बुध की शाम को नैनी अस्पताल गयी और रात डेढ़ बजे एक स्वस्थ बच्ची को जन्म दिया,
शुक्र को वापस आ गयी. उसकी देखभाल उसका पति व बुआ दोनों कर रहे हैं. बुआ घर का काम
निपटा कर यहाँ भी आ गयी है. धीरे-धीरे काम करती है. पंछियों की आवाजें आजकल सुबह
से ही सुनायी देने लगती हैं. एक कौवा पीछे आंगन में ही कांव-कांव कर रहा है. वह
यदि ध्यान न दे तो पता ही न चले, सुनने लगे तो आवाजों का एक हुजूम है. आजकल वे
सुबह थोड़ा देर से उठने लगे हैं. जून का दर्द पहले से काफी ठीक है. नींद पूरी हो
रही है, कोई तनाव नहीं. समय की किसी पाबंदी का वह पालन नहीं करते आजकल. नन्हे की
तरह मुक्त भाव से जीने लगे हैं, अभी बाह्य मुक्ति का अनुभव हो रहा है एक दिन यही
भीतरी मुक्ति का भी दर्शन कराएगी. आज ध्यान में उसने अनंतानंत ब्रहांड का अनुभव
किया. कितनी शांति थी वहाँ, एक सन्नाटा था, प्रकाश था और सदगुरुओं की झलक थी..वे
व्यर्थ ही स्वयं को सीमाओं में कैद रखते हैं ! सभी के भीतर एक अनंत आकाश है जो
चेतन है, आनन्दमय है और सनातन है..उसका पता लगते ही भीतर अपूर्व शांति का अनुभव
होता है. गुरूजी ठीक कहते हैं ध्यान में जो ताकत है जो करते हैं वह जानते हैं...दांयी
तरफ की पड़ोसिन सखी का फोन आया है, वह भी ‘मृणाल ज्योति’ की डोनर मेम्बर बनना चाहती
है. उसकी माँ को कोई रोग है जिसमें रक्त की लाल कोशिकाएं कम हो जाती हैं. शरीर
कमजोर होता जाता है. बुढ़ापे में कोई न कोई रोग शरीर को घेर ही लेता है.
जून अब काफी स्वस्थ हैं. आज सुबह वे टहलने गये. रास्ते में नन्हे
के मित्र की माँ से भेंट हुई. उन्हें फोन किया सत्संग में आने के लिए, किसी दिन आएँगी.
आज क्लब की एक वरिष्ठ सदस्या का फोन आया, उनके लिए उसने कविता लिखी थी, उसी के लिए
धन्यवाद दे रही थीं. आज My Poetry Collection में कुछ और कविताएँ डालीं, नन्हे ने
उसका look बदल दिया है, कभी हिंदी कविता में उसका लिंक भेजेगी. मौसम आज अच्छा है, न
सर्दी न वर्षा न धूप न गर्मी..मधुर-मधुर सा. जून आज देर से आने वाले हैं, वह कुछ
देर पढ़ सकती है. कल शाम पिताजी से फोन पर बात की. आज छोटे भाई को गुरूजी के जन्मदिवस
के लिए लिखी कविता भेजी है. जीवन का रथ आगे बढ़ रहा है. एक सखी को फोन किया, नहीं
उठाया तो संदेश भेजा, कल वे लोग आ रहे हैं.
जून को पुनः दर्द हुआ. आज वे नेहरु मैदान की हरी-हरी घास पर
नंगे पैरों चले. एक सखी ने शादी का कार्ड भिजवाया है, उसकी ननद के बेटे की शादी है,
नूना ने उसके लिए चंद दोहे लिखे हैं कल टाइप करेगी. नेट पर उसके ब्लॉग के छह
फालोअर जाने कहाँ से आ गये हैं ! अच्छा है ! श्री श्री कहते हैं जब आपके पास
ज्यादा समय है तभी आपको व्यर्थ के ख्याल दिमाग में आते हैं, “व्यस्त रहो मस्त रहो” !
कल शाम को उसने जून को ध्यान कराया, कितना आश्चर्य है न,
कुछ समय ( कुछ महीने पहले) पूर्व वह ध्यान को इतना महत्वपूर्ण नहीं समझते थे, फिर
वह उन्हें इस तरह करा सकती है, यह तो उसकी कल्पना में भी नहीं था. सद्गुरू की कृपा
से असम्भव भी सम्भव हो जाता है. कल शाम को छोटे भाई ने उसकी कविता की तारीफ़ की.
तारीफ तो उसकी है जिसने वह कविता लिखने की प्रेरणा दी, जो स्वयं उस कविता का विषय
है. कुछ ही देर में तो लिखी गयी थी वह, आज ध्यान में सद्गुरु अनंत रूप में उस अणु
पर बरस गये. अनंत ऊर्जा का अनुभव किया उसने अपने सिर की चोटी पर. अभी साधना के इस
पथ पर चलते ही जाना है, विश्राम नहीं लेना है. जो रास्ते को ही मंजिल मानकर रुक
जाते हैं, वे योगभ्रष्ट हो जाते हैं. परमात्मा की अकारण कृपा दिन-रात उस पर बरसती
रहती है. वह कृपा का सागर है, उसकी स्मृति भी आ जाये तो मन भीग जाता है जैसे सागर
के पास खड़ा यात्री अप्रयास ही भीग जाता है !
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