Monday, February 6, 2017

आकाश में हाथी


आज करवाचौथ है, बड़ी भाभी का फोन आया था, उनका जन्मदिन भी आ रहा है, उन्हें एक कविता लिख भेजनी है, तथा दीवाली कार्ड व भाईदूज का टीका भी. ‘दादीजी’ पर उसने एक स्मृति लेख लिखा है, जून ने उनका फोटो भी स्कैन कर के डाल दिया है. दोपहर को एक पंजाबी सखी के यहाँ जाएगी, नहीं भी जा सकती, मन में एक संदेह ने जन्म लिया है, तो मन अभी तक बचा है, चलो मन तो बचा पर उसमें संदेह भी बचा है, कैसा आश्चर्य है ! सुबह से मन उच्चावस्था में था, संसार की आंच लगते ही निम्न केन्द्रों में चला गया. मन की यही तो विशेषता है, उसे जैसा रंग लगाओ वह उसी में रंग जाता है. परमात्मा की आंच में वह परमात्मा ही हो जाता है. आज सुबह से कितने दोहों का अर्थ स्पष्ट हो रहा है भीतर..लाली मेरे लाल की जित देखूं तित लाल..परमात्मा हर कहीं है जैसे सागर में लहर उठती है वैसे ही प्राणी इस परमात्मा के सागर में उठने वाली लहरे हैं..सभी कोई..इसमें कोई छोटा-बड़ा नहीं है. परमात्मा की नजर में सभी समान हैं एक कीट से ब्रह्मा पर्यन्त ! अब कौन इस परम को अपने भीतर प्रकटने का अवसर देता है इस बात पर उसकी प्रसन्नता टिकी है. कोई जग जाये तो परम उसमें प्रविष्ट हो सकता है. सद्गुरू ऐसे ही होते हैं..वे स्वयं हट जाते हैं और परमात्मा उनमें प्रवेश कर लेता है. भीतर अमृत बह ही रहा है, उसके प्रति सजग भर होना है. जो स्वयं ही भीतर समाया है फिर वहाँ परमात्मा को स्थान कहाँ मिलेगा. यही अज्ञान है, यही मोह है. वे जो स्वयं है वहाँ सिवाय दुःख के कुछ नहीं लाता और जो वह है सिवाय सुख के कुछ नहीं देता..अब उनके हाथ में है कि वे चाहते क्या हैं ?

आज माली ने पौधों के बीज डाल दिए. फूलों के बीज, धनिया, पालक, लाही साग व मूली के बीज भी. कल वह नर्सरी से पिटुनिया, टमाटर, गोभी आदि की पौध लाएगी. और परसों वह भी लगा दी जाएगी. दस बजने को हैं माँ रोज की तरह पिताजी को ढूँढ़ रही हैं. उनकी बातें सुनकर कभी तो वे हँस देते हैं, कभी क्रोध करते हैं जैसा मन हो, मन बदलता रहता है कभी इधर तो कभी उधर..मृणाल ज्योति ने दीवाली के लिए सुंदर दीपक रंगे हैं, परसों शाम कोओपरेटिव में बिक्री करने के लिये आएँगे वे लोग.

कल रात एक अनोखा स्वप्न देखा. नीला आकाश अपनी विशालता व भव्यता के साथ मजूद है और रह रह कर उसका रंग गाढ़ा नीला हो जाता है. चमत्कार जैसा ही लग रहा था. पिताजी भी थे और भी कई लोग थे. स्वप्न में इतने शोख रंग पहले देखे हों याद नहीं आते. बचपन का एक स्वप्न आज तक याद है जिसमें आकाश में चारों दिशाओं में बड़े-बड़े हाथी अपनी सूंड से जल वर्षा कर रहे थे और सारा आकाश फूलों से सजा था..स्वप्न में उनकी चेतना ही कितने रूप धर लेती है. ऐसे ही यह जगत उस परमात्मा का स्वप्न है..कितना अनोखा है यह सब कुछ ...   
  
 ‘गॉड लव्स फन’ ! कल रात को एक अनोखा स्वप्न देखा. बाबा रामदेवजी का फोन आया है उसके लिए. उसने कहा, विश्वास ही नहीं हो रहा कि उनसे बात कह रही है. तब बाबा ने कुछ कहा ..कि ऐसी क्या बात है और हर्षातिरेक में स्वप्न टूट गया. फिर आज सुबह क्रिया के बाद यह अनुभव हुआ की वह ही आत्मा है, अनोखा अनुभव है यह जानना कि वह ही इन्द्रियों के माध्यम से देख, सुन, बोल रही है. बचपन में वे कितने विश्वास से कहते थे कि उनके भीतर जो बोल रहा है वह परमात्मा है, तब ये सामान्य बातें हुआ करती थीं, हर कोई इन्हें जानता था, पर आज के युग में कोई परमात्मा को अपना अनुभव बनाना नहीं चाहता, माया प्रबल है.    

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