Thursday, April 6, 2017

नवम्बर की धूप


पिछली तीन रात्रियों को ठीक एक बजकर सैंतालीस मिनट पर कोई उसे उठा देता है. उसके बाद भीतर से कोई कहता है जीवन अब बदल जायेगा. पूर्ववत् नहीं रहेगा. एक ख़ुशबू की परत, चारों ओर लिपटी रहती है. उनके भीतर कितने खजाने हैं, रंगों, खुशबुओं और संगीत के खज़ाने ! उसका मन एक अनोखी शांति से भर गया है, मन उसका नहीं रहा इसलिए कोई अदृश्य सत्ता ही अब सूत्रधार है. परसों लेडीज क्लब की मीटिंग है, वह मृणाल ज्योति की डोनेशन बुक लेकर जाएगी.

कल रात एक स्वप्न देखा, एक कार में वह बैठी है और उसे कुछ ही दूर जाना है पर उस कार में न स्टीरियंग है न ब्रेक. वह निर्धारित स्थान से आगे चली जाती है, सड़क आ गयी है जिस पर सामने से तेज गति से आते वाहन हैं. उसे डर लगता है पर गाड़ी बिना टकराए मुड़ कर किनारे से निकल जाती है.

कल रात कोई स्वप्न नहीं देखा, देखा भी हो तो स्मरण नहीं है. सुबह ठीक चार बजे किसी ने उठा दिया. वह कोई जो उसके भीतर रहता है, वह उसे एक पल को भी नहीं भूलता, वही वह है अब, तो स्वयं को कोई कैसे भूल सकता है. हरसिंगार के वृक्ष के नीचे की छाया में उसकी ही अनुभूति है, उसकी ही ख़ुशबू है जो चारों ओर से घेरे हुए है. सूखे पत्तों की आवाज में भी वही है, हवा की सरसराहट में भी वही, सामने हरी घास पर बिखरी धूप में उसकी ही चमक है, फूलों के रंगों में, शीतल हवा के स्पर्श में वही तो है, अब शरद काल आ गया है, आकाश नीला है और वृक्ष कितने हरे, एक सन्नाटा बिखरा है चारों ओर जो उसकी ही खबर दे रहा है. आज स्वास्थ्य पहले से बेहतर है. वह आने वाला है इसलिए ही देह को तपाकर स्वच्छ किया प्रकृति ने, फिर भीतर के सारे विकारों को निकाल बाहर किया. तन व मन दोनों हल्के हो गये हैं. अब कुछ करना शेष नहीं है, घर का मालिक आ गया है, अब जो भी वह कराएगा, वही होगा !

हरसिंगार के पत्तों से छनकर धूप के नन्हे-नन्हे गोले उसकी डायरी पर बन रहे हैं. यानि परमात्मा के हाथों से बनी कला ! उसके फूल अभी तक गिर रहे हैं, जो एकाध डाली पर अटके रह गये थे. हवा आज भी शीतल है और सड़क पर स्थित खम्भे का बल्ब आज भी कर्मचारी लगा रहे हैं, एक बल्ब के लिए पूरी की पूरी टीम आई है. पिताजी का मनोरंजन हो रहा है. उसने बोगेनविलिया के गमले धूप में रखवा दिए हैं. इस वर्ष उनमें अवश्य अच्छे फूल आएंगे. कल सिर्फ एक टिकट शेष रही, वह भी बिक जायेगी. आज की दो पोस्ट उसने सुबह ही लिख दी हैं, जून ने कहा, नौ बजे से दो बजे तक बिजली नहीं रहेगी.


नवम्बर की गुनगुनी धूप तन को सहलाती है. बाल सूर्य की किरणों की आभा में जब तृण की नोकें चमचमाती हैं, वृक्षों की डालियाँ एक अनोखी आभा से भर जाती हैं. फूलों की सुगंध रह-रह कर नासापुटों में भर जाती है. बोगेनविलिया की डालों से टपकती टप-टप ओस की बूंदें अंतर भिगाती हैं, झरते हुए फूलों की कतार सी जमीन पर बिछ जाती हैं. जीवन को उसकी सुन्दरता का अहसास जो कराती है, अम्बर की वह नीलिमा स्वप्नलोक लिए जाती है. खगों की कूजन ज्यों लोरी सुनाती है ! पत्तों की सरसराहट.. ज्यों पवन पायल छनकाती है. गुलाबी रंगत कलिका की.. भीतर मिलन का अहसास जगाती है. हर शै कुदरत की उसकी याद दिलाती है. इतनी सुंदर थी यह दुनिया क्या पहले भी..उससे इश्क के बाद नजर जो आती है. दूब घास की हरी नोक भी यहाँ सुख सरिता बहाती है, सड़क पर जाते हुए हरकारे की आवाज भी भीतर कैसी हूक जगाती है. बगीचे में करते माली की खुरपी की ध्वनि जैसे सृष्टि का संदेश सुनाती है. रचा जा रहा है हर पल इस जहाँ में चुपचाप ओ मालिक, यह बात आज समझ में आती है. 

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