Tuesday, August 2, 2016

आइसलैंड का ज्वाला मुखी




 पंछियों को देखती है तो उसे लगता है कितने आनंद में हैं वे, बस उड़ना और गाना दो ही तो काम हैं उन्हें, न कुछ खोने का डर न कुछ पाने की ललक..और तितलियाँ, वे भी तो बस फूलों पर मंडराती हैं और छोटे-छोटे कीट, जो घास में छिपे रहते हैं, उनका तो बस होना ही काफी है. इधर मानव को देखें तो उसके भीतर कितना संघर्ष चल रहा है, रोते हैं लोग और कुढ़ते भी हैं..आदेश चलाते हैं, बिना यह समझे कि क्या कर रहे हैं.

पिछले कई दिनों से डायरी नहीं खोली. बीहू का अवकाश था. आज जून का ऑफिस खुला है. योग शिक्षिका को जवाब दिया, उसका SMS एक सखी को पढ़कर सुनाया तो उसके भी रोयें खड़े हो गये ! उसके दिल में भी प्रभु प्रेम की ज्योति जली है ! कल सुना कि आइसलैंड में ग्लेशियर के नीचे से ज्वालामुखी फटने से आकाश में धुँए के काले बादल छा गये हैं. हजारों उड़ानें रद्द हो गयी हैं. आकाश में कांच के टुकड़े हैं जो जहाजों को नुकसान पहुंचा सकते हैं. प्रलय की तैयारी ही लगती है यह. प्रकृति की विनाशलीला का एक अध्याय ! नीचे जल ऊपर आग का प्रकोप, मानव को उसके कृत्यों का दोष तो भुगतना ही पड़ेगा. सुबह बाथरूम में एक कीट को पानी में से बचने की कोशिश पर उसने उसे हिम्मत बंधायी पर वह दम तोड़ गया. नन्ही सी जान, उसके लिए तो वह जल प्रलय का रूप धर कर ही आया था. सोमवार को मृणाल ज्योति खुला है, जाना है. लेडीज क्लब की दो सदस्याओं के साथ, योग सिखाने के साथ –साथ कुछ बातचीत भी करनी है. वापस आकर सेक्रेटरी को बताना भी है, एक छोटा सा काम भी कितना महत्वपूर्ण हो जाता है, जब कोई उस काम को कभी-कभी करता हो. उसका यह काम भी अस्तित्त्व को समर्पित है. कर्म न बांधें साधक को इसका ध्यान हर क्षण रखना चाहिए ! उसका फोन पुराना हो गया है, बार-बार चार्ज करना होता है, बैटरी पुरानी हो गयी है, लेकिन जब तक यह काम दे रही है, काम चलाना होगा, बस सारे फोन नम्बर कहीं लिख कर रख लेने चाहिए.

कल इतवार था, दोपहर को ‘अंकुर संस्कार केंद्र’ के बच्चों की कक्षा थी. उन्होंने बहुत शोर मचाया, वह नियन्त्रण नहीं रख पायी, कोशिश ही नहीं की, लेकिन बाद में मन उदास था. उदासी की परवाह नहीं थी पर इसकी कि अभी तक मन बचा है. जो अभी तक भी मन बचा है तो इतने दिनों की साधना क्या यूँ ही गयी, सद्गुरु से पूछे तो कहेंगे कि पहले उदासी देर तक टिकती थी अब थोड़ी देर को ही और यह उदासी तो एक सबक सिखाने आई है कि कैसे बच्चों को और अच्छा सिखाया जाये ! कल बच्चों के लिए फाइलें लेकर गयी थी ताकि वे उसमें अपनी बनाई ड्राइंग रख सकें. कल की धूप-छाँव के बाद आज पुनः बादल छाये हैं, सावन से पूर्व ही यहाँ सावन आ जाता है. नौ बजे गाड़ी उन्हें मृणाल ज्योति ले जाने आएगी. पेट में कुछ गड़बड़ है उसी का परिणाम है गले की खराश, आजकल जून को अपनी सेहत की फ़िक्र हो रही है सो वे कुछ ज्यादा खाने लगे हैं, देखें कब तक ऐसा चलता है.

2 comments:

  1. दुर्लभ मानुस जनम है... लेकिन क्या लाभ ऐसे जन्म का जो उसे उन स्वाधीन कीट-पतंगों से भी निकृष्ट बनाता है. ज्वालामुखी का प्रकोप देखते हुए माल्थस का जनसंख्या सिद्धांत याद आता है कि जब इंसान जनसंख्या पर नियंत्रण नहीं करता तो प्रकृति अपना रास्ता चुनती है. एक गला काट स्पर्धा के पीछे भी यह मुख्य कारण रहा है.

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  2. सही कहा है आपने, मानवों को अपने कर्मों का हिसाब चुकाना पड़ेगा यह जानते हुए भी स्वार्थ अथवा अज्ञान वश वे अमानवीय कृत्य करते चले जाते हैं. आभार !

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