Monday, May 8, 2017

धर्मयुग का विशेषांक


कल रात अनोखा स्वप्न देखा. एक बिल्ली और उसका बच्चा..उसके पहले नन्हे को बचपन में देखा, उसे किसी बात पर डांट लगायी थी उसने. मन ग्लानि से भर गया, किस कदर मूर्खता से भरा कृत्य था यह. बहुत देर तक अपने इसी प्रकार के कृत्यों के लिए क्षमा मांगी. भीतर जैसे कुछ धुल-पुंछ गया हो. उनके जीवन की जड़ें न जाने कहाँ तक फैली हुई हैं..शायद पिछले जन्मों तक..वे अपने इर्द-गिर्द कितने ही कर्मों का जाल बना लेते हैं. उसने सोचा, आज सुबह से ऐसा कोई कृत्य तो नहीं किया जिसका परिणाम बाद में भोगना पड़े..जो भी किया सब समर्पण कर देना है. पल-पल उसी को समर्पित करते जाना है, तब कोई भी कर्म नहीं बंधेगा. परमात्मा सत रूप में जड़ में भी है, चित रूप में चेतन में है और आनंद रूप में सद्गुरु में है.  
कल जून आ गये, घर जैसे भर गया है. उनके न रहने पर मन कैसा शांत हो गया है, ऐसा प्रतीत होता था. शायद वह विरह ही था, परमात्मा ही तो उनके स्वजनों के रूप में उनके पास रहता है. पहले माता-पिता सन्तान के लिए देव स्वरूप होते हैं फिर आत्मीयजन, लेकिन इसकी खबर ही नहीं हो पाती अक्सर तो.. उसका गला पूर्ण रूप से ठीक नहीं है, लेकिन भीतर उत्साह का निर्झर फूट रहा है. आज महीनों बाद संगीत का भी अभ्यास किया. गान, ज्ञान और ध्यान तीनों जीवन को सुंदर बनाते हैं. सद्गुरु की प्रिय बहन की आवाज में मधुर देवी स्तुति सुनी. आज ‘महादेव’ में देखा लक्ष्मी भी नारायण से कहती हैं, उनके सिवा नारायण के हृदय में किसी अन्य का चिन्तन तो नहीं होता न ! हृदय तो आखिर एक ही है न.. महादेव का पुनर्विवाह भी दिखाया जायेगा, वे सनातन प्रेमी हैं, पुरुष और प्रकृति दोनों एक दूसरे से प्रेम करते हैं, आत्मा व परमात्मा की तरह ! पति-पत्नी कितने पवित्र बंधन में बंधे होते हैं, एकदूसरे के लिए ही मानो उनका जीवन होता है, जीवन को सरस बनाते हैं ये रिश्ते, लेकिन आत्मबोध हो जाने के बाद ही कोई इन रिश्तों की अहमियत समझ सकता है. पिताजी का स्वास्थ्य बेहतर है. कल उन्हें पहला इंजेक्शन भी लग गया. वे सौ वर्ष जियें, उनके साथ बैंगलोर चलें, ऐसी वह शुभेच्छा करती है, उनमें जीवन के प्रति असीम उत्साह है, ऐसे व्यक्ति से मृत्यु भी दूर भाग जाएगी.
पिछले तीन दिन फिर नहीं लिख सकी. शुक्रवार को ‘बंद’ था, जून घर पर ही थे, उसके बाद सप्ताह का अंत ! दोपहर के पौने तीन बजे हैं, वह लॉन में फूलों के पास पोखरी के निकट बैठी है. नन्हे-नन्हे गुलाबी फूल भी खिले हैं जो तीन पत्ते वाली खट्टी घास में अपने आप ही उग आये हैं. चिड़ियों की मधुर आवाजें वातावरण को सरस बना रही हैं. न जाने कौन से पंछी अपना कलरव गुंजा कर जाने क्या कह रहे हैं. प्रकृति में हर क्षण कुछ घट रहा है पर एक गहन रहस्य का आवरण ओढ़े हुए है यह. अभी-अभी नासापुटों में एक मदमस्त करने वाली सुगंध भर गयी है, हवा का कोई झोंका उसे अपने साथ लिए आया है. उसने एक गीत लिखा. सुबह चार बजे नींद खिली पर कुछ पल नहीं उठी तो एक स्वप्न देखा, एक छोटा बच्चा रो रहा है, शायद वह नन्हा था, उसे चुप कराने का प्रयास करती है तो नींद खुल जाती है, उनकी आत्मा कितनी सजग है, वह हर पल उन्हें जगाये रखना चाहती है.

पिताजी का स्वास्थ्य लगता है आज ठीक नहीं है, आज उन्होंने अपना पसंदीदा कार्य, दूध लेना व गर्म करना नहीं किया. वह बगीचे से पालक तोड़कर लाये हैं. आज नेट नहीं चला, सो उसने पढ़ने के लिए बाईस वर्ष पुराना धर्मयुग का एक विशेषांक निकाला है. दीदी व छोटी बहन से बात हुई, छोटी बहन के यहाँ आज रात्रि भोज है, देर रात तक चलने वाला. वे लोग नया बिजनेस भी शुरू कर रहे हैं. एक कम्पनी का को-ओपरेटिव स्टोर चलाएंगे, तीन परिवार मिलकर. शाम को अस्पताल जाना है, वृद्धा आंटी कुछ दिनों से अस्पताल में हैं, कल रात बेड से गिर गयीं, शायद सिर में चोट लगी है. बुढ़ापे में कितने कष्ट झेलने पड़ते हैं, इन्सान विवश हो जाता है.   

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