आज पिताजी उठकर बैठे व व्हीलचेयर पर बैठकर बाहर घूमने गये, वह
घर आने को भी कह रहे हैं. जब जून ने उनसे यात्रा पर जाने के बारे में पूछा तो कहने
लगे, जायेंगे. उनके मन में आशा जगी है, ठीक होकर पुनः जीवन को गले लगाने की. मानव
में जिजीविषा कितनी प्रबल होती है, यही भावना मृत्यु को सामने देखकर भी उससे पार
जाने की चाह जगाती है. प्रकृति द्वारा प्रदत्त है यह जीने की आकांक्षा ! हृदय
जोड़ने वाला तत्व है भावना, मानव भावना से ही जीता है लेकिन उसकी भावना एक सीमित
दायरे में ही घूमती है.
आज भी मेघ महाराज
पूरे ताम-झाम के साथ आये हैं. सद्गुरू स्वप्नों के बारे में बता रहे हैं. कल रात
स्वप्न में बहुत सुंदर पीले व लाल रंग के फूल देखे, इतने चमकदार रंग थे उन फूलों
के ! गुरूजी कह रहे हैं साधक को जब यह आभास हो जाये, उसे कुछ भी ज्ञान नहीं है, तब
जानना चाहिए कि कुछ ज्ञान है. ज्ञान का अभिमान बताता है कि ज्ञान हुआ ही नहीं.
मानव जीवन की सबसे बड़ी भूल यह है कि वह अपने अनुभव से कुछ सीखता नहीं, एक ही भूल
को बार-बार दोहराए चला जाता है. अभी कुछ देर में महादेव आने वाले हैं, शिव पार्वती
को अष्टांग योग सिखा रहे हैं. जागरण, स्वप्न व सुषुप्ति के अतिरिक्त एक चौथी
अवस्था भी है. जो स्वयं को उस अवस्था में रखना जान लेता है, वह ऊर्जा से भर जाता
है. आभा युक्त, प्रकाश युक्त, दिव्य ऊर्जा से जो भर जाता है उसे कैसा अहंकार. स्वयं
को तुच्छ के साथ जोड़कर देखे कोई तो तुच्छ ही रहेगा, स्वयं को नीचे गिराना क्या ठीक
है ? आज अस्पताल में पिताजी थोड़ी देर चले, उन्हें घर जाने के लिए ठीक होना है. वह एक
बार उनसे मिलने सुबह गयी थी फिर शाम को वे दोनों गये.
आज रामनवमी है. सुबह
वर्षा हो रही थी. आज नैनी ने अपने पति से झगड़ा कर लिया अभी तक काम पर नहीं आई है. यह
उसे जिव्हा से सताती है तो वह इसे शारीरिक कष्ट देता है. दोनों एक से बढ़कर एक हैं.
पिताजी अब पहले से ठीक हैं, इसी हफ्ते वे घर आ जायेंगे. आज सुबह अकर्ता भाव का
कितना अनूठा अनुभव हुआ, सब कुछ अपने आप हो रहा है, ‘वे’ कुछ भी नहीं करते, ‘वे’ जो
वास्तव में हैं. सुबह चार बजे नींद खुली, उससे पूर्व एक स्वप्न देख रही थी. एक
अंग्रेज परिवार है. उसकी किशोरी कन्या चुप रहती है, पिता को इस बात का दुःख है,
फिर अचानक एक दिन वह बात करती है तो प्रेरणादायक विचार उसके मुख से निकलते हैं !
पिताजी आज घर लौट
आये हैं, नहा-धोकर अपने कमरे में लेटे हैं, बारह दिन वे अस्पताल में रहे, ईश्वर उन्हें
स्वास्थ्य प्रदान करे ! आज सुबह ‘महादेव’ में महर्षि दधीचि की कथा देखी, बचपन में ‘हमारे
पूर्वज’ में उनके बारे में पढ़ा था. आजकल बच्चों को वे कथाएं नहीं पढ़ाई जातीं. कितने
युगों के साक्षी थे वह महर्षि. वे भी न जाने कितनी बार आये हैं इस दुनिया में. कल
रात स्वप्न में फिर गुरूमाँ को देखा, कई बार पहले भी देख चुकी है. वे तीन नन्हे
बच्चों की देखभाल कर रही थीं, बच्चे उनके नहीं थे. छोटी ननद का फोन आया, छोटा
भतीजा गिरकर अपन घुटनों पर चोट लगा बैठा है.
परमात्मा अभी है,
यहीं है, कितनी बार संतों के मुख से यह बात सुनी है. आज इसका अनुभव हुआ, होता ही आ
रहा है कई बार, अब पक्का होता जा रहा है, जीवन एक खेल ही तो लगता है, इस अनुभव के
बाद. अभी न जाने इस खेल में कितने मोड़ आने शेष हैं. कल जून ने कन्या के पिता को
अपने आने की सूचना दी. जीवन की यात्रा में कोई साथ हो तो यात्रा कितनी सुखद हो
जाती है, दो होकर भी एक और एक होकर भी दो..अद्वैत का अनुभव पहले इसी तरह होता है,
फिर धीरे-धीरे वह प्रेम सारे अस्तित्त्व को घेर लेता है. पिताजी बाहर बैठे हैं. वह
चुप ही रहते हैं ज्यादातर, शायद बोलने में ऊर्जा को व्यर्थ करना नहीं चाहते. कल
स्टोर की सफाई की, गर्मियों के वस्त्र निकले, अब छह महीनों के बाद पुनः सर्दियों
के वस्त्र बाहर निकलेंगे, मौसम का यह चक्र इसी तरह चलता रहता है.
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