आज कई दिनों के बाद धूप निकली है. समय वही दोपहर का है पर वह भीतर है, सिर में
हल्का दर्द है, आइसपैक का इलाज बेहतर रहेगा. आज जून बहुत खुश हैं. वह अध्यात्म के
मार्ग पर चलने को तत्पर हैं, भीतर के प्रेम को महसूस ही नहीं कर रहे, प्रकट भी कर
रहे हैं..सद्गुरु की अपार कृपा है उन दोनों पर..वह दूर होकर भी इतने पास हैं..आज
भी ध्यान में उनके ही चरणकमल थे, परमात्मा को जब वे अपने जीवन का केंद्र बना लेते
हैं तो प्रसन्नता उनके अंग-संग छाया की तरह रहती है, आज ब्लॉग पर एक नयी कविता
पोस्ट की !
पिछले पांच दिन डायरी नहीं खोली. कल दिन भर शाम के सत्संग
की तैयारी में बीता. आए कुल जमा तीन लोग. सद्गुरू उसे कुछ संदेश देना चाह रहे हैं.
परसों वे डिब्रूगढ़ गये थे. जून का दर्द कम होता था फिर बढ़ जाता था. वहाँ एक डाक्टर
को दिखाया, उसने एक इंजेक्शन दिया, अब काफी कम है. उससे पूर्व इतवार था, एक सखी को
रात्रि भोजन पर बुलाया था, शनिवार को एक सखी का जन्मदिन था, वे पार्टी में गये. शुक्रवार को दोपहर बहुत
गर्म थी, शाम को एक बुजुर्ग आंटी से मिलने गये. सो ये पिछले पांच दिन खुद से दूर
ही बीते. आज पुनः खुद की सुध आई है. साधना भी कई दिन बाद मन से की. इस समय साढ़े दस
बजे हैं सुबह के, दोपहर का भोजन बन गया है. थोडा सा वक्त है. भीतर सदा की तरह
शांति है और है एक दृढ़ संकल्प कि कितना भी आवश्यक कार्य हो साधना नहीं छोड़नी है और
न ही लिखना छोड़ना है, इससे खुद का पता रहता है कि वे किधर जा रहे हैं. जून भी शायद
एकाध दिन से नहीं लिख रहे हैं. कल से वह सुबह के कीमती वक्त का पूरा उपयोग करेगी.
एक पल भी व्यर्थ नहीं खोना है. ब्रह्म मुहूर्त की बेला इधर-उधर की बातों में नहीं
खोयी जा सकती ! माँ-पिताजी बाहर बैठे हैं. मौसम पुनः बदली वाला हो गया है. नन्हा
इतवार की रात को चेन्नई से नहीं चला, बल्कि सोमवार को मोटरसाईकिल पर एक मित्र के
साथ आया. जून को इस बात की जानकारी नहीं है, वह व्यर्थ ही परेशान हो जायेंगे. छोटी
बहन ने लिखा है वह फिलोसफी की अध्यापिका से मिलेगी, पर उसे अपने सवालों के जवाब
भीतर ही खोजने होंगे, बाहर केवल भटकन है, हर एक को अपना रास्ता स्वयं ही बनाना
पड़ता है. सद्गुरू की पहचान भी तभी होती है जब खुद से पहचान हो जाये. बड़ी भांजी को
अब सन्तान की जरूरत महसूस होने लगी है. उसे जिस सहयोग व ज्ञान की जरूरत है वह परिवार
से मिलना कठिन है. दीदी को ही उसे समझाना होगा, लेकिन तभी न जब वह स्वयं पूछे.
आज वर्ष का सबसे लम्बा दिन है. वे रोज की तरह चिड़ियों की
चहकार सुनकर उठे. मंझला भाई दो दिनों के लिए आया था, कल शाम उसे ट्रेन में बिठाकर
वापस लौटे और योग निद्रा का अभ्यास किया. ध्यान अब जीवन का स्वाभाविक अंग बन गया
है और मुस्कान अपनी सहज आदत..जून भी अब बेबात मुस्कुराना सीख गये हैं ! आज उसकी
छात्रा के आने का दिन था, पर शायद वह पैतृक घर गयी होगी. सुबह घर की सफाई की और
साप्ताहिक स्नान भी, स्वच्छता पवित्रता से भर देती है. इस वक्त धूप निकली है और
हल्की बूंदा-बांदी भी हो रही है ! उसके सम्मुख तीन न्यूज़वीक पड़ी हैं.
आज बचपन की एक स्मृति पर आधारित कविता लिखी और पिताजी, दीदी
व बड़े भाई को भेजी, पता नहीं क्या प्रतिक्रिया हो उनकी..आज सत्संग का दिन है, अब
जून भी पूरे उत्साह से तैयारी करते हैं. परमात्मा को केंद्र में रखे कोई तो जीवन
कैसा रसपूर्ण हो जाता है, फिर किसी बात की कोई फ़िक्र रहती ही नहीं. अभी सवा पांच
हुए हैं, वह इस कक्ष में आ गयी है, जहाँ अगरबत्ती की भीनी-भीनी सी खुशबू है, शीतल
हवा है, श्वेत चादर है और दीवार पर गुरूजी की मुस्कुराती सी तस्वीर है. इस क्षण
भीतर एक पूर्णता का अनुभव हो रहा है, जैसे कुछ भी पाना शेष नहीं है, पाना अर्थात
सांसारिक दृष्टि से, आध्यात्मिक दृष्टि से तो अनंत संभावनाओं के द्वार खुले हैं !
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