आज नन्हा आ रहा है, वर्षा सुबह से ही हो रही है. पौने दस बजने
को हैं. उसे अस्पताल जाना है. पिताजी की पीठ में दर्द बढ़ गया है. चार-पांच चम्मच
से ज्यादा दूध एक साथ नहीं पी पाते, बात करने में उन्हें दिक्कत हो रही है. आँखें
कुछ कहना चाहती हैं पर उनमें देर तक देखने से एक शून्यता ही नजर आती है. ज्यादा
देर आंख भी नहीं खोल पाते. दोनों बहनों को यहाँ आने के लिए जून ने कहा है, पता
नहीं भविष्य में क्या छिपा है. सुबह आँख खुली उसके पूर्व ही नींद खुल गयी थी. अपना
आप जिसे बड़े गर्व से पाला पोसा था था यानि अहंकार अपने त्याज्य रूप में सम्मुख आया,
उसे भीतर की अग्नि में भस्म कर दिया. अब भीतर जो भी बचा है वही रखने योग्य है, वही
पाने योग्य है, वही रखने योग्य है, वही है ही, उसके सिवा जो भी है वह अशोभनीय ही
है, वास्तव में वह है ही नहीं. अच्छा हो या बुरा उस एक की सत्ता के सिवा जो भी है
वह माया ही है. वह हर तरफ है, हरेक में है और स्वयं में भी है, उस एक की ही सत्ता
है. जीवन रहते जिसे इस राज का पता चल जाये वही प्रेम का रस अनुभव कर सकता है.
प्रेम जिसे सभी तलाश रहे हैं पर अहंकार जिसमें बाधा बन जाता है. अहंकार की आँख से
उसका विकृत रूप ही दिखाई देता है, वह उन्हें जाने कितने-कितने उपायों से अपनी ओर
बुलाता है. वे ज्ञान का अभिमान भरे उससे दूर ही रहते हैं.
कल दोपहर समय से
नन्हा पहुँच गया, वह भूल से किसी दीमापुर के यात्री का बैग ले आया था. कल एअरपोर्ट
जाकर उसे अपना बैग लाना है. बंगाली सखी ने बताया उसकी बिटिया ने अपना जीवनसाथी चुन लिया है. नन्हा रात
को अस्पताल में रहा, सो रहा है इस समय. सुबह जून ने पिताजी को हरिओम कहा तो उसका
जवाब दिया, इसका अर्थ हुआ वह सुन पा रहे हैं और समझ भी रहे हैं. लेडीज क्लब का
स्वर्ण जयंती समारोह मनाया जा रहा है, आज शाम को केक कटेगा और परसों शाम को
सांस्कृतिक कार्यक्रम होगा. उसका जाना संभव नहीं हो पायेगा. कल शाम उसे प्रेस जाना
था, वापस आई तो नन्हे ने भोजन बना दिया था, आलू+करेले तथा आलू+स्कैवश की सब्जियां,
उसने आटा भी सान दिया था. सब्जी काटना भी उसे आता है.
पिताजी आज पहले से
बेहतर हैं, आम खाया तथा दाल का पानी पिया. नन्हा आज रात वहीं सो रहा है. वह बहुत
समझदार हो गया है और मेहनती भी, खाना भी बहुत अच्छा बनाता है, उसका भविष्य उज्ज्वल
है. आज बड़ी ननद की मंझली बेटी का विवाह है, सभी वहाँ पहुँच गये हैं. कल रात एक
स्वप्न देखा, ( अभी तक स्वप्नों से मुक्ति नहीं हुई है) जिसने अहसास दिलाया कि
भीतर अनंत ऊर्जा है, उन्हें उसका सदुपयोग करना है, वह दुधारी तलवार की तरह है, वही
करुणा बन सकती है, वही कठोरता का बाना पहन सकती है. वही प्रेम का पुष्प बन सकती है
और वही वासना का कीचड़ बन सकती है. वही शुद्धता, शुभता बन सकती है और वही कुटिलता,
छल, पाखंड बन सकती है. परमात्मा कितना दयालु है, वह सभी को तारने के लिए उत्सुक
है. उनके संस्कार व प्रमाद उन्हें बार-बार नीचे ले जाता है पर वह असीम धैर्यशाली
है, प्रेमस्वरूप है, वह बार-बार मौका देता है. कांटे वे स्वयं चुनते हैं, वह तो
पुष्प ही बाँट रहा है. आनन्द लुटा रहा है, वे अपनी झोली में कंकर पत्थर भरे बैठे
हैं तो वह क्या करे, फिर भी वह थकता नहीं, लुटाये ही चले जाता है, असीम ऊर्जा का
स्रोत है उसके पास !
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