आज क्लब की एक पुरानी
पत्रिका के कुछ लेख पढ़े. बहुत आनंद मिला. मन में कुछ भाव जगे. पिछले पांच दिनों से
डायरी नहीं खोली, न जाने कहाँ गुम थी. आज पुनः सत्संग है घर पर, देखें आज कौन-कौन
आता है. जून देहली गये हैं, इतवार को लौटेंगे यानि तीन दिन बाद. उसने उन्हें याद
करके लिखा-
क्यों शंकित है, क्यों पीड़ित है, हृदय तुम्हारा क्यों
कम्पित है
साथी हैं हम जनम-जनम के, सुख के दुःख के हर इक पल के
किसे ढूँढ़ते नयन तुम्हारे, कैसे दर्द छिपाए दिल में
कदम-कदम संग चलना हमको, हर मोड़ पे मिलना हमको
चलो भुला दें बीती बातें, चलो मिटा दें दुःख, फरियादें
हाथ लिए हाथों में अपने, पूर्ण करेंगे सारे सपने
साथ निभाने का था वादा, तुमने न माँगा कुछ ज्यादा
जो चाहो वह सदा तुम्हारा, साँझा है यह जीवन प्यारा
तुमसे ही अपना जीवन है, तुमसे ही यह तन मन धन है
तुम ही हो सर्वस्व हमारे, तुमसे न कोई भी प्यारे
तुमने ही जीना सिखलाया, तुमसे कितना सम्बल पाया
हर उलझन को तुम सुलझाते, अपना कर्त्तव्य निभाते
तुमसे ही यह घर चलता है, तुमसे ही जीवन सजता है
परिवार को तुमने चाहा, सुंदर सा इक नीड़ बनाया
तुमने कितने उपहारों से, सोने चाँदी के हारों से
भर दी है मेरी अलमारी, जीवन सुंदर त्योहारों से..
साथी तुम संग जीवन प्यारा, तुम न हो सूना जग सारा
कैसे तुमको भूल गये हम, खुद से ही हो दूर गये हम
तुम आओगे तकती आँखें, भर दोगे सपनों से पांखें !
उसने कुछ देर नेट पर समय बिताया. गुरूजी को सुना. सुबह
ध्यान में कुछ देर तो निर्विचार हो पायी थी पर अभी तक ऐसा अनुभव नहीं हुआ कि सब
कुछ खो जाये, स्वयं का पता तो रहता ही है, लेकिन भीतर गहरी शांति है. कल शाम एक
सखी के यहाँ गयी, वह कितना परेशान रहती है, उसका स्वभाव ही ऐसा हो गया है. रात को
एसी चलाया था तो कैसी महक भर गयी थी कमरे में, अजीब सी गंध से ढाई बजे आँख खुल गयी
थी, फिर काफी देर बाद नींद आयी. उसी समय जून भी गेस्ट हाउस में उठे थे. दीदी से
बात करनी है पर फोन कहीं भी नहीं मिल रहा है, लिखा है ‘लिमिटेड सर्विस’ जाने क्या
मतलब है इसका.
No comments:
Post a Comment