Monday, May 16, 2016

होली की पावन ज्वाला


ध्यान का फल ज्ञान है. कोई जगत में लगाये या परमात्मा में.. संसार में जिसका ज्ञान मिल जाता है, वहाँ से ध्यान हट जाता है क्योंकि ध्यान ज्ञान बन गया है. पदार्थ में जोड़ा ध्यान व्याकुलता को जन्म देता है, क्योंकि जब एक पदार्थ का ज्ञान मिल जाता है, दूसरे को जानने की चाह जग जाती है, पर इतने बड़े जगत में कितना कुछ अनजाना है. अपनी इस व्याकुलता को भूलने के लिए मानव क्या-क्या नहीं करता. वह अपने आप को इतर कामों में लगाकर उस प्रश्न से बचना चाहता है जो उसे व्याकुल कर रहा है. वह जगत को दोनों हाथों से बटोर कर अपनी मुट्ठी में कैद करना चाहता है पर वह भी नहीं कर पाता क्योंकि जगत में सभी कुछ नश्वर है, वह तब भी जगता नहीं बल्कि नींद के उपाय किये जाता है. जब तक कोई मांग है तब तक भीतर की स्थिरता को अनुभव नहीं किया जा सकता. संसार भीतर का प्रतिबिम्ब है. परमात्मा सदा रहस्य बना रहता है. वह हर कदम पर आश्चर्य उत्पन्न होने की स्थिति पैदा कर देता है ! परमात्मा में यदि कोई ध्यान लगाये तो वह ज्ञान होने के बाद भी नहीं हटता क्योंकि परमात्मा का ज्ञान कभी पूरा नहीं होता.

आज भी सुंदर वचन सुने. ध्यान बाहर की तरफ जाए तो केंद्र अहंकार है, ध्यान भीतर जाये तो केंद्र निरंकार है. बाहर जाना सरल है, भीतर जाना कठिन है. अहंकार कानून की पकड़ में नहीं आता, केवल गुरु की शरण में आता है और परमात्मा की पकड़ में आता है. अधूरे मन की पहचान है अशांति तथा चिंता, पूर्ण मन की पहचान है पूर्ण से जुड़ना ! हर सुख की अपनी उमर है, आनंद अमर है. तात्कालिक भय तथा असुरक्षा की भावना जब किसी को घेर लेती है तो बुद्धि काम करना बंद कर देती है. उसे लगता है, खतरा है, पर आत्मा को भय हो ही नहीं सकता, वह अभय, निर्भय तथा अजर, अमर है. भय के पीछे मोह है, मोह के पीछे अज्ञान, अज्ञान ही उन्हें बाहर की घटनाओं से प्रभावित करता है, जबकि बाहर की घटनाओं का मन के विचारों से कोई संबंध नहीं है, वे संबंध जोड़ लेते हैं ! पुराने संस्कारों के कारण अथवा प्रारब्ध के कारण भी मन भय जगाता है, जो बीज पहले बोये थे उनके फल आने लगें तो भी मन विचलित होता है. ज्ञान के बिना इनसे मुक्ति का कोई उपाय नहीं.  

कल होली है, रंगों वाली आज होलिका दहन है. पिछले वर्ष भर में जितने भी मन मैले हुए, कटुता जगी, उन सब अशुद्धियों को जलाकर शुद्ध हो जाने का पर्व ! बीती हुई बातों को भुलाकर बिलकुल नये व्यक्ति की तरह जगत का, लोगों का स्वागत करना होली का त्यौहार सिखाता है ! पिछले हफ्ते वह सत्संग में होली की कविता लेकर गयी थी. जैसे खर-पतवार खेत में अपने आप बिना उगाये उग जाते हैं तथा वे फसल को भी खराब करते हैं वैसे ही मन में व्यर्थ के विचार सद्विचारों को भी प्रभावित करते हैं. इस समय टीवी पर रामकथा आ रही है. टीवी के माध्यम से लाखों व्यक्ति उसकी तरह ज्ञान प्राप्त करते हैं. बापू कह रहे हैं केवल स्मरण मात्र से भी समाधि की अवस्था का अनुभव किया जा सकता है. स्मरण उनकी साधना में आई बाधाओं को दूर करता है. पवित्र मन ही जप करता है और जप करने वाला मन ही पवित्र होता है. भीतर टटोलें तो उनके पास कुछ भी नहीं हैं, जो भी है वह परमात्मा का है. संसार की गति का कारण वह परमात्मा है जो गति नहीं करता.

  

   

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