आज धूप कल की सी तेज
नहीं है, कल कई हफ्तों बाद वर्षा रुकी थी. परसों उनकी मीटिंग थी, उसने दो कविताएँ
पढ़ीं. एक जन्मदिन की कविता भी लिखी. हिंदी कविता में कई दिनों से कुछ नहीं भेजा.
कल साहित्य अमृत में रवीन्द्रनाथ टैगोर की एक अच्छी कहानी पढ़ी. पिता अपनी बेटी के
दिल को समझता है, ऐसे ही उसने एक दिन पिताजी से कहा था कि वह कुछ करें.. माँ से
नहीं कहा जब उसके नाम का खत उसे नहीं मिल रहा था. माँ-पिताजी भोजन लगने की
प्रतीक्षा कर रहे हैं. उसके बाद उन्हें विश्राम करना है, दोपहर बाद उठना है फिर
शाम की तैयारी और इस तरह एक दिन और बीत जायेगा..एक दिन ऐसे ही जीवन पूर्ण हो
जायेगा..
कल स्टोर की सफाई की, आज नैनी किचन की सफाई कर रही है.
डिब्रूगढ़ रेडियो स्टेशन से छम छम छमा छम ..गीत बज रहा है. आज सुबह पंछियों की आवाज
सुनकर नींद खुली. आचार्य प्रद्युम्न जी को सुना, राग-द्वेष से मुक्त होकर ही कोई
परमात्मा का अनुभव कर सकता है. भीतर जब शांति हो, स्थिरता हो, आनन्द हो तब वह धीरे
से आता है.
मई का आरम्भ हुए तीसरा दिन है, आज मौसम गर्म है. एसी खराब
हो गया था अभी मकैनिक आया है जो न जाने कितने घरों में एसी बनता है. आज सुबह वे
साढ़े चार बजे उठकर सीधा टहलने गये. सुबह की स्वच्छ हवा में टहलना एक सुखद अनुभव था.
नेहरु मैदान की हरी घास पर लोग नंगे पैरों चलकर ठंडक अपने भीतर भर रहे थे. जून कल
दोपहर यात्रा से लौटे तो काफी ठीक लग रहे थे. शाम को उन्होंने डायरी में अपनी
अस्वस्थता के बारे में लिखना भी शुरू किया है, अब वह जल्दी ही पूर्ण ठीक हो
जायेंगे. भजन के साथ गुनगुनाने भी लगे हैं आजकल. उन लोगों ने सोचा है हर शाम कुछ
अलग तरह से बिताएंगे. क्लब जाना भी आरम्भ करेंगे तथा कुछ समय लाइब्रेरी में
बिताएंगे. सद्गुरु की कृपा से यह परिवर्तन आरम्भ हुआ है, एकरसता आ जाने से जीवन
कैसा सूना-सूना हो जाता है. उन्हें इस सुंदर जीवन को जो ईश्वर के अमूल्य देन है,
रसपूर्ण बनाना ही होगा. वह भारत के एक बड़े अस्पताल के डाक्टर से मिलकर आये हैं और
उन्हें कोई बीमारी नहीं है, मात्र तनाव है, तनाव का कारण माँ की बीमारी हो सकता है
और उनका तनावग्रस्त होने का स्वभाव..जो अब बदल रहा है, स्वयं को बदले बिना मानव
महाजीवन को पा ही नहीं सकता. उसे भी अपने समय का सही उपयोग करना है, अपनी ऊर्जा
का, शक्ति का सही उपयोग करना है ताकि मन प्रफ्फुलित रहे, सरस रहे और जीवन एक उत्सव
बन जाये ! गुरूजी का असम यात्रा का सीडी जो एक परिचित ने दिया था, कल कम्प्यूटर पर
चलाकर देखा, कितनी सुनहरी यादें छिपी हैं उसमें..सद्गुरु को आज भी सुना..कितना
उत्साह है उनकी वाणी में कितना ओज और कितना तेज.
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