आज सुबह एक स्वप्न देखा, पिछले दिनों भी कई अद्भुत स्वप्न
देखे पर सुबह उठकर याद नहीं रहे, लिखा नहीं कुछ. कल देखा, एक विशाल नदी है, सागर
जैसी. किनारे पर एक संकरी गली है, उसमें वह जाती है, एक गेंद जैसा हाथ में कुछ है,
जो गिरकर दूर तक निकल जाता है. एक बच्चा उसे वहाँ से फेंक देता है जो नदी के
किनारे के दलदल में गिर जाती है, वह उसे पकड़ने नदी में उतरती है गेंद को पकड़ते समय
लहरों में आगे खींच ली जाती है. किनारे के लोग कहते हैं, डूब रही है, पर वह बड़े
आराम से लहरों को पार करते-करते दूसरे किनारे पर पहुंच जाती है. आज पिताजी को
डिब्रूगढ़ जाना था, वह लम्बी यात्रा से थक जाते हैं. आज दो सदस्याओं के लिए लिखी विदाई कविताएँ टाइप कर लीं थीं. जून
ने उनके लिए बहुत सुंदर कार्ड बनाये हैं.
पिछले दो दिन नहीं
खोली डायरी. परसों से पिताजी का स्वास्थ्य ठीक नहीं है. दो दिन देशव्यापी बंद भी
रहा. जून घर पर ही थे. सुबह वे टहलने नहीं गये, शाम को जाना है. फूलों का दर्शन भी
करना है. गेस्ट हॉउस व क्लब में फूलों का मेला लगा है. सुबह उठे तो पिताजी बिस्तर
पर नहीं थे, वे दोनों पानी पी रहे थे कि जोर की आवाज आई. जून दौडकर गए, बाथरूम का
दरवाजा बंद था अंदर से उनकी आवाज आयी, गिर गये हैं, पर ठीक हैं, अभी दरवाजा खोलते
हैं, पर दो-तीन मिनट बीत गये, फिर दुबारा पूछा तो बोले, खोलते हैं, रुको. दो-तीन मिनट
और बीते तब दरवाजा खोला. उनके सिर पर बाएं ओर चोट लगी थी, हल्का गुलाबी रंग हो गया
था, पर खून नहीं निकला था. उन्हें बिस्तर पर लिटाया. वे सो गये. कुछ देर बाद
उन्हें उठने के लिए कहा तो मना करने लगे. फिर दर्द के कारण जब सिर को दबाया तो खून
निकल आया. उन्हें अस्पताल ले गये, पट्टी बांध दी है और दवा भी दी है. अब नाश्ता
करके बाहर बैठे हैं, धूप उन्हें अच्छी लग रही है. आजकल वह अपने को बहुत दुर्बल
मानने लगे हैं, बात-बात पर उनकी आँखें नम हो जाती हैं. वृद्धावस्था व्यक्ति को
विवश कर देती है. अभी फरवरी चल रहा है पर धूप में तेजी आ गयी है.
फिर तीन दिनों का
अन्तराल. आज पिताजी का सी टी स्कैन हुआ. सोमवार को रिपोर्ट मिलेगी. जून कल दिल्ली
जा रहे हैं, बुध को डाक्टर को मिलते हुए लौटेंगे. उनकी किडनी में शायद कुछ समस्या
हुई है. उम्र ज्यादा होने पर शरीर के अंग अपनी कार्य क्षमता खो बैठते हैं. कल शाम
बंगाली सखी की दीदी आयी थीं, उनके लिए एक कविता लिख भेजी है, उन्हें अच्छी लगी. जून
सुबह से पिताजी के साथ ही थे अस्पताल में, अब दफ्तर गये हैं. बड़ी ननद की बड़ी बेटी ने
पुत्र को जन्म दिया है. दुनिया इसी तरह चलती जा रही है. उसका अंतर परमात्मा के
प्रेम से लबालब भरा हुआ है ! उसका साथ कितना मधुर है. जगत भी सुंदर है तो उसी के
कारण, क्योंकि जो चेतना उसमें है वही सबमें है, सब उसी के कारण जीवंत हैं.
शाम के पौने पांच
बजे हैं, अभी आकाश में सूरज का उजाला है, विदा लेते हुए सूरज का अंतिम उजाला.
पिताजी अब पहले से ठीक हैं, उन्हें मूड़ी व चीजलिंग गर्म करके दिए उसमें काला नमक व
काली मिर्च डालकर, पसंद आये, पिछले दो दिनों से ब्लॉग पर कुछ भी पोस्ट नहीं किया.
लिखने की कोई वजह नजर नहीं आती, मन ध्यान में डूबा रहना चाहता है.