Thursday, December 28, 2017

पृथ्वी की गंध


रात्रि के सवा आठ बजे हैं. अभी-अभी वे बाहर से टहल कर आये हैं, रात की रानी की ख़ुशबू से बगीचा महक रहा है, सड़क पर आने-जाने वाले भी पल भर के लिए थम जाते होंगे, एक छोटी सी टहनी कमरे में लाकर रख दी है. पता नहीं धरती के गर्भ में कितनी गंध छुपी है, अनगिनत प्रकार की गंध लिए है पृथ्वी, जिन्हें युगों से वह लुटा रही है. शाम को मूसलाधार पानी बरसा, उन्होंने बरामदे में कुछ देर चहलकदमी की, टहलते हुए वह जून से दिनभर का हाल-चाल ले लेती है, कमरे में आकर बैठकर बातें करने में एक औपचारिकता सी लगती है. अकबर की मृत्यु हो गयी आज के अंक में. उसका पुत्र सलीम ही जहांगीर के नाम से मशहूर हुआ. कल दोपहर को नींद खोलने के लिए अस्तित्त्व ने कितना अच्छा उपाय किया, सचमुच ‘गॉड लव्स फन’ वह एक कार में है, दो सखियाँ भी हैं, ड्राइवर उतर गया है पर कार अपने आप ही चलती जा रही है. आगे जाकर टकराती नहीं है, पीछे लौटती है और तभी नींद खुल जाती है. ईश्वर हर क्षण उसके साथ है, उसका साथ इतना हसीन होगा, कभी नहीं सोचा था. आज से दो हफ्तों के बाद उन्हें लेह जाना है, कल से उसके बारे में कुछ पढ़ेगी. मंझला भाई अस्वस्थ है, अभी देहली में है, उनके जाने तक वह अवश्य ठीक हो जायेगा. बड़े भाई अपनी बिटिया के साथ छोटी बहन के पास विदेश गये हैं.

दोपहर को संडे क्लास में जाने के लिए जैसे ही तैयार होकर बाहर निकली, अचानक तेज वर्षा आरम्भ हो गयी, पूरे चालीस मिनट होती रही, रुकने पर वहाँ पहुँची तो कोई बच्चा नहीं था, या तो वे आकर चले गये अथवा आये ही नहीं. नन्हे से बात की, उसका एक मित्र मोटरसाईकिल से ‘भारत यात्रा’ पर निकला है, शायद उन्हें भी लेह में मिले, वह उन्हीं तिथियों में वहाँ जाने वाला है. कल उसके सहकर्मियों ने उस घर में एक भोज समारोह किया जहाँ से छह वर्ष पूर्व कम्पनी की शुरुआत हुई थी. सुबह अजीब सा स्वप्न देखा, उसका अर्थ था, साधना करके यदि कुछ पाने की, कुछ बनने की चाह है तो साधना व्यर्थ है. परमात्मा को पाकर यदि अपना कद ही ऊंचा करना है तो उससे कभी मिलन होगा ही नहीं. स्वयं को पवित्र करना ही साधना का उद्देश्य है. भीतर यदि कोई भी चाह शेष है तो चित्त शुद्ध हुआ ही नहीं. परमात्मा कितनी अच्छी तरह से उसे पढ़ा रहा है. वह कभी स्वप्नों के माध्यम से, कभी सीधे शब्दों के माध्यम से उसे मार्ग पर ले जा रहा है. वह कितना कृपालु है. उसकी महिमा को कौन जान सकता है. आज से औरंगजेब की कहानी शुरू हुई है. देश में मोदी जी नये-नये कदम उठा रहे हैं ताकि भारत की समृद्धि बढ़े, विश्व में उसका नाम हो !  


आज वर्षा रुकी हुई थी सो स्कूल में बच्चों को बाहर मैदान में योग कराया. उन्हें योग दिवस के बार में भी बताया. दोपहर को लद्दाख की तस्वीरें देखीं, जानकारी हासिल की जो वहाँ जाने वाले यात्रियों के लिए आवश्यक है. वहाँ ठंड भी होगी और वर्षा भी. जलरोधी वस्त्र और जूते ले जाने होंगे. आज पुनः मन में एक खालीपन है, आश्चर्य भी होता है ऐसी अनुभूति पर, लेकिन ईश्वर के मार्ग पर तृप्ति का अर्थ है पूर्ण विश्राम. यानि रुक जाना, पर यहाँ तो चलते ही जाना है, इसका कोई अंत नहीं ! कल जून को गोहाटी जाना है दो दिनों के लिए. उसे अधिक समय मिलेगा साधना के लिए, पर साधना का लक्ष्य तो सभी के साथ एक्य की भावना का अनुभव करना ही है, जो वे इसी क्षण कर सकते हैं. वे विशिष्ट हैं, यही भाव तो उन्हें अलग करता है. इस सृष्टि में सभी एक-दूसरे से जुड़े हैं, सभी की अपनी-अपनी भूमिका है, सभी महत्वपूर्ण हैं समान रूप से. यही भावना तो उन्हें परमात्मा के साथ भी जोड़ती है. परमात्मा साक्षी है, सभी पर समान कृपा करता है पर जो उससे प्रेम करता है अर्थात स्वयं को विशिष्ट नहीं मानता, उससे वह प्रेम से मिलता है. अस्तित्त्व उसका हो जाता है उतना ही, जितना वह अस्तित्त्व का !

Wednesday, December 27, 2017

अकबर महान


सुबह अलार्म सुना फिर बंद कर दिया. सवा चार बजे नींद खुली. कोई भीतर से कह रहा था, आलसी, प्रमादी..पर बहुत प्रेम था उसकी वाणी में. शीघ्रता से उठ गयी. वर्षा हो रही थी सो बरामदे में ही प्रातः भ्रमण हुआ. आज दोपहर के भोजन में घर की सब्जी बाड़ी में उगा कुम्हड़ा बनाया, कोमल और स्वादिष्ट था. सुबह एक परिचिता से बात हुई, उसे कटहल पसंद है. माली से तोड़ने के लिए कहा, उसने कई सारे तोड़ दिए हैं. प्रकृति कितनी उदार है, वह भरपूर देती है. वह भी कटहल के कटलेट बना रही है आज शाम. नन्हे से पूछा, अगले महीने उसके जन्मदिन पर क्या वे उसके लिए लड्डू बनाकर भेजें, पर उसने मना कर दिया, वह आजकल हल्का भोजन कर रहा है, ज्यादातर सूप और सलाद.

सुबह बहुत जल्दी नींद खुल गयी. मन में कोई स्वप्न  चल रहा था पर देखने वाला भी जागृत था. वर्षा लगातार हो रही है. लॉन में पानी भर गया है. आज नये कम्प्यूटर पर लिखा, लेखन का काम ज्यादा आनंददायक हो गया है. यह भी तो परमात्मा की कृपा है, बस एक ही शै है जो उसकी मर्जी से नहीं होती, उसके मन की अनवरत यात्रा..शायद वह भी उसकी ही मर्जी से होती है, क्योंकि होता है तो सब कुछ उसकी मर्जी से ही होता है. यहाँ कोई दूसरा है ही नहीं, एक ही तो सत्ता है ! जड़ के पीछे भी वही है. कल से अमेरिका यात्रा का वर्णन लिखना है. ह्यूस्टन की वह यात्रा जो बारह वर्ष पहले की थी उन्होंने.
साढ़े तीन बजे हैं दोपहर के, इस समय थमी है वर्षा. आकाश पर बादल अब भी बने हैं. आज सम्भवतः वे सांध्य भ्रमण के लिए जा पाएंगे. सुबह-सुबह परमात्मा के स्वरूप के बारे में चर्चा सुनी. मन में कुछ और उजाला हुआ, दिन दिन बढ़त आनंद..कितना सही कहा है भक्ति के बारे में. परमात्मा को कितना भी जान लो, कुछ न कुछ जानने को शेष रहता है, हरि अनंत हरि कथा अनंता..आज एक छोटी सी कविता लिखी..रात्रि को हुए अनुभव के आधार पर. छोटी बहन ने बताया वे लोग अगस्त में यहाँ आयेंगे उसके पूर्व बैंगलोर आश्रम में एडवांस कोर्स करेंगे और मैसूर में भी एक स्वास्थ्य शिविर में भाग लेंगे. बड़ी भांजी को एक संस्था ‘द यूनिवर्स’ से ईमेल आते हैं, अध्यात्म के अनुभव के लिए प्रेरित करने हेतु. उसने एक मेल का अर्थ पूछा है, बताते समय उसे लगा, भगवद गीता के किसी श्लोक का भावार्थ बता रही है. सत्य एक ही है, किसी भी कोण से उसकी व्याख्या करें एक तक ही पहुँचाती है. आज नन्हे की गोवा यात्रा के कुछ पुराने चित्र फेसबुक पर प्रकाशित किये, जब वह अपने कालेज से वहाँ गया था. जून ने बताया, लेह में इस वक्त काफी ठंड है, उन्हें ऊनी अंतर्वस्त्र खरीदने होंगे.

रात्रि के पौने आठ बजने को हैं. टीवी पर समाचार आ रहे हैं, यानि जून देख रहे हैं, अंततः वे दोनों धारावाहिक के चंगुल से बाहर निकल ही आये हैं. आज दिन भर मौसम सूखा रहा, बहुत दिनों बाद धूप निकली. अभी कुछ देर पूर्व बाहर टहल कर आये, रात की रानी की गमक से सारा बगीचा सुवासित हो रहा था. हरी घास पर नंगे पैरों चलने से ठंडक भर गयी भीतर तक. ‘भारत एक खोज’ में अकबर पर आधारित अंक देखा. अकबर महान के पुत्र सलीम, मुराद और दान्याल उसकी उम्मीदों पर खरे नहीं उतरते. युग-युग में यही कहानी दोहराई जाती है. चार दिन पहले ही नैनी कुछ एडवांस ले गयी थी, आज फिर आई, पर उसने मना कर दिया. बाद में सोचा, शायद उसके पति को काम नहीं मिला होगा, वर्षा जो हो रही थी. वे भी परमात्मा से मांगते हैं और वह किसी न किसी को निमित्त बनाकर उनकी इच्छा पूर्ण करता है. 

Thursday, December 21, 2017

नया कम्प्यूटर


आज भी मौसम भीगा-भीगा है. लगातार फुहार पड़ रही है. फेसबुक पर आज पिताजी के साथ अंतिम पिकनिक की तस्वीरें पोस्ट कीं, दो वर्ष पहले जनवरी माह की होंगी शायद. शाम को एक पुराने मित्र भोजन के लिए आ रहे हैं. उसके पहले बाजार जाना है, जून उसके लिए साड़ी लाये हैं, उसे पीको आदि के लिए देने. एक नई कविता लिखी, आज वह अनाम बहुत करीब लग रहा है, नयन बंद करते ही अंतर प्रकाशित हो उठता है ! अगले महीने जीजाजी का जन्मदिन है, उनके लिए भी कुछ पंक्तियाँ लिखीं. कम्पनी की तरफ से नया कम्प्यूटर इंस्टाल हुआ है आज. अभी मकैनिक स्कैनर व प्रिंटर को इंस्टाल कर रहे हैं. अब वह कार्ड्स आदि घर पर ही प्रिंट कर सकती है. इसी माह एक सखी का जन्मदिन है पर उससे बहुत दिनों से कोई बात नहीं हुई है. अगले महीने नन्हे का भी जन्मदिन है, उसके अगले जून का और बड़े भांजे का भी. सभी के लिए कुछ न कुछ लिखेगी. दीदी का जवाब भी आया है, उन्हें कविता अच्छी  लगी !

लंच तैयार है, समय हो चुका है, पर जून अभी तक आये नहीं हैं. आज ‘विश्व पर्यावरण दिवस’ है. उनके दफ्तर में पौधे लगाने का कार्यक्रम है. कल शाम भी एक मीटिंग के कारण सात बजे घर लौटे. थोड़ी देर में ही मेहमान भी आ गये. ढेर सारी बातें कहीं, अपनी पत्नी और बिटिया से नोक-झोंक की बातें. उनकी पत्नी को एक स्वास्थ्य समस्या भी हो गयी है. उसे हाथों व पैरों में कॉर्न हो जाते हैं, जो पेनफुल हैं. उससे बात की तो पता चला शरीर में प्रोटीन की प्रतिक्रिया से ऐसा हो रहा है. नूना के भी बाएं हाथ के दो नाखूनों में सफेदी आ गयी है, शायद किसी तत्व की कमी है. पौने दस बजे वे गये. रात को सोने में देर हो गयी तो जून को देर तक नींद नहीं आई. सुबह उन्होंने जब यह बात कही तो उसके भीतर से किसी ने जवाब देना आरम्भ कर दिया. पता नहीं कहाँ से इतने शब्द निकलते हैं.  


आज असमिया सखी के पुत्र का जन्मदिन है, उससे बात करनी चाही, पर शायद उसका नम्बर बदल गया है, किसी और ने उठाया. आज सुबह उठी तो एक विचित्र अनुभव हुआ, भीतर शब्द लिखे हुए दिखाई दिए, यानि पश्यन्ति वाणी का एक रूप. फिर एक स्वप्न आया, जिसमें छोटी ननद भी थी. जून भी थे. तब जून और उसका संबंध अलग था. कितने सवालों का जवाब मिल जाता है जब पिछले जन्मों की स्मृति आती है. कल सुबह भी एक अनोखा स्वप्न देखा. सद्गुरू को देखा, वह जो उनके सद्वचन सुनती है, शायद उसी का परिणाम था यह स्वप्न. अंततः श्रवण एक मानसिक प्रसन्नता ही तो है यानि सुख की तलाश. ज्ञान सुनने से जो सुख पाना चाहती है उससे और इन्द्रियों से मिलने वाले सुख में क्या अंतर है ? अभी बहुत कुछ है जो ध्यान की गहराई में जाकर मिल सकता है और एक वह है कि संतोष कर बैठी है, शायद यह स्वप्न यही जताने आया था. दोपहर को बहुत गहरी नींद आयी, जैसे बहुत वर्षों पहले आया करती थी. इस समय शाम के सात बजे हैं, जून नये कम्प्यूटर पर काम कर रहे हैं, एक कनिष्ठ अधिकारी उनकी सहायता कर रहे हैं. शाम को उन्होंने स्वयं पेड़ से कटहल तोडा, जिसकी सब्जी उसने आज बनाई है. अब वह ‘भारत एक खोज’ का तीसवां अंक देख रही है. विजयनगर के पतन की कहानी है उसमें. नन्हे को सर्दी लग गयी थी. दोपहर को उससे बात हुई. अब पहले से बेहतर है. दफ्तर आया था, अपना ख्याल रखना जानता है. हरेक को स्वालम्बी होना ही है.      

Wednesday, December 20, 2017

मन के बादल


सुबह के नौ बजे हैं, वह स्कूल जाने के लिए गाड़ी का इंतजार कर रही है. वर्षा का मौसम आज भी बना हुआ है. पूरे देश में गर्मी बढ़ती जा रही है. क्लब की सेक्रेटरी यहाँ से जा रही हैं, एक दिन माली को भेजने को कहा था. सुबह-सुबह माली चला गया तो उन्होंने कहा, नाश्ता कर रहे हैं, बाद में आना. सही है कोई सुबह बिना बताये माली को भेज दे तो यही जवाब मिलेगा. उसने सोचा वह स्वयं जाकर मिलेगी. जून का फोन भी सुबह आया.

आज का दिन भी बीतने को है. सुबह दस बजे के बाद ही स्कूल में कार्यक्रम आरम्भ हुआ, जो वक्तृता तैयार करके ले गयी थी उसमें से कुछ ही बोला. शेष योग के महत्व के बारे में उस क्षण स्वतः स्फूर्त ही कहा गया. कुल मिलाकर कार्यक्रम अच्छा रहा. एक बजे घर लौटी.  जून आज दोपहर बाद आ गये हैं, इस समय एक उच्च अधिकारी के विदाई समारोह में शामिल होने क्लब गये हैं. उनकी पत्नी के लिए उसने भी एक कविता लिखी है, जो लेडीज क्लब के कार्यक्रम में सुनाएगी. आज उसका जन्मदिन है, शाम को छोटी सी पार्टी की. उसके पहले बच्चों को बुलाकर जलपान कराया. बच्चों ने कुछ गाकर, कुछ अभिनय करके भी दिखाया. परिवार के लगभग सभी सदस्यों से फोन पर बात हुई. छोटी बहन ने कहा, वे लोग अगस्त में असम आयेंगे. दो दिन बाद दीदी का जन्मदिन है, उनके लिए कुछ लिखेगी.

आज भी दिन भर बादलों वाला मौसम बना रहा. ऐसे ही विचारों के बादलों में आत्मा का सूर्य छिपा रहता है. आत्मा को पाए बिना कहाँ मुक्ति है, विचारों का अँधेरा जो भीतर है, उसमें आत्मा ही नहीं छिपती, अज्ञान भी छिपा रहता है. उस अंधकार को मिटाए बिना स्वयं को जाना नहीं जा सकता. भीतर गये बिना करुणा और प्रेम का जन्म नहीं होता, मोह के झूठे सिक्के को ही वे प्रेम के नाम पर चलाये जाते हैं.


साल का पाँचवा महीना शुरू हो गया. नया माह और नया सप्ताह एक साथ ही आरम्भ हुए हैं. एक जंगली मुर्गी का बच्चा शोर मचाता हुआ लॉन में घूम रहा है, शायद अपनी माँ को खोज रहा है. कितनी आतुरता है उसकी ध्वनि में. दोपहर के साढ़े तीन बजे हैं. वर्षा थमी है. झूले पर बैठे हुए ठंडी हवा के झोंके सहला रहे हैं. जून को आज फिर से कंधे से नीचे तक दर्द हुआ, प्रारब्ध का खेल ही कहा जायेगा. बहुत सी बातें उनके वश में नहीं होतीं, लेकिन स्वयं को देह और मन से अलिप्त रखने का प्रयास तो वे कर ही सकते हैं. प्रसन्न रहने के लिए यही जरूरी है. आज दोपहर महीनों बाद असमिया सखी का फोन आया, उसकी बेटी को दसवीं में पचानवे प्रतिशत अंक मिले हैं. आज पूर्णिमा है, लेकिन बादलों के कारण चंद्रमा के दर्शन शायद ही हों, फिर भी वे मून लाइट मेडिटेशन तो करेंगे ही. कल की मीटिंग अच्छी रही, उच्च अधिकारी की पत्नी बहुत भावुक हो उठी थीं. उसने कविता पढ़ी. प्रेम का बंधन बहुत रुलाता है !    

Tuesday, December 19, 2017

भात करेले की बेल


रात्रि के सवा आठ बजे हैं. जून आईपीएल मैच का फाइनल देख रहे हैं जो चेन्नई और मुम्बई के मध्य खेला जा रहा है. इसके पूर्व ‘पृथ्वीराज चौहान’ पर एक एपिसोड देखा. उसने दिन भर में हुई विशेष बातों को स्मरण किया. आज दोपहर की कक्षा में एक नया बच्चा आया, जिसके पिता उसे खुद छोड़ने आये थे और विशेष ध्यान देने को कह गये हैं. बच्चों ने बहुत सुंदर कला कृतियाँ बनायीं. दोपहर को भात करेला की सूखी सब्जी बनाई थी, जो जरा भी कड़वा नहीं होता. बगीचे में उसकी बेल अपने आप ही हर वर्ष निकल जाती है और सब तरफ फ़ैल जाती है. आज मंझले भाई का फोन आया, वह तबादले पर लेह जा रहा है. जून में वे भी वहाँ जायेंगे.

चार बजने को हैं शाम के. सुबह बिस्तर त्यागने से पूर्व संध्याकाल का अनुभव किया. बाहर वर्षा हो रही थी, बरामदे में ही टहलते रहे कुछ देर. अब जाकर थमी है. आज मंगलवार है, साप्ताहिक भजन का दिन, समूह में सत्संग किये सालों हो गये हैं. जून को पसंद नहीं है पर घर पर करना उन्हें अच्छा लगता है. संस्कार पड़ रहे हैं, एक दिन तो पनपेंगे. आज सुबह मृणाल ज्योति गयी, बच्चों को व्यायाम कराया, उन्हें अच्छा लगा. आज तीनों ब्लॉगस पर पोस्ट प्रकाशित कीं. जीवन में क्या महत्वपूर्ण है, यह समझने में व्यक्ति कितना समय लगा देता है. कल शाम को जून के एक सहकर्मी अपने परिवार के साथ आये थे, उनके साथ फिल्मों की बातें कीं, और पौधों की भी. वे मैकरोनी लाये थे. सालों बाद खायी.

एक दिन का अन्तराल, आज का दिन कुछ अलग सा बीता, जून को चेन्नई जाना था सो भोजन दस बजे ही कर लिया. उसे भी स्कूल से एक शिक्षिका के साथ अन्य स्कूलों में जाना था, लौटी तो एक बजने को था. वे किशोरियों के एक कार्यक्रम के लिए आमन्त्रण देने कई स्कूलों में गयीं. हिंदी हाई स्कूल, नहोलिया, गोपीनाथ बरदलै हाई स्कूल, लखिमी बरुआ हाई स्कूल, दुलियाजान गर्ल्स कालेज, राष्ट्रभाषा हाई स्कूल और दुलियाजान उच्च विद्यालय. कल एक और स्कूल आशादीप में जाना है. वापस आकर कुछ देर सोने की कोशिश की पर नींद नहीं आई. माली की बेटी कुछ मांगने आयी थी, होते हुए भी उसे नहीं दी, शाम को दी. गधा अपनी मर्जी से ही चलता है. परमात्मा उन्हें बेशर्त हर पल ही दे रहा है पर वे कितने सुविधा लोभी हैं. कुछ देर नेट पर किशोरावस्था के बारे में पढ़ा. वह छात्राओं को कुछ व्यायाम सिखाएगी और प्राणायाम भी. शाम को टहलते हुए उन वृद्ध सज्जन से मिलने गयी. बहुत जिंदादिल हैं, उन्होंने अपना जीवन बहुत सलीके से जीया है. अभी भी सामाजिक कार्यों में व्यस्त रहते हैं. सुबह उठकर योगासन करते हैं. आंटी ने दोनों हाथ फैलाकर घूमकर दिखाया जो वे सुबह इक्कीस बार करती हैं. ज्ञान जीवन को पुष्पित करता है और गुरू का होना कितना अंतर ला देता है किसी के जीवन में. गुह्यतम ज्ञान का खजाना मिल जाता है, भीतर का प्रकाश मिल जाता है. उस प्रकाश के बिना ज्ञान टिकता नहीं. अंकल ने कहा, वह उस प्रकाश को पा चुके हैं इसके बारे में कुछ नहीं कहेंगे. वाकई उसके बारे में क्या कहे कोई. उनसे मिलकर बहुत अच्छा लगा है. नन्हे को भी बताया उनके बारे में. उसने बताया वह एक अच्छे से नये घर में रहने लगा है, पौष्टिक आहार भी लेने लगा है. तैराकी भी शुरू की है. उन्हें वहाँ आने के लिए निमन्त्रण दिया. अगस्त में वे उसके पास जा सकते हैं. जून अभी तक चेन्नई नहीं पहुंचे होंगे, फोन अभी आया नहीं है.

Monday, December 18, 2017

पीकू और वृद्धावस्था


आज गर्मी ज्यादा है. सुबह धूप निकल आयी थी जब वे प्रातः भ्रमण से लौटे. सुबह नेट पर लिखा, दोपहर को भी. जून को दो कविताएँ भेजी हैं प्रिंट करके लाने के लिए. व्हाट्सएप पर सबसे बात हुई, नन्हे से फोन पर बात हुई वह किसी कांफ्रेंस में जा रहा था. कल की फिल्म अच्छी थी, ‘पीकू’, जिसमें वृद्धावस्था की समस्या को बड़े रोचक ढंग से दिखाया गया है. टिपिकल बंगाली संस्कृति को भी हल्के-फुल्के अंदाज में दर्शाया गया है. जून आजकल बहुत व्यस्त हैं. प्लास्टिक से ईंधन बनाने का एक प्रोजेक्ट है, उस पर काम शुरू किया है. कल टेंगाघाट में एक पाइप लाइन को साफ करते समय हाइड्रोजन सल्फाइड गैस बन गयी थी जिससे आठ लोग बेहोश हो गये. अब सभी ठीक हैं. उसी की जाँच कमेटी का हेड उन्हें बनाया गया है. उनकी क्षमता है काम करने की, तभी आजकल वे समय पूर्व ही दफ्तर के लिए निकल जाते हैं, और दोपहर को वह अक्सर उनके जाने के बाद ही उठती है. अभी-अभी पुनः अहसास हुआ कि व्यर्थ ही ऊपर के दातों पर दबाव पड़ रहा था, वे बेहोशी में ही कितने काम करते रहते हैं. जीवन एक फिल्म की तरह आँखों के सामने से गुजरता जाता है, वे उसे साक्षी होकर देखते रहें तो सब कुछ कितना सुंदर है. परमात्मा तभी इतना आनन्दमय है क्योंकि वह कभी किसी के काम में दखल नहीं देता !

आज सुबह चार बजे से पहले उठी, सुबह रोज की तरह सुहावनी थी. ‘फिटबिट’ शायद कल कहीं गिर गया, मन थोड़ा सा परेशान हुआ पर बुद्धि ने समझा लिया, एक दिन तो देह भी छूट जाएगी, फिर किसी वस्तु के खोने का क्या दुःख करें ? अपने भीतर हजारों खजाने भरे हैं जो अभी तक खोजे भी नहीं गये हैं ! उसने शोकग्रस्त महिला के पिता के लिए एक कविता लिखी.

इक्यानवे वर्ष की उम्र में समोए हैं
बच्चों का सा जोश
युवाओं सी लचक भी तन में
और साधकों का सा होश !

शिवानंद को गुरू माना था
नेहरु से प्रेरित हो किये योगासन
शरीर विज्ञान के ज्ञाता अनोखे
कुंडलिनी शक्ति का किया जागरण !

अष्टांग योग से परिचय पुराना
सुषुम्ना का राज भी गुरू से जाना
खा सकता अधिक कम खाकर ही कोई
कहते, इस सूत्र को सदा अपनाना !

लचीली है बैकबोन
उनकी भी अब तक
सहधर्मिणी को भी योग सिखाया
मुँह की लार भी कीमती शै है
जीने की कला से परिचित कराया !

थोड़ी सी खुराक लेते
सदा गर्म पानी पीते
चमकती त्वचा का यही है राज
पाया है भीतर ज्ञान का प्रकाश
बरसती है बाहर तभी हर पल उजास !

जून अभी तक आये नहीं हैं, वैसे भी आज शनिवार है जब लंच के बाद उन्हें अवकाश होता है. भूख लग रही थी सो उसने सलाद तो खा लिया है, शेष भोजन उनके आने के बाद ही होगा. सुबह से लगातार वर्षा हो रही थी, अभी कुछ थमी है. साप्ताहिक सफाई के बाद घर अच्छा लग रहा है. मृणाल ज्योति के नये हॉस्टल के लिए वे कुछ सामान लाये हैं, अगले हफ्ते जाकर देगी.  नैनी का सातवाँ महीना चल रहा है पर वह आराम से काम कर रही है. कल सुबह बड़ी बुआजी से बात की, वह भाभी के अल्प जीवन के लिए दुखी हो रही थीं. इन्सान किस तरह अपने भयों को छिपाना चाहता है. बात करते-करते अंत में वह प्रसन्न हो गयी थीं. आज सुबह से मन अनंत ऊचाईयों में  दौड़ा जा रहा है, कैसी मस्ती छाई है. एक तितली को मस्त उड़ते देखा, काफी देर तक वह कलाबाजियां दिखाती रही. चेतना तितली के रूप में कितना अनोखा अनुभव करती होगी. परमात्मा अनेक रूपों में प्रकट हुए जा रहा है....

Friday, December 15, 2017

अतीत का गौरव


दोपहर के तीन बजने को हैं. आज सुबह उठी थी पौने चार बजे, पर जून कल शाम थके थे, सोचा उन्हें थोड़ी देर सोने दे, पाँच मिनट में उठती है, पर नींद खुली पूरे एक घंटे बाद. दो स्वप्न देखे, एक में तो घर में चोर आ जाते हैं. ड्रेसिंग टेबल का शीशा तथा दो चादरें गायब हैं, फिर कुछ लोग भी दीखते हैं, एक चोर भी है उनमें. खुद का ही सपना है सो चोर के मुँह से ऐसे वाक्य निकलते हैं कि उनके द्वारा उसकी चोरी पकड़ ली जाये. एक स्वप्न में गुरू माँ के आश्रम में गयी है. वहाँ कुछ महिलायें हैं, फिर एक दुर्घटना देखी. एक कार उलट जाती है साईकिल से टकरा कर. अपना ही सपना था सो किसी को चोट नहीं आती. जब सपना खुद ही बनाया है तो सकारात्मक ही होना चाहिए. इसी बात से सिद्ध होता है कि God loves fun. उनकी आत्मा, जहाँ से ये स्वप्न आते हैं, कितनी हास्य पसंद है. वह उन्हें जगाना भी चाहती है, झकझोर भी देती है पर डराती भी नहीं. वे कितनी गहरी नींद में हैं कि उस वक्त जान नहीं पाते, यह तो स्वप्न ही है. अभी दोपहर को भी एक स्वप्न देखा. यह भी उठाने के लिए ही था. ओशो कहते हैं योगी स्वप्न नहीं देखता, वह विचारों से भी मुक्त है. व्यर्थ का चिन्तन न हो तो न ही व्यर्थ के स्वप्न आएंगे, न ही व्यर्थ की ऊर्जा समाप्त होगी. रात्रि सोने तक छह घंटे उसके पास हैं, इस समय का सदुपयोग हो सके ऐसा प्रयत्न करना होगा. दो घंटे पढ़ने-लिखने में, एक भोजन बनाने-ग्रहण करने में, एक व्यायाम-टहलने में तथा एक टीवी व ‘भारत एक खोज’ देखने में. सभी कुछ करते हुए मन सदा ही उस ‘एक’ से जुड़ा रहे, इसका भी ध्यान रखना है.

शाम के छह बजे हैं, लग रहा है भीतर से कोई देख रहा है प्रतिपल. कितनी शांति है उसके पास और कितना विश्वास.. एक आश्रय स्थल सा अथवा माँ की गोद सा, लगता है मन घर आ गया है. मन पाए विश्राम जहाँ, वही तो है वह स्थल, उसे अस्तित्त्व कहें या परमात्मा, वह दोनों ही है, वह सभी कुछ है. सभी कुछ उसी से जो प्रकट है. आज सुबह समय से उठे वे, टहलने गये, वर्षा रात भर होकर थम चुकी थी, फिर स्नान आदि करके नाश्ता. जून ने दोपहर को विशेष व्यंजन बनाया. बड़े भाई से बात हुई, वह काफी खुश हैं, छोटा उनके साथ रह रहा है. उनके जीवन में एक परिवर्तन आया है. मंझले भाई-भाभी दुबई गये हैं. पिताजी व दोनों ननदों से भी बात हुई. दोपहर को बच्चों की संडे कक्षा, अभी सांध्य भ्रमण करके वे लौटे हैं.

आज शाम को क्लब में ‘पीकू’ है, वे जायेंगे देखने. सुबह की साधना में एक अद्भुत अनुभव हुआ. वह ‘एक’ उससे मिलने आया था. कल सुबह स्कूल गयी, गर्मी थी पर बच्चों ने ख़ुशी-ख़ुशी योगासन किये. उसके बाद उन्हीं शोकग्रस्त परिचिता के यहाँ गयी, उसके भाई से भी मिली और जेठानी से भी. उसका पुत्र भी था और बाद में उसने कहा, आते रहिये. उसके वृद्ध पिता से बात हुई. वह तीस साल पहले रिटायर हुए थे. जीवन के प्रति कितना उत्साह है उनमें अब भी. अटल जी को जानते थे, असम के पहले गवर्नर को भी. आजादी से पहले की बातें कर रहे थे. सुचेता कृपलानी और अरुणा आसफ अली की बातें. आर एस एस को मानते हैं. चेहरे पर एक चमक है और अतीत का बखान बहुत चाव से करते हैं. शिलांग में काम किया फिर वहीं बस गये. शिलांग के सिन्धी जनों से भी परिचय है और पार्टीशन की बातें भी करते हैं. अपने दामाद को याद करते समय सामान्य रहे, स्वीकार कर लिया है उसकी मृत्यु को जैसे सहजता से. एक दिन फिर जाएगी वहाँ. कल चोल वंश के राजा राज राजेश्वर की कहानी देखी ‘भारत एक खोज’ में. कैसा विचित्र युग रहा होगा तब, जब मन्दिरों का निर्माण राजाओं का एक महत्वपूर्ण कार्य था.


Thursday, November 16, 2017

कटहल का पेड़



ओशो ने कहा है, जीवन की तरह मृत्यु भी सीखने की बात है. मृत्यु जीवन के साथ जुड़ी है. उसका आगमन कभी भी हो सकता है. उसके लिए स्वयं को तैयार रखना होगा. शाम को वह पुनः गयी, लोगों की भीड़ लगी थी. महिला के माता-पिता व पुत्र सभी आ गये थे. सात बजे के लगभग मृतक की देह भी आ गयी, फिर कुछ कर्मकांड के बाद उन्हें ले गये. अगले दिन सुबह जब वहाँ गयी. दो-एक लोग ही थे, उसे नाश्ता खिलाया थोड़ा सा. उसका दुःख देखा नहीं जाता. उसने जिस बात की कल्पना भी नहीं की थी वैसा उसके साथ घट गया है. जून आज नुमालीगढ़ गये हैं, कल शाम तक लौटेंगे. कल सम्भवतः ‘असम बंद’ है. फ्रिज ने फिर काम करना बंद कर दिया है.

व्यर्थ हैं ये अश्रु जो गम में बहते हैं
बेबस है आदमी ये इतना ही कहते हैं
रुदन यह तुम्हारा किसी काम का नहीं
लौट के न आये जो परलोक में रहते हैं

क्या मौत नहीं होती रिश्ते का खात्मा
दो दिन का ही संग साथ था यही मानना
जो उड़ गया वह पंछी परदेसी ही तो था
संयोग से मिला था, बिछड़ना था मानना

आज सुबह से वर्षा हो रही है. जून आठ बजे तक आने वाले हैं. शाम को लॉन में सूखे पत्तों और फूलों को हटाया. बच्चों को खेलते देखा. बच्चे कितने खुश रहते हैं, मानो कोई खजाना हाथ लग गया हो, जैसे उसे मिल गया है भीतर एक खजाना ! शाम को टहलते समय छोटी बहन की भेजी तस्वीरें मिलीं, जो उसने उसी क्षण अपने बगीचे से भेजीं थीं, जवाब में उसने भी कटहल के वृक्ष की तस्वीर भेजी, कटहल अब बड़े हो गये हैं, उनमें से एक, एक दिन तोड़ेगी, कल ही वह दिन हो सकता है. फ्रिज तो ठीक नहीं हुआ है, सो सब्जी तो अभी लानी नहीं है. दोपहर को भोजन के बाद कुछ देर के विश्राम के लिए लेटी तो उसे जगाने के लिए एक स्वप्न आया, जिसमें वह मीठा आम खा रही है, नन्हा आम काट रहा  है, वह हँस भी रहा है. उसकी ख़ुशी से कैसे उनकी ख़ुशी जुड़ी है, शायद इसी तथ्य की ओर इशारा कर रहा था यह स्वप्न. मोह और ममता को स्पष्ट रूप से देखने की ताकीद भी कर रहा था. आनंददायक स्वप्न था पर सिखा रहा था कि जहाँ से ख़ुशी मिलती है, वहाँ से उतना ही दुःख मिल सकता है. उस महिला को इतना दुःख इसलिए ही तो हो रहा है कि उसने उतना ही आनन्द पाया था. हर सुख की कीमत चुकानी पड़ती है.


Tuesday, November 14, 2017

नया सवेरा


मृत्यु और जीवन – ६     


रहती है एक अव्यक्त देह..इस देह के भीतर
वह सूक्ष्म देह ही धारण करती है नई देह
इच्छाओं, कामनाओं और अभीप्साओं से बनी है सूक्ष्म देह
जो धारण किये है पिछले जन्मों की स्मृतियाँ
जो जान लेता है यह सत्य  
धारण करता है अपार वैराग्य
और मुक्त हो जाता है वासनाओं और कामनाओं से
क्या अर्थ है बार-बार उसे दोहराने का
जो मिटता रहा है हर बार देह के साथ ही
फिर शुरू हो जाती रही है नई दौड़
हो जाता है जारी एक बार फिर अपने को भुलाने का प्रयास भी
अंतहीन है यह प्रक्रिया
कभी तो जागना होगा
मौत का सच जानना होगा
चक्रव्यूह से निकलना होगा बाहर
अन्यथा बार-बार सहना होगा दर्द
बार-बार बहाने होंगे आँसू
न जाने कितनी बार देखी जा चुकी है यह जीवन की फिल्म
फिर भी नहीं चुकती वासना
फिर-फिर दोहराया जाता है वही खेल 
और खोया रहता है एक भ्रम में जीवन
फिसलता जाता है हाथों से
वह जीवन जो वास्तव में मृत्यु है
मात्र आवरण है जीवन का  !

मृत्यु और जीवन – ७     

मृत्यु से घिरे हुए भला
कोई जी कैसे सकता है
जिसे भय है मरने का वह जी कहाँ पाता है
यात्रा करनी होगी हर चेतना को
अपने आप को जानने के लिए
जगानी होगी प्यास भीतर उस अनाम की
मौत असत्य कर देती है जीवन के अनुभवों को
लेकिन एक ऐसा जीवन भी है जो सत्य है
 परम मुक्ति को प्राप्त आत्मा नहीं धरती देह कोई
क्योंकि नहीं शेष है कोई कामना अब उसकी
मृत्यु एक छाया है जीवन की
उससे कोई भागेगा कैसे
भला लड़ेगा कैसे...
उसका सामना नहीं करता कोई
ड़ाल कर आँखों में आँखें
मुक्त हुआ जा सकता है जानकर ही उसको
ज्ञान से जगाना होगा एक नया सवेरा

जिसमें मृत्यु का कोई नहीं है डेरा !

Monday, November 13, 2017

जीवन की यात्रा


मृत्यु और जीवन – ४  

जीवन को जानते
ही खो जाती है मौत
मौत को जानते ही मिल जाता है जीवन !
जीने की कला के साथ सीखनी होगी मरने की कला भी
तभी मुक्त होगा मन मृत्यु के भय से
संकल्प भीतर जगाना होगा
स्वयं को जीते जी एक बार तो मारना होगा
देह से अलग होकर स्वयं को देखना होगा
जीवन ज्योति को जगाना होगा
जीना होगा उस ज्योति के रूप में
देह को जानना होगा मात्र आवरण के रूप में
अनुभव ही हल करेगा मौत का रहस्य
दूसरे घर में जाने का तथ्य
जब एक तन थक जाता है
नहीं रख पाता जीवन को सुव्यस्थित ढंग से
तब बदल लेता है अपना घर जीवन
देह एक अवसर है आत्मा के लिए
जब खो जाता है एक अवसर
बंद हो जाता है एक द्वार
तब मिल जाता है दूसरा
और जीवन की यात्रा पुनः शुरू हो जाती है !
मृत्यु और जीवन – ५    

हाँ, दर्द होता है जब बिछड़ता है कोई अपना
क्योंकि देह से ही होता है परिचय सबका
अन्तस् की खोज करने कोई नहीं उतरता
जाना ही होगा अपने भीतर
तभी मिलेंगे वे उत्तर
जो मौत उठाती है
तभी मुलाकात होगी वास्तविक जीवन से
जो कभी नहीं मरता
जब जानेगा वह पदार्थ ही नहीं है मानव
एक आत्मा है जो कभी नहीं मिटती...!

Friday, November 10, 2017

मृत्यु और जीवन

मृत्यु और जीवन - २ 

 जीवन का अनुभव ही क्या नहीं है मौत का अनुभव
चेतना सरक जाती है जब भीतर
देह को छोड़कर..
भीतर एक अंकुर है कोमल जीवन का..
जिस पर आवरण है देह का
देह मरेगी पर जीवन बचेगा
देह जिसका आवरण है
उससे मिलन करना होगा
जड़ें दिखाई नहीं पड़तीं
वृक्ष दिखाई पड़ता है
अंकुर दिखाई नहीं पड़ता
बीज दिखाई देता है
भीतर है जो अव्यक्त
वही अभिव्यक्त होता है बाहर
अभिव्यक्ति को ही जो समझते हैं जीवन
वे डरे हैं हर पल मौत से
कंपते हैं प्राण उनके
परिचित हैं जो भीतर उस अव्यक्त से
तैयार रहते हैं हर पल उस मौत के लिए
जो केवल देह को ही घटती है !

मृत्यु और जीवन – ३  

विलीन हो जाता है तब मृत्यु का भय
जब मिलता है भीतर अमृत का कोष
तब बाहर भी घटता है संतोष
देह जाएगी एक दिन तय है
तब उसे किस बात का भय है
वह जानता है मृत्यु का राज
जैसे कोई दिए की बाती उढ़का दे  
सिमट आये प्रकाश और फिर समाप्त हो जाये
उर्जा वापस लौट गयी जिस क्षण
देह से टूट जाता है नाता उसका
जो देख ले जीते जी सिमटने को ऊर्जा के
वह जानता है नहीं मरा हूँ मैं
तैयार हूँ एक नई यात्रा के लिए
जानते हुए भीतर जाना होगा
शांत होकर भीतर सिकुड़ना होगा
देह से अलग खुद को देखना होगा
जैसे प्रकाश है बल्ब में वैसे ही
जीवन है देह में
देह से अलग स्वयं को देखना ही
ध्यान है !