आज अभी कुछ ही देर बाद मेहमान आने वाले हैं. पिताजी को भी
उनके आने का इंतजार है, माँ को अब किसी के आने-जाने से कोई फर्क नहीं पड़ता. मौसम
अच्छा है आज भीगा-भीगा सा. उसने सोचा उनके
लिए कुछ लिखे -
बरस के बादलों ने भी स्वागत
किया है
इंतजार क्यों न करे, अति उत्सुक
हिया है
दूर देश से उड़ के आये, अधरों
पर ओढ़े मुस्कान
दिल्ली में रहे मौज मनाये, अब
आये हैं वे आसाम
जून ने अगले कुछ दिनों के
लिए अवकाश ले लिया है. आज वे उन्हें लेकर दिगबोई गये. मौसम पहले-पहल अच्छा था, फिर
धूप निकल आई. धूप में भी भांजियों ने खूब मस्ती की, विभिन्न पोज देकर तस्वीरें
उतारीं. वापसी में मौसम पुनः अच्छा हो गया. वे म्यूजियम भी गये, पार्क में बोटिंग
की.
आज दोपहर वे उसके साथ
बच्चों की सन्डे योग कक्षा में गये. डाक्टर बहन ने उन्हें स्वच्छता के विषय में जानकारी
दी. नाड़ी तथा हृदय के बारे में बताया. चार्ट पेपर पर एक क्रॉसवर्ड बनाकर शरीर के
अंगों के नाम सिखाये. लडकियों ने उन्हें प्लास्टिक की बोतल से पेन होल्डर बनाना
सिखाया. फूलों और पत्तियों को कागज पर चिपका कर कार्ड बनाना सिखाया. बच्चों को
बहुत आनंद आया. रेन क्लैपिंग में तो वाकई उन्हें बहुत खुशी हुई. उनके दिन अच्छे
बीत रहे हैं.
कल सुबह छोटी भांजी क्लब
में तैरने गयी. वह अच्छी तैराक है. शाम को जून आयल फील्ड दिखाने ले गये, उन्होंने
समझाया किस तरह तेल को पानी व गैस से अलग किया जाता है. वापस आकर सभी मिलजुल कर घर
का काम करते हैं. छोटी भांजी सलाद सजाती है तो बड़ी टेबल लगा देती है. बीच-बीच में
ज्ञान चर्चा भी होती है. माँ-पिताजी को भी उनका साथ भाने लगा है.
कल वे आर्ट ऑफ़ लिविंग के
सेंटर गये थे जहाँ साप्ताहिक सत्संग था, उसके पूर्व गुरुद्वारे तथा काली बाड़ी
दिखाए. आज वह बहन को मृणाल ज्योति ले गयी, जहाँ उसे एक मीटिंग में भाग लेना था. मीटिंग
के दौरान बहन बाहर टहलती रही, उसे अपना वजन घटाना है सो दिन में कई बार टहलने जाती
है. वहाँ उसने एक छोटी तिपहिया साइकिल दान में दी.
आज सभी वापस चले गये हैं. रोजाना
की सुबह-सुबह की सैर आज नहीं हुई, क्योंकि वर्षा काफी तेज थी. प्राणायाम किया. जून
आज पांच दिनों के बाद दफ्तर गये. वह बहन को एक पड़ोसिन से मिलाने ले गयी. तुलसी का
एक पौधा वहाँ से लायी जिसे अभी तक लगाया नहीं है. जाते-जाते बच्चों का वीडियो भी
लिया जैसा आते वक्त लिया था. बहन अपनी डायरी छोड़ गयी है ताकि उसे पढ़कर वह कोई कहानी
लिख दे ! छोटी भांजी ने भी अपनी एक कहानी दी है, हिंदी अनुवाद के लिए. उनके ढेर
सारे चित्र हैं और ढेर सारी यादें हैं. उनके साथ बिताये दिन सुखद याद बन गये हैं !
अज गुरु पूर्णिमा है, सुबह
वे सेंटर गये थे. दोपहर को पूजा में भाग लिया, एक बार तो लगा कि जैसे तस्वीर में
गुरूजी सजीव हो उठे हैं, उनकी मुस्कान कितनी वास्तविक लग रही थी. आज माँ घर से
बाहर जाने के लिए कह रही थीं. आजकल उनको खाने-पीने से अरुचि हो गयी है. पिताजी भी
उनकी हालत देखकर परेशान हो गये हैं.
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