सुबह सवा छह बजे वे स्टेशन पहुंच गये, मुगलसराय स्टेशन. रात्रि को ट्रेन
में नींद आती-जाती रही, एक कोई जन तेज ध्वनि में खर्राटे ले रहे थे, दिन भर की
बातें भी मन में आ रही थीं, पर भीतर कोई जाग रहा था जो सचेत कर रहा था. कल एक नई
पुस्तक भी पढ़नी शुरू की ट्रेन में, “The Einstein Factor” अच्छी किताब है, इसके
अनुसार कल्पना में जो चित्र भीतर दीखते हैं उन पर ध्यान देने से कितने नये आयाम
खुल सकते हैं जीवन में. जीवन को वे जैसा चाहे मोड़ सकते हैं, स्वयं के मालिक बनना
ही धार्मिक होना है. कल दोपहर पूर्व ग्यारह बजे ही वे कोलकाता तक की हवाई यात्रा
के लिए निकले थे, जहाँ पहुँचकर सीधा रेलवे स्टेशन, रस्ते में पुराना कोलकाता दिखा,
पच्चीस वर्ष पूर्व जैसा देखा था लगभग वैसा ही. मुगलसराय से बनारस तक की यात्रा में
सड़कों में कुछ सुधार अवश्य दिखा पर झुग्गी-झोंपड़ी में रहने वाले गरीब वैसे ही थे,
विकास का का फल उन्हें नहीं मिल रहा है. यहाँ घर पर पूर्व से ज्यादा स्वच्छता व
सम्पन्नता दिख रही है, मौसम में हल्की ठंडक है.
आज नवरात्रि का तीसरा दिन है. कल वे जून के एक बचपन के
मित्र के यहाँ गये. वाराणसी की रौनक देखी, भीड़ भरा बाजार, जगह-जगह सजे हुए मन्दिर,
सडक पर कीर्तन करती महिलाओं का जुलूस, देवी के भजन जो गूँज रहे थे. उनके घर में प्रेम
भरा स्वागत हुआ. लौट कर उसने विवरण लिखा.
बनारसी दावत
एक स्कूटर, एक बाइक, एक किया आटोरिक्शा
चले सभी मिल एक साथ, लक्ष्य था घर उनका !
भीड़ भरा हर चौराहा था, चौकाघाट से चली सवारी
लहुराबीर से सिगरा होके, औरंगाबाद की आयी बारी !
नीचे था पान गोदाम, पान सहेजे गिने जा रहे
घर के लोग भी सँग औरों के, हरे पान को छांट रहे
अम्मा की तस्वीर पुरानी, याद दिलाती दिवस पुराने
झुक-झुक बच्चे पैर छू रहे, ऊपर मिले सभी सयाने !
घर में इक मंदिर सजा था, देवी पूजा का आयोजन
एक दीप अखंड जल रहा, सुबह-शाम जहाँ होता वन्दन !
सभी बैठ मिल बातें करते, तभी नाश्ते सम्मुख आये
बर्फी, लड्डू, और समोसे, काजू और मखाने लाए !
गाजर का हलवा स्वादिष्ट, आलू के कटलेट भी आये
खट्टी, मीठी चटनी के सँग, एक-एक को थे सब भाए !
साबूदाने की फिर खिचड़ी, मठरी, भुजिया कुरमुरी थी
अंत में मिली चाय बनारसी, ऐसी अद्भुत आवभगत की !
तीसी, खसखस के लड्डू थे, शुद्ध घी में डूबे पूरे
इससे भी बढ़कर थे दिल वे, बच्चों, बड़ों सभी के प्यारे !