Friday, May 12, 2017

बचपन की बेफिक्री


पिताजी की कमजोरी बढ़ती जा रही है, अब वे अपने आप उठने-बैठने में भी असमर्थता महसूस करने लगे हैं. स्नान के लिए भी उनके पास शक्ति नहीं थी आज, एक सहायक रख लिया है उनके लिए. उसी ने सहायता की. नाश्ता भी ठीक से नहीं खाया. इस जगत से प्रयाण कैसे धीरे-धीरे होता है. अचानक कोई नहीं जाता. जन्मते ही मृत्यु भी साथ हो लेती है. टीवी पर वर्षा के कारण कोई सिगनल नहीं आ रहा है. उसने एक सीडी लगाकर सुना, संत कह रहे थे, जिस कर्म और उसके फल में आसक्ति न हो तो वह कर्म भक्ति में बदल जाता है. कठिन काम करने से काम करने की योग्यता भी बढ़ती है. अभी-अभी नन्हे की एक मित्र व उसकी माँ से बात की. दो महीने बाद वे उन लोगों से मिलेंगे. जून अभी तक नहीं आये हैं, बादलों के कारण शाम जल्दी हो गयी है. छह बजे उसे क्लब जाना है, पत्रिका के लिए फोटोग्राफी होनी है. उसने सोचा अपना कैमरा भी ले जाएगी. बड़ी भांजी ने वसंत ऋत का सुंदर फोटो शूट किया है.

अज चैत्र नवरात्रि का पहला दिन है. चेट्टी चाँद भी आज है. रात कोई स्वप्न नहीं आया, आया भी हो याद नहीं है. दो दिन पूर्व का अजीब सा स्वप्न अब भी पहेली बनकर मन में बना हुआ है. माँ भी थीं उसमें, नन्हा छोटा था तब, उसके शरीर से अनवरत जलधार निकल रही है, जैसे शिव से गंगा की धारा, पर माँ कहती हैं, इसमें हवा भी है, जिसकी गंध अच्छी नहीं है, पर वह रुकता ही नहीं. वह समझदार है और कल तो उसने विवाह के लिए हाँ भी कह दिया, देखें अब लड़की के पिताजी कब तक नम्र पड़ते हैं. कल वे नये घर में नहीं जा सके, आज जून की मीटिंग है, वह अकेले ही जाएगी. वहाँ काम शुरू हो गया है. बड़ी भाभी का आपरेशन ठीक हो गया, अभी भी अस्पताल में हैं, समस्या पूरी तरह ठीक नहीं हुई ऐसा भाई ने कहा. उन्हें अपने भीतर की शक्ति जगानी होगी.

पिताजी को आज अस्पताल ले जाना ही पड़ा. कल रात को जून चौंक कर उठ गये. उन्हें लगा जैसे पिताजी ने आवाज दी है, पर वे उस वक्त सोये थे. उनकी कमजोरी बहुत बढ़ गयी है. भोजन भी बहुत कम खाते हैं, बैठे-बैठे सो जाते हैं, नहाना भी नहीं चाहते. दो कदम चलना भी मुश्किल हो गया है उनके लिए. अब तो इतनी भी शक्ति नहीं है भीतर कि अपनी समस्या कह सकें, या आँसू ही बहा सकें. उसी कमरा नम्बर चार में उन्हें जगह मिली है जहाँ एक वर्ष पूर्व माँ रही थीं. जून उन्हें भोजन खिला के आयेंगे. वह सुबह मिलकर आई. नैनी की बिटिया गाना गा रही है झूम-झूम कर, यह उम्र कितनी बेफिक्र होती है.
सुबह के साढ़े सात बजे हैं, उस समय वर्षा हो रही थी जब जून सुबह बहुत जल्दी ही अस्पताल चले गये, पिताजी की देखभाल के लिए जो सहायक रखा है, उसे सुबह रिलीज करना था. उसने बताया रात को उन्हें नींद नहीं आ रही थी, तीन बजे वे दोनों सोये. परमात्मा मानव को शोधित करने के लिए ही दुःख देता है, पिताजी का दुःख उन्हें भी तपाकर शुद्ध कर रहा है. आत्मा के निकट हो जाना जिसने जीते जी सीखा हो, वही तो मृत्यु को सामने देखकर भी प्रसन्न रहता है.  


कल भी भीतर क्रोध का धुआं उठा, एक क्षण को ही सही, अब याद भी नहीं क्यों ? बाहर कारण कुछ भी रहा हो, उसे केवल भीतर देखना है. आज शाम को फिर ऐसा हुआ, लगता है कोई कर्म जगा है. मन की न जाने कितनी परतें हैं, किस जगह से क्या उठेगा, पता नहीं चलता. ध्यान आजकल नहीं हो पा रह है. पिछले चार दिनों से पिताजी अस्पताल में हैं, घर से अस्पताल जाते-जाते जून भी परेशान हैं. उन्हें कष्ट में देखकर मन भी द्रवित होता होगा. ऊपर से कितना भी कहें कि एक न एक दिन सबके साथ ऐसा होता है, पर अपने सामने किसी को धीरे-धीरे जाते देखना बहुत कष्टदायी है. उसका अंतर भी इस समय दुःख से भरा है, खुद भी आश्चर्य हो रहा है, सदा आनन्द से ओत-प्रोत रहने वाला मन क्यों ऐसा अनुभव कर रहा है, पर उसे तो इस दुःख को भी साक्षी होकर देखना है. जीवन रहस्यमय है. वे मन को कितना भी जानने का दावा करें, वह अथाह है. आत्मा द्रष्टा है, वे उससे जरा नीचे उतरे तो दुःख के शिकार होने ही वाले हैं. इसलिए तो कृष्ण को अच्युत कहते हैं. वह कभी अपने दृष्टाभाव से च्युत नहीं होते, जब वे स्वयं को मन, बुद्धि या अहंकार मानते हैं या कोई धारणा मानते हैं तो नीचे ही उतर आते हैं. आत्मा सदा सर्वदा एकरस है. व्यवहार करते समय उन्हें नीचे उतरना पड़ता है पर तब भी स्वयं को द्रष्टा मानना है. एक अभिनय ही तो करना है, अभिनय को सच्चा मानने से ही पीड़ा होती है. कल रात भी स्वप्न में दो हाथी देखे, एक बड़ा एक छोटा, नन्हे को भी देखा, पता नहीं काले मोटे जानवर और उसे एक साथ क्यों देखती है. कुछ भी तो पता नहीं है उसे..सिवाय उस एक के जो सदा हजार आँखों से उस पर नजर रखे है. परमात्मा और सद्गुरू का साथ न हो तो संवेदनशील व्यक्ति का इस जगत में रहना कितना कठिन है .  

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