Wednesday, May 11, 2016

गॉस्पेल ऑफ़ बुद्धा


नये वर्ष में वह पहली बार लाइब्रेरी गयी थी कल. Gospel of Buddha लायी है. बुद्ध कहते हैं आत्मा नहीं है, कोई ऐसी शाश्वत सत्ता भीतर नहीं है. मन है, विचार हैं, भावनाएं हैं ये सब प्रतिपल बदल रहे हैं, एक नदी के प्रवाह की तरह, लेकिन इस प्रवाह को कौन देखता है ? मन क्या स्वयं को देख पाने में सक्षम है, विचारों से परे जो देह व मन को देखता है वह क्या है ? उसे मन कहें या आत्मा क्या फर्क पड़ता है, शब्दों के पार जहाँ केवल शून्य है, कैसी शांति है, जहाँ नाद है, संगीत की लहरियां हैं. जहाँ न जीने की चाह है न मरने की परवाह है. जब कोई विराट शून्य में खड़ा हो जाता है तो दृष्टि अपने पर लौटती है.

आज क्लब की मीटिंग में उसे ‘मृणाल ज्योति’ पर बोलना है. यह बाधाग्रस्त बच्चों के पुनर्वास के लिए समर्पित एक संस्था है जो १९९९ में मात्र दो बच्चों को लेकर शुरू की गयी थी. ऐसे बच्चे जो पूर्ण समर्थ नहीं हैं, मंदबुद्धि हैं अथवा सुनने में अक्षम हैं. उनकी देखभाल शिक्षा तथा उनके इलाज के लिए मृणाल ज्योति जैसे संस्थाएं एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं. वह हिंदी में अपने विचार सुचारू रूप से रख सकती है. सभी महिलाएं उस जैसी ही तो होंगी प्रेम से भरी, किन्तु थोड़ी सी नर्वस. उनमें आत्मविश्वास की कमी का कारण है आत्मा की कमी. आत्मा जितनी जितनी प्रखर होती जाएगी अर्थात स्वार्थ जितना-जितना कम होता जायेगा या अहंकार जितना-जितना शून्य होता जायेगा, आत्मा उतनी-उतनी उजागर होती जाएगी. उनके पास खोने के लिए कुछ भी नहीं है क्योंकि वे स्वयं को कभी खो ही नहीं सकते और पाने के लिए सब कुछ है क्योंकि आत्मा अनंत है जितना पा लें प्यास बढ़ती ही जाती है.


आज सुबह एक फोन आया. ध्यान में थी सो घंटी जैसे कहीं दूर बजती रही पर उठाने का मन नहीं हुआ. मन धीरे-धीरे उपराम होता जा रहा है, मरता जा रहा है. भीतर प्रकाश बढ़ता जा रहा है. लक्ष्य कुछ-कुछ दीखने लगा है. हर सुबह सद्गुरु से एक सूत्र मिलता है. कितना सुंदर, सरल और सीधा है उनका जीवन, इसकी पवित्रता देखकर आँखों में जल भर आता है, इतना निर्दोष और इतना पावन है उनका सहज स्वभाव. कितना पूर्ण और कितना तृप्ति से भरा है उनका खाली मन, ऐसा मन जो माँगता नहीं, चाहता नहीं, देने की भी चाह नहीं, कुछ करने की भी चाह नहीं. सहज जो होता रहे वही  पर्याप्त है ! करने वाला यदि बचा रहे, देने वाला और देखने वाला जब तक बचा रहे, तब तक भीतर कुछ न कुछ उथल-पुथल मची रहती है. अब कोई है नहीं भीतर, मौन है, सन्नाटा है, जो है बस है, होना नहीं है. कल सुबह एक परिचिता के पास गयी थी उसके इक्कीस वर्ष के भतीजे ने आत्मघात कर कर लिया. उसने प्रार्थना की, उसकी आत्मा को शांति का अनुभव हो वह सही मार्ग पा जाये ! 

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