आज भी बादल बने हैं आकाश पर, ठंडी हवा बह रही है. पिताजी का
स्वास्थ्य ठीक नहीं है, उन्हें कुछ भी अच्छा नहीं लग रहा. बुढ़ापा एक रोग है, उस पर
कई रोग शरीर को लग जाते हैं. बुढ़ापा आने पर मृत्यु का भय भी सताता है और भी न जाने
क्या-क्या घटता है मानव के मन के भीतर, पर जो अपने आप को जान लेता है, वह बच जाता
है, जगत में कितने ही लोग ऐसे हुए हैं, जो जीवन और मृत्यु के रहस्य को समझ कर
मुक्त हो गये हैं.
पिछले तीन दिन
व्यस्तता के कारण कुछ नहीं लिखा. दो दिन क्लब की कुछ सदस्याओं से मिलने गयी, उनकी
विदाई के लिए कविता लिखने के लिए कुछ बातें जाननीं थीं. एक दिन होली थी, आज भी गगन
पर बदली है. पिताजी अपेक्षाकृत बेहतर हैं. वृद्धा आंटी अभी तक अस्पताल में हैं. कल
रात को एक अनोखा स्वप्न देखा. उसने एक छोटी कन्या का हाथ पकड़ा है, पर देखते-देखते
वह घुटनों के बल चलती हुई दूर निकल जाती है पर उसका हाथ, हाथ में ही रह जाता है,
घबरा कर उसे देखती है तो पता चलता है वह अधजला है, उसे छोड़ देती है और अगले ही पल
शरीर से बाहर होने का अनुभव घटता है, देह से कुछ शोर करता हुआ बाहर निकलता है,
घूमकर लौट आता है, पूरे वक्त होश बना हुआ था. कल की तरह पहले भी एक बार देह से
बाहर का स्वप्न देखा था. परसों एक सुंदर रंगीन तितली को देखा था जिसे वह पकड़ना
चाहती है. उसके रंग इतने चमकदार थे कि..कैसे अनोखे से स्वप्न..कुछ कहने कुछ बताने
आते हैं पर रहस्य ज्यों का त्यों बना ही रहता है. आज क्लब में मीटिंग है, तीन
महिलाओं के लिए तीन कविताएँ भी पढ़नी हैं. सभी तो यहाँ एक डोर से बंधे हैं..परमात्मा
की डोर से..
अप्रैल का प्रथम दिन
! पिछले दो दिन फिर व्यस्त रही. शनिवार को घर में सफाई में, कल रात की पार्टी की
तयारी में. अच्छा रहा कल रात्रि का आयोजन, सभी लोग आये थे, विवाहित और अविवाहित,
तीन नन्हे बच्चे भी थे. अभी कुछ देर पहले मृणाल ज्योति स्कूल से आयी, उन्हें होली
की मिठाई दी, रंग लगाया और योग-व्यायाम कराया. यकीनन उन्हें अच्छा लगा होगा, बगीचे
के चेरी टमाटर भी ले गयी थी और एक लौकी भी. जून बाजार होकर आने वाले हैं, नैनी के
बेटी के लिए एक स्कूल बैग, पानी की बोतल तथा एक कापी लेकर, आज ही उसका दाखिला थोड़ी
दूर स्थित एक घर में चलने वाले स्कूल में कराया है.
पिताजी बाहर कुर्सी
पर बैठे-बैठे सो रहे थे. उसने जब कहा, थोड़ी देर लेट जाएँ तो कहने लगे, हाँ, परेशान
हो रहे हैं वे. क्या कोई ऐसा भी समय आता है जब दुःख से बचने की भी जरूरत महसूस
नहीं होती. कोई अपने दुखों से बच सकता है फिर भी नहीं बचता, कैसे विडम्बना है यह.
मौसम आज भी बदली भरा है, ठंडा है, सुबह ढेर सा पानी पिया. होली के बाद से ही भोजन
गरिष्ठ हो रहा था, मिठाई भी जिसमें शामिल थी, पानी तन की एक औषधि है, जैसे वायु एक
औषधि है मन की, शायद अग्नि औषधि है आत्मा की ! इसी महीने एक सखी की बिटिया का
जन्मदिन है, उसके लिए कविता लिखनी है एक !
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