परमात्मा हर वक्त उनके साथ है, ‘सद्गुरू’ हर क्षण उनके साथ है, ‘आत्मा’ हर पल उनके साथ
है. वे तीनों कितने-कितने उपायों से उन्हें संदेश भेजते हैं, कितने उपाय करते हैं
कि उन्हें ख़ुशी मिले, ऐसी ख़ुशी जो वास्तविक है, जो किसी पर निर्भर नहीं है जो उनके
भीतर से आयी है. वे इसके लिए कभी-कभी दंड भी देते हैं. बाहर जब सुबह का सूर्य उगा
हो, शीतल सुगन्धित पवन बह रही हो, पंछियों का मधुर गुंजार हो रहा हो, ऐसे में कोई
बच्चा स्वप्न में रो रहा हो तो कौन माँ उसे झिंझोड़ कर जगा न देगी, वह उसे
प्रसन्नता देना चाहती है, ऐसे ही अस्तित्त्व उन्हें जगाता है. कष्ट भेजकर वह कहता
है मार्ग बदलो. भविष्य में उन्हें सद्गुरू के बहुत से कामों में सहयोगी होना है,
उनका आश्रय वही हैं. उसे तो पग-पग पर उनका निर्देश मिलता प्रतीत होता है. जून पुनः
आर्ट ऑफ़ लिविंग का बेसिक कोर्स कर रहे हैं. दीदी से परसों बात हुई, उनके जन्मदिन
पर एक कविता लिखे ऐसा मन में आया है. आज न वर्षा है न धूप, उमस भरा मौसम है.
सवा दस हुए हैं सुबह के. वर्षा इस वक्त थमी है. सुबह वे
टहलने गये, लौटते समय जून ने कहा, आकाश में काले बादल हैं, उन्हें यहीं से घर चले
जाना चाहिए. उसने कहा ‘यस’, और देखो, उनके घर पहुंचने के कुछ ही पलों बाद मूसलाधार
वर्षा शुरू हो गयी. वे छाता भी नहीं ले गये थे, यह कृपा का प्रत्यक्ष उदाहरण है.
पिछले कई हफ्तों से अनुभव कर रही है, जैसे सद्गुरू पल-पल उन पर नजर रखे हुए हैं. जब
वह यहाँ आये थे, तो उनसे उसने जून के विषय में कहा था. डेली कोट्स के जरिये वह हर
दिन उन्हें संदेश देते रहे हैं. कितनी बार ऐसा हुआ शाम को जिस विषय पर वे बात करते
थे अगले दिन वही विषय उनके संदेश में रहता था, कैसा आश्चर्य है, सच्चे दिल से की
गयी प्रार्थना कभी अनसुनी नहीं रहती. उसका हृदय कृतज्ञता से भरा है. कितने-कितने
भाव उठते हैं. वह मशाल बनकर उनके आगे–आगे चल रहे हैं, वह शमा बनकर जल रहे हैं ताकि
उनकी ज्योति से अनेकों आत्माएं प्रज्ज्वलित हो सकें. एक आत्मा के दीपक से ही दूसरी
आत्मा का दीपक जल सकता है. वह ज्योति गुरु दृष्टि से भी भेज सकता है, स्पर्श से भी
और मात्र स्मृति से भी..कैसा अनोखा संबंध है गुरु और शिष्य का. यहाँ प्रेम का
आदान-प्रदान मीलों दूर से भी होता रहता है..प्रतिपल यह प्रेम बढ़ता ही जाता है,
बल्कि दोनों प्रेम में एक ही हो जाते हैं. सद्गुरू ने उसे उसकी सारी दुर्बलताओं के
साथ अपनाया है...उसे भी जगत को ऐसे ही स्वीकारना है..सब न्याय है..जो हुआ..जो हो
रहा है...जो होगा..सब कुछ उस परम पिता का वरदान है..उन्हें सजग रहकर उसकी आवाज को
सुनना है..यही साधना है !
झूले पर बैठकर डायरी लिखना..मई की इस सुहानी साँझ को सुखद
अनुभव है. पड़ोसी के घर बच्चे झूला झूल रहे
हैं, शोर मचा रहे हैं. कोई गिटार बजा रहा है, रह-रह कर संगीत की ध्वनि कान में
पडती है, सूर्य सुनहरा हो गया है, कुछ ही पलों में लाल हो जायेगा और फिर शाम का धुंधलका
छा जायेगा. जून कोर्स में गये हैं, माँ-पिताजी लॉन में बैठे हैं. उसने कुछ देर सूखे
फूलों की कटिंग की. दोपहर को ‘शांतला’ की कहानी पढ़ी. रोचक है, वर्षों पहले उसने और
माँ ने साथ पढ़ी थी, वह अब न जाने कहाँ होंगी, किसी नये रूप में किसी के घर में
जन्मी तो होंगी. कितना क्षणिक होता है मानवों का आपस में मिलना थोड़े समय का और
बिछड़ना अनंत काल का और परमात्मा के साथ मिलन होता है तो अनंत काल का.. आज सुबह
ध्यान में अस्तित्त्व के साथ एकत्व का अनोखा अनुभव हुआ, इसी को नारद कहते हैं कि
भक्ति नित नई है और सदा बढ़ने वाली है. अंतर जैसे-जैसे तैयार होता जाता है वैसे ही
वैसे, प्रेम प्रकट होता जाता है. उसने दीदी के लिए कविता लिखनी शुरू की.
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