कल बुद्ध पूर्णिमा थी,
एक सखी के साथ उसने भजन गाये, फिर माँ-पिताजी के साथ सबने ध्यान किया. फुलमून
मैडिटेशन ! ध्यान में एकत्व का अनुभव हो तो भीतर कैसी शांति का अनुभव होता है. अब
यह स्वभाव ही हो गया है. व्यर्थ के विचार अब भी आते हैं लेकिन तत्क्षण ही कोई भीतर
से सचेत कर देता है. आज ‘आर्ट ऑफ़ लिविंग’ टीचर का फोन आया, जो यहाँ आई थीं,
उन्होंने मेल ही नहीं देखा सो गुरूजी के जन्मदिन पर लिखी कविता भी नहीं पढ़ी. एक
पुरानी परिचिता से फोन पर बात हुई जिनके पति का देहांत कुछ वर्ष पहले हो गया था और
जो मृणाल ज्योति में स्वेच्छा से काम कर रही थीं. वह कल बेटी की शादी के बाद लौट
आई हैं, स्कूल के पास ही एक कमरा लेकर रहना चाहती हैं. जून कोर्स में गये हैं, वह
मानसिक रूप से ज्यादा सबल हुए हैं. सत्य को स्वीकारने लगे हैं. वह आज फिर वह बगीचे
में झूले पर बैठी है. परसों कविता लिखी थी, देखे, आज क्या लिखाता है वह ! अभी
सूर्यास्त में समय है. पिताजी ने पानी दिया है पौधों को. आज मौसम गर्म है, घास में
एक काली सफेद चिड़िया अपनी पूंछ को ऊपर-नीचे करती एक अनोखे अंदाज में कीट खोज रही
है. आज सुबह उन्होंने कितने पंछियों की आवाजें सुनीं. कल वे वीडियो कैमरा लेकर
जायेंगे, फिल्माएँगे एक सुबह.. आज पड़ोसी कुछ
खेल रहे हैं, शायद बैडमिंटन या ऐसा ही कुछ..बगीचे में कितने रंगों के फूल खिले
हैं, जीनिया, कॉसमॉस, जरबेरा, गुलाब, फॉरगेट मी नॉट, पेशेंस तथा अन्य दो-तीन तरह
के, जिनके नाम वह नहीं जानती. कुछ वर्षों के बाद जब इस जगह से नाता छूट जायेगा तब
कोई और बगीचा होगा लेकिन फूल तो हर कहीं एक से ही होते हैं, अभी-अभी एक ज्योति की
झलक मिली, कई बार लगता है जैसे एक क्षण के लिए प्रकाश झलका हो...परमात्मा की कृपा
उस पर हर पल बरस रही है..सद्गुरु के लिए एक और कविता लिखनी है गुरु पूर्णिमा के
लिए.....भीतर के शून्य को दिखाने वाले..जीवन के सारे सवालों के हल पल में हाजिर कर
देने वाले सद्गुरू के लिए जितना लिखे कम है..
आज दीदी की बहू का जन्मदिन है, अभी-अभी फेसबुक पर पढ़ा तो शुभकामना दी और उसे
फोन भी किया. आज सुबह तीन बजे अचानक बिजली चली गयी, वे जल्दी उठे फिर प्रातःभ्रमण के लिए गये, फोटोग्राफी
की. दोपहर भर गर्मी से त्रस्त रहे, इस समय मौसम अच्छा हो गया है, हवा में ठंडक है
जिसका स्पर्श सुकून से भर रहा है.
आज से नया महीना आरम्भ हो गया है. परसों उसका जन्मदिन आया और चला गया. दिन भर
व्यस्तता में गुजरा. दोपहर को बच्चों के लिए मिठाई लेकर गयी. शाम को मैंगो शेक के
साथ छोटी सी पार्टी. कल सुबह-सुबह श्री श्री के आश्रम में गोली चलने की बात सुनी,
दिन भर एक अजीब सी उदासी छायी रही. उनका एक इंटरव्यू सुना. वह कह रहे थे कि उन्हें
यह सोचना चाहिए कि आस-पास के लोगों के प्रति वे कैसे अधिक प्रेम से भरे कैसे हो
सकते हैं, उनके काम कैसे आ सकते हैं. कल सबके साथ उनके लिए प्रार्थना की, सुबह से
जो अवसाद भीतर था अश्रुओं में बह गया. आज भी सुबह से मन एक गम्भीर शांति में डूबा
है. कल दीदी की कविता भेज दी. जून आज व्यस्त हैं, देर से आने वाले हैं, आज ब्लॉग
पर उस दिन झूले पर बैठ कर लिखी कविता डाली है. नन्हे का एक मित्र अपने घर आया है, उससे
बात करनी है और बात करनी है एक सखी से. सुबह थोड़ा बहुत सफाई का काम किया, कुछ बाकी
है पर फ़िलहाल तो इस शीतल मौसम में हरी घास पर बैठकर ‘पट्टमोहिनी शांतला’ को पढ़ना
है.
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