उन्हें गोवा जाना है. उसने भारत के इस छोटे से प्रदेश के बारे में कितना सुना और पढ़ा है. वर्षों पहले एक बार वे इस राज्य की यात्रा कर भी चुके हैं.

आज हफ्तों बाद डायरी लिख रही है. यात्रा अच्छी रही, ब्लॉग पर लिखने के लिए यात्रा विवरण भी वह प्रतिदिन डायरी में नोट करती रही. वापस आकर कुछ दिन घर को व्यवस्थित करने में लग गये. कुछ दिन यूँ ही निकल गये, अब जब भीतर कोई है नहीं तो कोरे कागज ही रहेंगे न आज की गाथा कहने के लिए..जब कोई सचमुच खो जाता है तो ‘वह’ सचमुच आ जाता है. यहाँ शायद की कोई गुंजाईश नहीं..जब वह एक बार आ जाता है तो बस आ ही जाता है...

कई दिनों के बाद वह आज झूले पर बैठी है. हवा मंद है पर शीतल है. एक झींगुर मधुर गा रहा है. गुड़हल, गुलाब और मुसंडा खिले हैं. जून दिल्ली में हैं, कल लौटेंगे. आज दीदी-जीजाजी की शादी की वर्षगांठ है, वे पिताजी व भाई-भाभी से मिलने घर आये हैं, रात भी रुकेंगे. उसने सोचा एक न एक दिन वे यहाँ भी आयेंगे उनके अगले बड़े घर में. आज स्टोर की सफाई की, दीवाली का समय आने वाला है, सफाई का समय. घर से पुराना सामान निकलने का समय जो वे इस्तेमाल नहीं करते. आज सुबह अच्छा अनुभव हुआ, अब शब्दों में नहीं समाता, अब कविता में भी नहीं आता..अब तो जैसे वह रग-रग में समा गया है, उसे अलग से देखे ऐसा सम्भव नहीं है. गोवा का लेख पिछले दो दिन नहीं लिख पाई, आज लिखेगी.