दीदी का फोन आया आज, उन्होंने स्मृति पर आधारित वह कविता पढ़ी,
कुछ और बातें भी बतायीं जो उसे ज्ञात नहीं थीं. उनकी उस बहन को डिप्थीरिया हुआ था,
जो बचपन में ही चल बसी थी. आज तो उसका टीका है उस वक्त नहीं था. आज शाम को वर्षा
में वे भीगे, जून और वह, उन्हें देखकर पिताजी भी आ गये, फिर कुछ देर तेज मूसलाधार
वर्षा के बाद आकाश में इन्द्रधनुष बन गया बहुत सुंदर ! उसने वर्षा पर कुछ
पंक्तियाँ लिखी हैं, कल सुबह उन्हें टाइप करेगी. इस वक्त शाम गहराती जा रही है. वह
लॉन में है. हवा में ठंडक है और वातावरण धुला-धुला सा है. पंछियों की आवाजें आ रही
हैं. प्रकृति का जैसा सान्निध्य यहाँ प्राप्त है वैसा बड़े शहरों में रहने वालों को
शायद ही होता हो ! कल रात को नैनी के यहाँ झगड़ा हुआ पर आज शांति है, देखे, कब तक
टिकती है. उसके पति को उसने समझाया और वादा भी किया कि उसे काम पर जाने में कोई
बाधा नहीं होने देगी. ईश्वर उसकी सदा की तरह मदद करेंगे ! यह वाक्य ही गलत है,
ईश्वर और वह क्या दो हैं ?
परसों लेडीज क्लब की मीटिंग
है, उसे कविता याद करनी है. निराला की कविता भिक्षुक, बचपन में पहली बार पढ़ी थी. आज
भी हल्की-हल्की फुहार पड़ रही है. कुछ नई कविताएँ लिखीं, ब्लॉग पर डालीं. हजारों
लोग हजारों कविताएँ लिख रहे हैं. वास्तव में कवि स्वान्तः सुखाय ही लिखता है, रचना
का पहला पाठक भी तो वही होता है. आज योग अभ्यास व क्रिया साधना करते समय बीच में ही
रुककर उसने जून से जो कहा, वह पहले कभी कहा ही नहीं जा सकता था, अब भीतर साहस आया
है, साहस जो ध्यान से उपजा है. सद्गुरु कहते हैं, ध्यान प्रार्थना की पराकाष्ठा
है. ध्यान में जो ताकत है जो करते हैं वे जानते हैं !
कल दीदी से बात की, छोटी
भांजी दुबई आ रही है, ओपेरा का जॉब उसने छोड़ दिया है. उसके नार्वेजियन पतिदेव
पिछले पांच महीने से लन्दन में हैं. दोनों के बीच सम्पर्क कम होता जा रहा है, ऐसा
दीदी ने कहा. वह जरा भी परेशान या दुखी नहीं थीं. जीवन जब जैसा हो वैसा ही वे
स्वीकार करें तो..दुःख कैसा ? उसे यहाँ आने का निमन्त्रण दिया है, शायद वह
आये..कभी न कभी यह इच्छा भी पूरी होगी ही ! आज उनकी मीटिंग है, कविता उसे याद हो
गयी है, देखे, क्या होता है. आज सुबह उसने एक बात कही तो जून ने कहा कि उन्हें सदा
सकारात्मक सोच रखनी चाहिए, अब वह उसकी भाषा बोलने लगे हैं. कल माँ-पिताजी का
जन्मदिन वे मना रहे हैं. कल पिताजी का फोन आया, वह कह रहे थे कि जितना-जितना ज्ञान
उन्हें होता जाता है , उतना-उतना लगता है वे तो कुछ भी नहीं जानते. उसे अब इस जगत
में जानने जैसा कुछ भी नहीं लगता, जो है सो है, जो जैसा है तब वैसा है..बस यही
ज्ञान है, ज्यादा पढ़ना-सुनना अब व्यर्थ ही लगता है और सुनती भी है क्योंकि कुछ न
कुछ तो करना ही है, कुछ किये बिना रहना हो नहीं सकता...शाम की तैयारी करनी है.
जुलाई माह का आरम्भ हो चुका
है. मौसम भी बदल रहा है, उमस और चिपचिपाहट भरी गर्मी का मौसम. जब तक बादल बरसते हैं
तभी तक ठंडक रहती है वरना..आज नन्हे के लिए उन्होंने गोंद के लड्डू तथा एक कविता
भेजी है. इसी महीने छोटी बहन आ रही है. जून को कोलकाता तथा जोधपुर जाना है. उनका
दर्द अभी पूरा गया नहीं है, थोडा़-थोडा़ सा शेष है, सद्गुरू की कृपा से उनके भीतर
भक्ति, श्रद्धा व ध्यान का उदय हुआ है, प्रार्थना करना उनकी आदत में शुमार हो गया
है.आशा नामकी एक लडकी जो कभी-कभी उसके पास पढ़ने आती है, आज पीतल के बर्तनों को
चमका रही है. कभी-कभी मेहमानों को आना चाहिए अथवा तो त्योहारों को..
सलाह देने या दूसरों को
उपदेश देने का उसे रोग है. कोई मांगे या न मांगे हर बात पर सलाह उसके भीतर तैयार
ही रहती है, शायद इसकी वजह यही है कि उसे भीतर समाधान मिल गया है और उसे लगता है
कि सभी को फटाफट समाधान मिल जाये, कि वे क्यों व्यर्थ ही परेशान रहें, हो सकता है
उसके सूक्ष्म अहम् की पुष्टि होती हो..लेकिन सद्गुरु कहते हैं कि इस जग में जो
सबसे ज्यादा दी जाती है और सबसे कम ली जाती है वे हैं सलाहें..यहाँ हर एक आत्मा को
अपना समाधान स्वयं ही खोजना होता है कोई बना बनाया उत्तर किसी के काम नहीं आता तो
आज के बाद यह निश्चय किया कि कई सलाह नहीं देनी है, किसी को भी नहीं देनी है, सभी
अपनी मंजिल स्वयं ही तलाशेंगे, जब परमात्मा उन्हें जगायेगा तब वे जागेंगे !
आपकी ब्लॉग पोस्ट को आज की ब्लॉग बुलेटिन प्रस्तुति अमर क्रान्तिकारी मदनलाल ढींगरा जी की १०७ वीं पुण्यतिथि और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। सादर ... अभिनन्दन।।
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