Wednesday, May 31, 2017

पिको आयर की किताब


इतवार की सुबह, जून नहा-धोकर नाश्ता कर पुनः विश्राम कर रहे हैं. अभी सवा दस ही बजे हैं. घर व बगीचे में सफाई का काम चल रहा है. उसने ब्लॉग खोला, कुछ पढ़ा. लग रहा है जैसे कोई काम ही नहीं है, समय ढेर सारा है हाथ में है. आज धूप भी निकली है. दोपहर को बच्चों से मिलना जाना है. उनकी ऊर्जा का, समय का सही उपयोग हो सके इसक लिए निरंतर सजग रहने की आवश्यकता है !

आज जून दिगबोई गये थे, दोपहर लंच पर नहीं आने वाले थे, सो सुबह का काम खत्म होने पर यानि सफाई कर्मचारी व नैनी के जाने के बाद वह भी घर से निकल पड़ी. अपनी लेन, सामने वाली लेन तथा बायीं तरफ वाली लेन में कुल सात घरों में गयी. चार महिलाएं मिलीं, तीन में कोई नहीं था. सभी को कल शाम के सत्संग के लिए निमन्त्रण दिया. एक के यहाँ उनकी माँ व मासी भी थीं, उन्हें भी आने के लिए कहा. तीन अन्य महिलाओं के नाम भी उसे याद आए जिन्हें फोन करना है. आज नन्हे की मित्र की माँ ने उन दोनों व नन्हे के लिए लिखीं कविताएँ भेजीं, सुंदर शब्दों व भावों का प्रयोग किया है. वह हिंदी में एमए हैं. उसे अपनी कविताओं की एक पाठिका मिल गयी हैं तथा एक सखी भी. उनसे बात हुई, वह बहुत आशाजनक दिखीं. वह भी लिख सकती हैं ऐसा विश्वास उनके भीतर जगा है. उसकी मित्र ने दो किताबें भेजी है, PICO IYER की लिखी किताबें, जापान की संस्कृति का चित्रण कराती हैं, वह काफी मुश्किल किताबें पढ़ती है. अच्छा है उसे पढने का इतना शौक है. दीदी से भी बात हुई, उन्होंने बताया, कल वह बेटे बहू व पोती को पिताजी से मिलाने ले जाने वाली हैं. वह उसके जीवन की कहानी पढ़ रही हैं और समझ भी रही हैं, कितना अंतर था तब के मन में और एक है आज का मन..अनंत के साथ एक होता हुआ..
जून आज कोलकाता गये हैं, चौथे दिन लौट आयेंगे. इस बड़े घर में वह पहली बार अकेले रहने वाली है. इस घर में सबसे अच्छी बात यही है कि घर के भीतर से ही पूरा बगीचा नजर आता है. सुबह वर्षा हो रही थी, सो वह भ्रमण के लिए नहीं जा सकी. नैनी की जिठानी सिलाई जानती है, वह खाली पड़े गेस्ट रूम में उसकी मशीन पर कुछ काम कर रही है. उसके जाने की बाद ही वह टहलने जाएगी.
कल रात देर से सोयी, पढ़ती रही, फिर स्वप्न देखे, सुबह उठकर ध्यान किया, आर्ट ऑफ़ लिविंग रेडियो सुना. एक अन्य सदस्या से मिली, उनके लिए कविता लिखी. दोपहर को हिंदी का नया पाठ पढ़ाया. जून का फोन आया दो बार. अखबार में बिहार के बाइस बच्चों के विषाक्त भोजन खाने से हुई मृत्यु के बारे में पढ़ा, कितने लापरवाह हैं लोग, तमिलनाडु में भी एक स्कूल में बच्चे बीमार हुए हैं. देश में मानव संख्या इतनी अधिक है कि जान की कीमत घट गयी है, गरीबों को जीने का अधिकार नहीं है.
परसों यानि शनि की दोपहर जून को आना था, वह इन्तजार करती रही, फिर अकेले ही भोजन किया, वह सवा दो बजे आये. शाम को वे ‘राँझना’ देखने गये, अच्छी फिल्म है. इतवार शाम को वे एक मित्र परिवार से मिलने गये, वे अगले वर्ष अगस्त में रिटायर हो रहे हैं, पर उनका मन अभी से यहाँ से उचट गया है, ऐसा उन्होंने कहा. इस दुनिया से भी तो एक दिन जाना है, लोगों का मन दुनिया से भी तो उचट जाना चाहिए फिर तो..

जून आज दोपहर घर नहीं आये, उसने लंच में दही के साथ दो आलू परांठे बनाये, सिर्फ अपने लिए पूरा भोजन बनाने का उसका कभी मन नहीं होता, अकेले होने पर ज्यादातर खिचड़ी बना लेती है. शाम को एक सखी के यहाँ सत्यनारायण की पूजा में जाना है, फिर बंगाली आंटी के यहाँ और फिर आर्ट ऑफ़ लिविंग सेंटर. आज गुरू पूर्णिमा जो है, शाम को वहाँ गुरू पूजा होगी. रात का भोजन भी बाहर ही है.  

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